वित्तिय संकट के कगार पर पहुंची प्रदेश सरकार केन्द्र के पत्र से उभरे संकेत

Created on Tuesday, 15 November 2016 06:44
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने मण्डी रैली में प्रदेश की जनता के सामने यह खुलासा रखा था कि केन्द्र सरकार ने 14वें वित्तायोग के तहत हिमाचल प्रदेश को 72 हजार करोड़ रूपया दिया है। मोदी ने जनता से यह भी आवाहन किया था कि वह सरकार से इस पैसे का हिसाब भी मांगे। उन्होने यह भी कहा था कि केन्द्र सरकार भी इसका हिसाब मांगेगी। मोदी के इस खुलासे पर सरकार में गंभीर प्रतिक्रियाएं देखने को मिली थी। मोदी ने इस खुलासे के बाद मुख्यमन्त्री द्वारा अपनी जनसभाओं में की जा रही घोषणाओं में भी एक बदलाव देखने को मिला था। अब मुख्यमन्त्री जनता को कुछ भी देते हुये ये भी कह रहे हैं कि जो वो दे रहे हैं उसका सही पता तभी चलेगा जब वह बतौर वित्तमन्त्री इस घोषणा से जुड़ी फाईल को देखेंगे। वित्त विभाग ने भी अब घोषणाओं का औचित्य आंकलन करते हुये बहुत सारी घोषणाओं पर यह लिखना शुरू कर दिया है कि इसमें मुख्यमन्त्री की घोषणा के अतिरिक्त और कोई आधार नही बनता। बहुत सारी घोषणाओं पर अब अन्तिम अधिसूचनाएं रोक दी गयी हैं। बल्कि वित्तिय कठिनाईओं को देखते हुए कई संस्थानो को बन्द करने का फैंसला लिया जा रहा है इस संद्धर्भ में पहली कड़ी में 75 से 100 स्कूल बन्द किये जाने का फैंसला कभी भी बाहर आ सकता है।
इस समय सरकार की वित्तिय स्थिति के मुताबिक वर्ष 2002-2003 में जो कुल ऋण दायित्व 13209.47 करोड़ था वह 2014-15 में 35151.60 करोड़ हो गया तथा 2015-16 में 39939 हो गया है। वर्ष 2016-17 के बजट प्रस्तावों के मुताबिक इस वर्ष में 6102.38 करोड़ ऋण लेने का प्रावधान रखा गया है। इन आंकड़ो के मुताबिक इस वर्ष मे 31 मार्च 2017 को कुल कर्ज 46041 करोड़ हो जायेगा। दूसरी ओर केन्द्र सरकार के वित्त विभाग द्वारा प्रदेश सरकार को 29 मार्च 2016 को भेजे गये पत्र के मुताबिक राज्य सरकार अपने जीडीपी का कुल 3% ऋण ले सकती है। इस पत्र के मुताबिक वर्ष 2016-17 के लिए ऋण की तय सीमा 3540 करोड़ है। लेकिन सरकार ने बजट प्रस्तावों में ही 6102 करोड़ ऋण के माध्यम से जुटाने का प्रस्ताव रखा है। ऐसे में भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वारा तय ऋण की सीमा 3540 करोड़ और 6102 करोड़ में दिन रात का अन्तर है। सूत्रों के मुताबिक वित्त सचिव ने मुख्यमन्त्री को इस स्थिति से अवगत करवा दिया है और यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वित्त विभाग में और वित्तिय दवाब का प्रबन्धन नही कर पायेगा। क्योंकि सरकार के इस कार्यकाल में ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में सरकार को कोई बड़ा निवेश नही मिल पाया जिससे की जीडीपी में बढ़ौत्तरी हो पाती।
दूसरी ओर अभी सर्वोच्च न्यायालय ने समान कार्य के लिये समान वेतन का फैंसला देते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि गैर रैगुलर कर्मचारियों को रैगुलर कर्मचारियों के बराबर ही वेतन देना होगा। पिछले काफी अरसे से सरकार सारी नयी नियुक्तियां कांट्रैक्ट के आधार पर ही करती आ रही है चाहे ऐसे कर्मचारियों का चयन प्रदेश लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड हमीरपुर के माध्यम से हुआ हो। वर्तमान नीति के अनुसार पांच साल का सेवा काल पूरा करने पर ही कांटै्रक्ट कर्मचारियों को नियमित करने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन इस फैसले के तहत हर कर्मचारी को नियुक्ति के पहले दिन से ही रैगुलर के बराबर वेतन देना होगा। रैगुलर और कांटै्रक्ट कर्मचारी के बीच इस समय दस से पन्द्रह हजार वेतन का अन्तर है। सरकार में ऐसे कर्मचारियों की संख्या पचास हजार से अधिक है। इन कर्मचारियों को यदि नियमित के बराबर वेतन न मिला तो यह लोग अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। ऊपर से आगे विधान सभा चुनाव आने हैं और सरकार इन चुनावों को सामने रखकर मन्त्रीमण्डल की हर बैठक में नये पद भरने और सृजित करने के फैंसले लेती जा रही है। चुनावों को लेकर की जा रही सारी घोषणाओं पर अमल करने के लिये वांच्छित वित्तिय संसाधन जुटाने का तरीका ऋण लेने के अतिरिक्त और कोई नही बचता है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा तय ऋण सीमा के भीतर रहकर सारे फैसलों पर अमल कर पाना संभव कैसे हो सकेगा। इस सवाल को लेकर वित्त विभाग और मुख्य सचिव क्या रास्ता निकालते है इस पर सबकी निगाहें लगी है।