शिमला/शैल। पर्यावरण संरक्षण को लेकर पूरे विश्व में गंभीर चिन्तन और चर्चा चल रही है। जिसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पर्यावरण अधिनियम 1986 की अवहेलना को Scheduled offence अधिसूचित करने के साथ ही इसे मनीलॉडरिंग एक्ट के दायरे मे ला दिया गया है। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रब्यूलन का गठन भी पर्यावरण पर उठी चिन्ताओ का ही परिणाम है। दिल्ली में डीजल वाहनो पर लगा प्रतिबन्ध और हिमाचल में मनाली से रोहतांग के लिये अब सीएनजी और इलैक्ट्रिक वाहनो का प्रयोग और प्रयास इसी चिन्ता का परिणाम है। राज्यों के प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डो के जिम्मे पर्यावरण संरक्षण का ही सबसे बड़ा काम है। इसी के परिणामस्वरूप थर्मल सीमेन्ट प्लांट हिमाचल के लिये ब्लैक उद्योगों को सूची में है। खनन प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है और इसी लिये प्रदेश उच्च न्यायालय अवैध खनन की शिकायतों पर पूरी कड़ाई से कारवाई कर रहा है।
लेकिन क्या राज्य का प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, उद्योग विभाग और केन्द्र का प्रवर्तन निदेशालय इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी निभा पा रहे हैं या इन पर प्रदेश के खनन माफिया का पूरा दबाव चल रहा है। यह सवाल पिछले कुछ अरसे से चर्चा का विषय बना हुआ है। शैल को मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के सबसे बडे आद्यौगिक क्षेत्रा नालागढ़ उपमण्डल के 26 स्टोन क्रशरों के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15,16 और 19 के तहत प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने जनवरी 2016 में अतिरिक्त सीजेएम नालागढ की अदालत में मामले दायर किये थे। पर्यावरण अधिनियम के तहत मामले दर्ज होने के कारण इसकी जानकारी शिमला स्थित ईडी कार्यालय तक भी पंहुच गयी । पर्यावरण अवहेलना Scheduled offence होने के नाते ईडी कार्यालय ने भी इसमें अपने स्तर पर इसकी जांच शुरू कर दी।
ईडी की जांच में यह पाया गया कि स्टोन क्रशर 1.11.2011 तक पांच हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रा मे अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। जोकि पर्यावरण अधिनियम 1986 की धारा 15 और EIA अधिसूचना 2006 के प्रावधानों का सीधा उल्लघंन है। जांच रिपोर्ट में इस संद्धर्भ में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा 56 P NO. 19628/2009 दिनांक 27.2.12 को दिये गये फैसले का भी उल्लेख किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरण नियमों का उल्लघंन इन क्रशरो ने न केवल पर्यावरण को ही नुकसान पंहुचाया है। बल्कि अवैध रूप से करोड़ो का कालाधन भी अर्जित किया है। सूत्रों के मुताबिक ईडी के शिमला कार्यालय ने इस पर विस्तृत जांच के बाद ईडी के चण्डीगढ कार्यालय को अप्रैल 2016 में यह रिपोर्ट भेजकर इस मामले में विधिवत ईसीआई आर दर्ज करने की अनुशंसा की थी। जांच रिपोर्ट के मुताबिक यह स्टोन क्रशर कई वर्षो से इस तरह के अवैध खनन में संलिप्त रहे है। जो कि सारे संबधित विभागों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाता है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी हैरत तो यह है कि ई डी के चण्डीगढ़ कार्यालय में आज तक इस जांच रिपोर्ट पर कोई कारवाई नही की है। स्मरणीय है कि पिछले दिनो नालागढ क्षेत्र में चल रही अवैध खनन् गतिविधियों पर वहां तैनात पुलिस अधिकारी ने कारवाई की थी तो उसे सरकार ने वहां से बदल दिया था। इस स्थानान्तरण का प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी कडा संज्ञान लिया था। इस स्थानान्तरण को खनन माफिया के प्रभाव में उठाया गया कदम करार दिया गया था। इसी संद्धर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि ईडी के शिमला स्थित जिस अधिकारी ने इन स्टोन क्रशरों के खिलाफ ईडी में मामला दर्ज करने की सिफारिश की थी उसे भी ईडी से निकालकर वापिस प्रदेश सरकार में भिजवा दिया गया है। उसकी वापसी के लिये अब खनन माफिया की सक्रियता को लेकर भी कुछ हलको में चर्चाएं चल निकली है।
इस मामले में इतनी बडी जांच रिपोर्ट के बाद भी ईडी चण्डीगढ कार्यालय द्वारा अब तक कोई कारवाई न किया जाना चर्चा का विषय बन गया है। लेकिन इसी के साथ प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने आगे क्या कारवाई की इसको लेकर बोर्ड की ओर से बताया गया कि इस बारे में उद्योग निदेशालय को सूचना भेज दी गयी है। लेकिन जब स्टेट ज्योलोजिस्टस से इस बारे में बात की गयी तो उसने प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की ओर से ऐसी कोई जानकारी प्राप्त होने से साफ इन्कार कर दिया। यही नही जब सोलन स्थित खनन अधिकारी से इस बारे में जानकारी ली गयी तो उसने भी ऐसी कोई सूचना बोर्ड की ओर से आने के बारे में इन्कार कर दिया। यही नहीं जब सोलन स्थित खनन अधिकारी से इस बारे में जानकारी ली गई तो उसने भी ऐसी कोई सूचना बोर्ड की ओर से आने के बारे में इन्कार कर दिया। इन क्रशरों के खिलाफ अतिरिक्त सीजेएम की अदालत में बोर्ड की तरफ से मामले भेजे गये हैं लेकिन मामले भेजने के बाद भी क्रशर चल रहे हैं। उद्योग विभाग को इसकी कोई जानकारी ही नही है। ईडी का चण्डीगढ़ कार्यालय भी खामोश है। ऐसे में क्या इसे खनन माफिया के प्रभाव के रूप में नही देखा जाना चाहिए।