सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद डिस्ट्रिक जज धर्मशाला अब तक नही कर पाये मकलोड़गंज बस अड्डा प्रकरण की जांच

Created on Wednesday, 29 November 2017 06:42
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। इस बस अड्डा प्रकरण की जांच सर्वोच्च न्यायालय ने 16.5.2016 को जज धर्मशाला को सौंपी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह जांच चार माह में पूरी करके रिपोर्ट सौपने के निर्देश दिय थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के परिवहन विभाग को भी निर्देश दिये थे कि वह इस प्रकरण से जुड़ा सारा रिकार्ड जज को तुरन्त प्रभाव से सौंपे और इस जांच में पूरा सहयोग करे। इन निर्देशों का पालन करते हुए जज को सारा रिकार्ड तुरन्त सौंप दिया गया था। लेकिन सूत्रों के मुताबिक जिला जज धर्मशाला अब तक इस प्रकरण की जांच पूरीे करके सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट नही सौंप पाये है। ऐसे में यह चर्चा उठना स्वभाविक ही है कि जब न्यायिक अधिकारी ही सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अनुपालना न कर पाये तो फिर अन्य प्रशासन से क्या उम्मीद की जा सकती है। यह चर्चा एनजीटी द्वारा अभी हाल ही में प्रदेश भर में हुए अवैध निमार्णो के कारण पर्यावरण को पहुंचे नुकसान के संद्धर्भ में दिये गये फैसले से उठी है।
स्मरणीय है कि धर्मशाला के मकलोड़गंज में 2004 से बीओटी के तहत बन रहे बस स्टैण्ड और चार मंजिला होटल तथा शापिंग काम्लैक्स के निर्माण पर फिर अनिश्चितता की तलवार लटक गयी है। स्मरणीय है कि यह निर्माण वनभूमि पर हो रहा है जिसके लिये वन एवम् पर्यावरण अधिनियम के तहत वांच्छित अनुमतियां न लिये जाने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित सीईसी के समक्ष एक अतुल भारद्वाज ने शिकायत डाली थी। इस शिकायत की जांच करके सीईसी ने अपनी रिपोर्ट 18 सितम्बर 2008 को सर्वोच्च न्यायालय में रखी थी। इस रिपोर्ट में पूरे निर्माण पर कानूनी प्रावधानों की गंभीर उल्लंघना के आरोप लगाते हुए सारै संवद्ध प्रशासनिक तन्त्र इसमें मिली भगत पायी गयी थी। इसमें प्रदेश सरकार पर एक करोड़ रूपये का जुर्माना भी लगाया गया था। सरकार के साथ ही निर्माण कार्य कर रही कंपनी मै. प्रंशाति सूर्य को ब्लैक लिस्ट करने और जुर्माना लगाने की संस्तुति की गयी थी।
सीईसी की इस रिपोर्ट को मै. प्रशांति सूर्य ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर मई 2016 में शीर्ष अदालत ने फैसला दिया। इस फैसले में मै. प्रशांति सूर्य को पर्यावरण संरक्षण के एनजीटी अधिनियम की धारा 15 और 17 के तहत 15 लाख का जुर्माना लगाया गया। यह जुर्माना प्रदेश के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड में जमा करवाना होगा। इसी के साथ प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग तथा बस अड्डा प्रबन्धन एवम् विकास अथाॅरिटी पर भी दस लाख का जुर्माना लगाया गया। हिमाचल सरकार पर पांच लाख और पर्यटन विभाग पर भी पांच लाख का अलग से जुर्माना लगा है। इसमें बन रहे होटल और रेस्तरां को भी दो सप्ताह के भीतर गिराये जाने के निर्देश दिये गये हैं। इसी के साथ प्रदेश के मुख्य सचिव को इस पूरे प्रकरण की जांच करके बस अड्डा प्राधिकरण के संबधित अधिकारियों की व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय करते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कारवाई करने के निर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने पारित किये हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले की बस अड्डा प्राधिकरण ने फिर अपील के माध्यम से चुनौति दी। इस अपील की सनुवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने इस संद्धर्भ में जो जांच प्रदेश के मुख्य सचिव को करने की जिम्मेदारी दी थी अब जांच जिला कांगड़ा के सत्र न्यायधीश को करने की जिम्मेदारी दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि We accordingly modify our order dated 16.05.2016 and direct the District Judge to hold an inquiry into the conduct of all officers      responsible for the           construction of the    bus stand / hotel /accompanying complex and to submit a   report to this Court as to        the circumstances in which the alleged construction was erected and the role played by the officers associated with the same. The District Judge may appoint a       suitable presenting officer to assist him      in the matter. We further direct that        the Government of Himachal Pradesh and the petitioner authority shall render all such assistance as may be required by the District Judge in connection with the inquiry and produce all such record and furnish all such information as may be requisitioned by him. Needless to say that the District Judge shall be free to take      the assistance of or summon any official from the Government or outside for recording his / her statement if considered necessary for completion of the inquiry. The District Judge is also given liberty to seek                  any clarification or    direction considered        necessary in the matter. He shall make every endeavour to expedite the completion of the inquiry and as far as possible send his report  before this Court within a period of four months from the date a copy of this     order is received by him. 

सैशन जज धर्मशाला ने इस जांच के संद्धर्भ में अभी तक अपनी रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को नहीं सौंपी है। माना जा रहा है कि इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय और सीईसी ने जिस विस्तार से इस मामले में हुई धांधलीयों को उजागर करते हुए सभी संवद्ध पक्षों को कड़ी फटकार और जुर्माना लगाया है उसे देखते हुए इसमें संलिप्त रहे सारे अधिकारियोें की व्यक्तिगत जिम्मेदारीयां तय होना निश्चित माना जा रहा है। क्योंकि इसमें हुई अनियमितताओं का संज्ञान तो शीर्ष अदालत पहले ही ले चुकी है। अब इसमें केवल यह तय होना ही शेष है कि किस अधिकारी के स्तर पर क्या कोताही हुई है।