क्या भाजपा मिशन 50 प्लस हासिल कर पायेगी

Created on Monday, 10 October 2016 12:52
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा ने अगले विधानसभा चुनावों के लिये 50 प्लस का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य के साथ ही भाजपा ने समय पूर्व चुनावों की संभावना भी जताई है। भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती ने एक पकार वार्ता में दावे रखते हुए खुलासा किया कि इसके लिये एक अभियान समिति गठित कर दी गयी है। इसी के साथ पार्टी वीरभद्र सरकार के खिलाफ एक आरोप पत्र लायेगी जिसके लिये पूर्व अध्यक्ष विधायक सुरेश भारद्वाज की अध्यक्षता में एक आरोप पत्र कमेटी का भी गठन किया गया है। यह आरोप पत्र 25 दिसम्बर को वीरभद्र सरकार के 4 साल पूरा होने पर राज्यपाल को सौंपा जायेगा। भाजपा के सत्ता में आने पर इस आरोप पत्र पर कारवाई करने का भी भरोसा दिलाया है। वैसे भाजपा ने अब तक अपने आरोप पत्रों पर सत्ता में आने पर कभी कोई कारवाई नहीं की है। लेकिन इस बार वीरभद्र ने धूमल और एच पी सी ए के खिलाफ मामले बनाने की शुरूआत कर दी है इसलिये भाजपा ने अब इस परम्परा को निभाने का दावा किया है। भाजपा अपने मिशन 50 प्लस के लिये किस कदर गम्भीर है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अभी पार्टी ने प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी के दो कार्यक्रमों का आयोजन मण्डी और नाहन मे रखा है। प्रधान मन्त्री के बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी तीन दिनों के प्रदेश दौरे पर आने वाले हैं। पार्टी ने अगले साल के लिये भी कार्यक्रमों की सूची तैयार कर ली है।
पार्टी अपने मिशन 50 प्लस को पाने के लिये कोई कसर नही छोड़ेगी इसमें कोई संदेह नही है। बल्कि पार्टी ने जिस अन्दाज में हिलोपा पार्टी का विलय करवाया है और इस विलय के बाद महेश्वर सिंह, खुशीराम बालनाहटा, राकेश पठानिया, महंतराम चौधरी आदि नेताओं को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनाकर अपनी गंभीरता का परिचय दे दिया है। लेकिन इस सबके बावजूद पार्टी के लक्ष्य की सफलता को लेकर कुछ क्षेत्रों मे अभी भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। इस संदेह का आधार पार्टी के भीतर पनपती खेमेबाजी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता शान्ता कुमार केन्द्र से लेकर राज्य ईकाई तक से पूरी तरह संतुष्ट ओर सहमत नही है यह सर्वविदित है। अभी ऊना की बैठक में भी उनका शामिल न होना इसी सं(र्भ में देखा जा रहा है। पंजाब के वरिष्ठ भाजपा नेता कालिया ने जिस तरह से शान्ता कुमार के खिलाफ गंभीर सवाल उछाले हैं उनसे भी ऐसे ही संकेत उभरते हैं। क्योंकि यह सवाल आने वाले दिनों में विपक्ष के हाथों में एक बड़ा हथियार सिद्ध होंगे। शान्ता और जे पी उद्योग के रिश्ते भी कब बड़ा सवाल बन कर खड़े हो जायें यह आशंका भी बराबर बनी रहेगी। इस परिदृश्य में पार्टी और स्वयं शान्ता अपने लिये क्या भूमिका तय करते हैं इस पर सबकी निगाहें रहेंगी।
