संगठन पर भारी पड़ेगा सुक्खु-वीरभद्र विवाद

Created on Tuesday, 12 September 2017 05:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांग्रेस में वीरभद्र और सुक्खु के बीच उठा विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बढ़ते विवाद पर न केवल पार्टी के कार्यकर्ताओं की ही नजरें लगी हैं बल्कि प्रदेश के हर व्यक्ति के लिये यह चर्चा का विषय बन चुका है। पूरा विपक्ष भी इस विवाद के अन्तिम परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा है। इस विवाद और इसके परिणाम का प्रभाव प्रदेश की दशा-दिशा बदल देगा यह भी तय माना जा रहा है। दूसरी ओर भाजपा ने देश को कांग्रेस मुक्त करने का संकल्प भी ले रखा है। इस परिदृश्य में कांग्रेस को हर प्रदेश में बहुत सावधानी पूर्वक अपनी चुनावी नीति तय करनी होगी।
इस परिदृश्य में प्रदेशकांग्रेस का आकंलन करते हुए जो बिन्दु उभरते हैं उन पर विचार किया जाना आवश्यक है। प्रदेश में कांग्रेस का दूसरी पंक्ति का नेतृत्व अब तक एक स्पष्ट शक्ल नही ले पाया है यह सही है। क्योंकि एक लम्बे अरसे से संगठन का काम मनोनयन के सहारे ही चला आ रहा है। आज शायद संगठन के कुछ शीर्ष पदाधिकारी तो चुनाव लड़ने का साहस तक नही दिखा पायेगे। इसीलिये आज कांग्रेस का एक भी नेता चाहे वह सरकार में मन्त्री हो या संगठन में पदाधिकारी भाजपा -संघ की नीतियों और केन्द्र सरकार की विफलताओं पर एक शब्द तक नही बोल पा रहा है। बल्कि इस चुप्पी का तो यह अर्थ निकाला जा रहा है कि कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग कभी भी भाजपा में शामिल होने का ऐलान कर सकता है। आज प्रदेश में कांग्रेस के पास वीरभद्र को छोड़कर एक भी नेता ऐसा नही है जो चुनावों के दौरान अपने चुनाव क्षेत्र को छोड़कर किसी दूसरे उम्मीदवार के लिये प्रचार करने जा पाये।
इसी के साथ यह भी एक कड़वा सच है कि इस पूरे कार्यकाल में कांग्रेस धूमल शासन पर लगाये अपने ही आरोपों की जांच करवा कर एक भी आरोप को प्रमाणित नही कर पायी है। इसके लिये सरकार और संगठन दोनो बराबर के जिम्मेदार हैं। इसलिये आज इस संद्धर्भ में प्रदेश भाजपा के खिलाफ कांग्रेस के पास कोई बड़ा मुद्दा नही रह गया है। क्योंकि हर मुद्दे का एक ही जवाब होगा कि आपने सरकार में रहते हुए क्या कर लिया। इस पूरे कार्यकाल में कई मन्त्री और सीपीएस वीरभद्र को आॅंखें तो दिखाते रहे हैं लेकिन कभी भी किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट स्टैण्ड नही ले पाये। इस कारण इन सबकी अपनी छवि यह बन गयी अपने-अपने काम निकलवाने के लिये यह इस तरह के हथकण्डे अपनाते रहे हैं इसलिये आज भी न तो वीरभद्र के पक्ष में और न ही उसके विरोध में कोई स्पष्ट स्टैण्ड ले पा रहे हैं। सुक्खु के खिलाफ जिस तरह का ओपन स्टैण्ड वीरभद्र ने ले रखा है वैसा स्टैण्ड सुक्खु नही ले पा रहे हैं। संभवतः सुक्खु की इसी स्थिति को भांपते हुए वीरभद्र ने एक समय सुक्खु को यह कह दिया था कि पहले अपने चुनावक्षेत्र में अपनी जीत तो सुनिश्चित कर लो।
आज कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने वालों के नामों में बाली, करनेश जंग , अनिल शर्मा, अनिरूद्ध आदि के नाम पिछले काफी अरसे से उछलते आ रहे हैं। सुक्खु और हर्ष महाजन को लेकर यह चर्चा है कि यह लोग चुनाव ही लड़ना नही चाहते है। यह चर्चाएं पार्टी के लिये घातक है। इनमें कई लोगों के बारे में यह चर्चा है कि यह लोग अमितशाह के साथ भेंट कर चुके हैं। भाजपा भी बार-बार यह दावा कर रही है कि कांग्रेस के कई नेता उसके संपर्क में हैं। लेकिन कांग्रेस के इन लोगों की ओर से आज तक कोई खण्डन नही आया है और बाली को ही वीरभद्र विरोधीयां का ध्रुव माना जा रहा है। ऐसे में यदि कल को बाली भाजपा में चले ही जाते हैं तो उस समय सुक्खु के साथ-साथ शिंदे की स्थिति भी हास्यस्पद हो जायेगी।