क्या HPU की नियुक्तियों पर आयी शिकायत की राज्यपाल जांच करवायेंगे

Created on Tuesday, 08 November 2016 05:03
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पिछले दिनों हुई सहायक प्रोफेसरों की नियुक्तियों को लेकर एक महिला ने राष्ट्रीय महिला आयोग को भेजी शिकायत में सनसनी खेज आरोप लगाये हैं। यह शिकायत चर्चा का विषय बन चुकी है। विश्व विद्यालय के एक छात्र संगठन ने इसकी जांच की मांग की है। शिकायतकर्ता महिला का आरोप है कि वह इन नियुक्तियों के लिये स्वंय भी एक उम्मीदवार थी। उसने दावा किया है कि साक्षात्कार के बाद जो मैरिट सूची बनी थी उसमें दूसरे स्थान पर थी लेकिन जब नियुक्ति पत्र जारी हुए तब उसे नज़र अन्दाज करके 39 स्थान पर जो महिला थी उसे नियुक्त दे दी गयी। शिकायत पत्र में नियुक्त हुई महिला के मोबाईल न. भी दिये गये हैं और आरोप लगाया गया है कि इस महिला की एक शीर्ष अधिकारी से लम्बी बात होती रही है। इन कॉल डिटेलज़ की जांच की मांग की गयी है। यह भी दावा किया गया है कि इस महिला की नियुक्ति का दो प्रोफेसरों ने विरोध भी किया था। इन प्रोफेसरों के नाम भी दिये गये हैं। इन प्रोफेसरों से जुड़े सूत्रों के मुताबिक यह लोग भी इस शिकायत में जांच के पक्षधर हैं।
शिकायतकर्ता महिला ने शिकायत में जो अपना पता लिखा है वह प्रमाणिक नहीं है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि शिकायतकर्ता ने अपनी सही पहचान छुपाने का प्रयास किया है। क्योंकि स्वभाविक है कि रिश्वत और शोषण के आरोप लगाकर अपनी पहचान को सार्वजनिक करना आसान नहीं होता। इसी कारण हम इस पत्र को सार्वजनिक नहीं कर रहें हैं। लेकिन शिकायत में जो तथ्य दिये गये हैं वह किसी भी जांच के लिये एक पुख्ता आधार हैं। मैरिट की अनदेखी की गई है। इस शिकायत के मुताबिक जिस महिला को नियुक्ति दी गयी है वह उसकी पात्र ही नहीं थी। विश्व विद्यालय में इन पदों के लिये 2011, 2012 और 2013 में आवेदनों और साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी हुई थी। लेकिन इसके परिणाम 23 सितम्बर 2016 को घोषित हुये क्योंकि इस सारी प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं। मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक पहुचा था। शिकायतकर्ता महिला ने भी 2012 में इन्टरव्यू दिया था और उस समय नियुक्ति के प्रति उसे पूरी तरह आश्वस्त किया गया था। इसी कारण वह इस सब के बारे में खामोश बैठी रही लेकिन अब जब परिणाम सामने आया तो उसके धैर्य का बांध टूट गया। शिकायत के मुताबिक उसने रिश्वत के नाम पर दिये हुये पांच लाख वापिस मांगे तो उसे प्रताड़ना मिली। शिकायत में उसने कहा था कि अगर उसे न्याय ना मिला तो वह आत्महत्या कर लेगी।
यह शिकायत पत्र पूरी तरह सार्वजनिक चर्चा में आ चुका है इस पर जांच की मांग उठ गयी है। यह भी आरोप है कि विश्वविद्यालय के इस बड़े को मुख्यमन्त्री का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में इन आरोपों की जांच सरकार के स्तर पर कितनी संभव हो पायेगी? विश्वविद्यालय एक स्वायत संस्था है इसके प्रबंधन पर ही यह आरोप हैं। ऐसे में इसकी जांच करवाने की जिम्मेदारी राज्यपाल पर आ जाती है क्योंकि वही विश्वविद्यालय के चांसलर हैं। इस शिकायत पत्र को एक सोर्स रिपोर्ट मानकर इसकी जांच की जा सकती है। बल्कि उच्च न्यायालय भी इसका स्वतः संज्ञान लेकर जांच आदेशित कर सकता है।