शिमला/शैल। सरकारी नौकरी में हर वित्तिय वर्ष में अधिकारियों/कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ए. सी. आर) लिखे जाने का नियम है। इसी ए सी आर के आधार पर पदोन्नति वगैरा के साथ जुड़े मामलों का फैसला लिया जाता है। यदि किसी की वार्षिक रिपोर्ट सही ना हो तो ऐसे कर्मचारी की वरिष्ठता को नज़र अन्दाज करके कनिष्ठ को लाभ देने का प्रावधान है।
इस तरह वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट का सरकारी सेवा में बहुत ही केन्द्रिय स्थान है। इसलिये ए सी आर लिखने के तीन चरण है पहला reporting officer दूसरा Reviewing officer और तीसरा Accepting officer का । यह तीनां लोग अलग-अलग होते हैं। सरकारी सेवा में यह शिकायतें अक्सर रहती हैं कि किसी को लाभ देने के लिये या किसी को नुकसान पहुचाने के लिये ए सी आर लिखने में संबंधित व्यक्ति का आंकलन सही नहीं किया जाता है और इसके कारण उसका अहित हो जाता है। ए सी आर लिखने में जुड़ी ऐसी सारी संभावनाओं को समाप्त करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने 12-05-2008 को CWP 7631 of 2002 titled Dev Dutt Vs Union of India & others में स्पष्ट दिशा निर्देश देते हुये कहा है कि Fairness and transparency in public administration required that all entries (whether poor, fair average, good or very good) in the Annual Confidential Report of a public servant, whether in civil , Judicial, police or any other State service (except the military), must be communicated to him within a reasonable period so that he can make a representation for its up- gradation. This, in our opinion, is the correct legal position even though there may be no Rule /G.O. requiring communication of the entry or even if there is a rule /G.O. prohibiting it, because the principle of non- arbitrariness in state action as envisaged by article -14 of the Constitution of India in our opinion requires such communication, Article -14 will over rules or the government order लेकिन क्या सर्वोच्च न्यायालय के इन निर्देशों का सरकारी विभागों में ईमानदारी से अनुपालन हो रहा है? प्रदेश के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान इन्दिरा गांधी मैडिकल कॉलेज में एक प्राध्यापक की ए सी आर का मामला चर्चा में आया है। ई एन टी विभाग के प्राध्यापक डा. भूषण लाल की वर्ष 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2013-14, और 2014-15 की ए सी आर अतिरिक्त निदेशक स्वास्थ्य सेवा की ओर से 9-11-16 को इस प्राध्यापक को भेजी गई है और पन्द्रह दिन के भीतर इस पर उनसे जवाब मांगा गया है । वर्ष 2010 से 2013 तक की रिपोर्ट में इन्हे Very good आंका गया है लेकिन 2013-14, और 2014-15 में यह आकलन Average हो गया है। मजे की बात यह है कि वर्ष 2010-11 से 2014-15 तकReporting officer एक ही व्यक्ति रहा है। वर्ष 2013-14 में इस प्राध्यापक ने ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों स्तरों के छात्रों को पढ़ाया है। एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी भाग लिया और उसका पेपर भी प्रकाशित हुआ है। फिर एक माह से अधिक समय तक अकेले ही अपने यूनिट को संभाला और किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं रही। लेकिन इस सबके बावजूद 2013-14 और 2014-15 की ए सी आर सामान्य (Average) हो जाती है।
सबसे बड़ी हैरानी तो यह है कि सर्वोच्च न्यायालय 15-02-2008 को दिये अपने फैसले में यह निर्देश देता है कि ए सी आर तुरन्त प्रभाव से संबंधित व्यक्ति को सूचित की जानी चाहिये ताकि वह उस पर आवश्यक कदम उठा सके। लेकिन इस मामले में 2013-14 और 2014-15 की रिपोर्ट नवम्बर 2016 में संबंधित व्यक्ति को भेजी जाती है। चर्चा है कि विभाग में शीघ्र ही ऐसोसियेट प्रोफेसर का पद भरा जाना है जिसके लिये Average ए सी आर के कारण 25 वर्ष के शानदार कार्यकाल के बवाजूद यह प्राध्यापक इससे बाहर हो जाता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को भी नज़रअन्दाज करने का साहस दिखाया जा रहा है।