शान्ता के अतिरिक्त केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री जे पी नड्डा ने केन्द्र सरकार और संगठन में जो मुकाम हासिल कर लिया है उसके बाद नड्डा को भी प्रदेश नेतृत्व की पंक्ति मे एक बड़ी संभावना के रूप मे देखा जा रहा है। बल्कि राकेश पठानिया और खुशीराम बालनाहटा जैसे नेताओं को पार्टी में वापिस लाने में उनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है। लेकिन नड्डा इस समय प्रदेश से राज्य सभा सांसद है। प्रदेश में पार्टी नेतृत्व के लिये बिलासपुर मे नड्डा के लिये कौन सी सीट सुरक्षित रहेगी इसको लेकर भी तस्वीर स्पष्ट नहीं है। क्योंकि जब से नड्डा को नेतृत्व की पंक्ति मे गिना जाने लगा तभी से बिलासपुर में उनके विरोधी सक्रिय हो गये। विरोधियों की इस सक्रियता का ही परिणाम था कि संगठन के चुनावों में नड्डा के समर्थकों को पूरी सफलता नही मिल पायी। बिलासपुर में सुरेश चन्देल और नड्डा आज प्रतिद्वंदी बन कर खड़े हैं यह भी सर्वविदित है। फिर नड्डा के खिलाफ केन्द्र मे चल रहा एम्ज़ का प्रकरण भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। पार्टी के भीतर अब उस पर चर्चा होने लगी है। ऐसे में नड्डा की प्रदेश में सक्रियता किस कदर कितनी रहती है क्योंकि उनके पास उत्तराखण्ड की भी जिम्मेदारी है। इस परिपेक्ष्य में नड्डा राज्यसभा के माध्यम से केन्द्र में सुरक्षित राजनीति की रणनीति अपनाते हैं। या प्रदेश में आने का जोखिम उठाते हें इसका खुलासा भी आने वाले दिनों में सामने आ जायेगा।
शान्ता- नड्डा के बाद पार्टी का सबसे बड़ा खेमा धूमल का है। दो बार मुख्यमन्त्री का कार्यकाल न केवल पूरा ही किया बल्कि अपने विरोधियों पर भी भारी पड़े। दोनों बार वीरभद्र के खिलाफ ऐसी व्यूह रचना की वह उससे बाहर ही नहीं निकल पाये। धूमल को पहले ही कार्यकाल में यह पूरी तरह समझ आ गया था कि विपक्ष और विरोध की सबसे बड़ी धुरी वीरभद्र ही है और यदि उन्हें ही अपने में उलझा दिया जाये तो शासन का रास्ता साफ हो जाता है। इसी समझ का परिणाम है कि वीरभद्र इस बार भी धूमल को हर रोज कोसने की बजाये उसका कोई बड़ा नुकसान नहीं कर पाये। आज धूमल के सांसद बेटे अनुराग ने वी सी सी आई के शीर्ष पर पहुचने का जो मुकाम हासिल कर लिया है यदि उससे सर्वोच्च न्यायालय और लोढ़ा कमेटी के कारण वहां से हटना भी पड़ता है तो प्रदेश की राजनीति में स्थापित होने के लिये पर्याप्त आधार बना पड़ा है। इसलिये आज धूमल अनुराग को हिमाचल में पार्टी नज़रअन्दाज कर पाने की स्थिति में नही है। इस परिदृश्य में पार्टी को 50 प्लस का टारगेट हासिल करने के लिये कोई बड़ी कठिनाई अभी नज़र नहीं आ रही है।
लेकिन इस समय वीरभद्र ने अपने खिलाफ चल रही सी बी आई और ई डी की जांच को जिस ढंग से केन्द्र की राजनीतिक ज्यादती प्रचारित करना शुरू किया है उनका कोई प्रतिवाद भाजपा की ओर से नही आ रहा है। सत्ती ने दिल्ली में चल रहे मामलों के लिये वीरभद्र के मन्त्रीयों द्वारा वकीलों की फीस के नाम पर की जा रही उगाही का आरोप तो लगा दिया है लेकिन इस आरोप को प्रमाणित करने के तथ्य जनता के सामने नही रखे है। सत्ती के आरोप के बाद कांग्रेस के मन्त्रीयों को वीरभद्र के पक्ष में एकजुट होने की बाध्यता बन जायेगी। भाजपा अभी वीरभद्र का पूरा मामला ही तर्किक स्पष्टता के साथ जनता के सामने नही ला पा रही है। यदि यही स्थिति कुछ दिन ओर बनी रही तो भाजपा का गणित गड़बडाने की भी पूरी पूरी संभावना बनी हुई है। क्योंकि भाजपा के आरोप पत्र को जनता अब रस्म अदायगी से अधिक कुछ भी मानने को तैयार नही होगी यह तय है।