भाजपा कार्य समिति में महेश्वर, बालनाहटा, पठानिया, चौधरी तथा रूप सिंह ठाकुर शामिल

Created on Monday, 03 October 2016 14:08
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। भाजपा की प्रदेश कार्य समिति में महेश्वर सिंह, खुशी राम बालनाहटा, राकेश पाठानिया, महन्तराम चौधरी और रूप सिंह ठाकुर को शामिल किया गया है। इनको ऊना की बैठक के लिये आमन्त्रित भी कर लिया गया है। ऊना में हो रही बैठक में शान्ता कुमार शायद शामिल न हो। कार्यसमिति में शामिल किये गये इन लोगों और शांता की संभावित गैर हाजिरी को लेकर पार्टी के भीतर नये समीकरणों की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। पार्टी के अन्दर शान्ता और धूमल दो विपरीत धु्रवों के रूप में जाने जाते रहे हैं यह सर्व विदित है। अब केन्द्र में जब प्रचण्ड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आयी है तो भी शान्ता कुमार मोदी सरकार और संगठन को लेकर कितने प्रसन्न रहे है यह उनकी समय-समय पर आयी प्रतिक्रियाओं से जग जाहिर हो चुका है। बल्कि इन प्रतिक्रिओं से यही संदेश गया है कि केन्द्र सरकार में कोई बड़ी जिम्मेदारी न मिल पाने का मलाल उन पर हावि हो चुका है।
इस परिदृश्य में यदि प्रदेश भाजपा का आज आकलन किया जाये तो इसमें धूमल और केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्रा जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के दो नये धु्रव बन गये हैं और शांता लगभग हाशिये पर जा चुके हैं। स्मरणीय कि प्रदेश में दो बार शान्ता को मुख्यमन्त्री बनने का मौका मिला और दो ही बार धूमल को। शान्ता दोनां बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाये और दोनों ही बार विधायक का चुनाव भी हार गये। इसके विपरीत धूमल ने दोनां बार कार्यकाल भी पूरा किया और लगातार चौथी बार विधायक हैं। जबकि धूमल के पहले कार्यकाल में पार्टी के विधायक और मन्त्रा ही विरोध और विद्रोह पर उत्तर सदन से गैर हाजिर होने के मुकाम पर जा पंहुचे थे। दूसरे कार्यकाल में तो नाराजगी का एक ऐसा ताना बाना खड़ा हुआ जो हिलोपा के गठन के रूप में सामने आया। संयोगवश दोनो बार इस विरोध और विद्रोह के लिये शान्ता कुमार के आर्शीवाद की भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
लेकिन इस बार केन्द्र में इतने प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनने के बाद भी प्रदेश में भाजपा के तेवर उसके अनुरूप नही हैं। प्रदेश में मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह इस समय के लिये केन्द्र की जांच ऐजैन्सीयों सीबीआई और ईडी की जांच झेल रहे हैं। वीरभद्र इस जांच के लिये केन्द्र सरकार पर राजनीतिक द्विवेश के साथ काम करने का आरोप लगा रहे हैं। जिस ढंग से वीरभद्र जनता में अपना पक्ष रख रहे हैं उससे उनके प्रति सहानुभूति पैदा होने की संभावना तक बनती जा रही है। क्योंकि भाजपा की ओर से कोई भी व्यक्ति वीरभद्र प्रकरण को पूरी स्पष्टता के साथ जनता में रख ही नही पा रहा है। ऐसा लगता है कि उन्हें स्वयं भी इस मामले की पूरी बारीक समझ नहीं है। संभवतः इसी कारण से भाजपा का कोई भी नेता इस प्रकरण पर वीरभद्र को घेर नही पा रहा है। जबकि प्रदेश विधानसभा का अगला चुनाव इसी मुद्दे पर केन्द्रित रहने की संभावना बनती जा रही है। वीरभद्र इसी मुद्दे को भाजपा के खिलाफ पलटने की पूरी तैयारी मे हैं।
भाजपा ने अभी वीरभद्र सरकार के खिलाफ आरोप पत्रा लाने की घोषणा की है और इस आश्य की एक कमेटी भी गठित कर दी है। लेकिन जो आरोप पत्र इससे पहले जारी किया गया था उसको लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखायी है। इससे यही संदेश जाता है कि पार्टी भ्रष्टाचार के प्रति नही बल्कि इसको राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने पर विश्वास रखती है। संभवतः इसी कारण से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता वीरभद्र के प्रति ज्यादा आक्रामक नही हो पा रहे हैं। ऐसे मे पार्टी चुनावों के लिये किस तरह की रणनीति लेकर आती है उसका अन्दाजा इस बैठक के बाद लग जायेगा। लेकिन इस समय यदि पार्टी वीरभद्र के खिलाफ तीव्र आक्रामकता के तेवर नही अपनाती है तो वीरभद्र उल्टे केन्द्र के खिलाफ आक्रामकता अपनाने का प्रयास करेगें। क्योंकि अभी विक्रमादात्यि ने बंसल आत्महत्या मामले में आये अमित शाह के नाम को जिस तरह से उठाया है उससे यह स्पष्ट हो जाता है। फिर नड्डा भी संजीब चतुर्वेदी मामले में आगे और घिरते नजर आ रहे हैं। वीरभद्र ने धूमल और एचपीसीए के घेरने के लिये जो भी प्रयास किये हैं वह उल्टे पडे हैं ऐसे में वह अब धूमल मामलों को उछालने की स्थिति में नही है।
इस परिदृश्य में भाजपा के भीतर किस तरह के नये समीकरण उभरते है और उनके केन्द्र में कौन रहता है नड्डा या धूमल या फिर कोई तीसरा चेहरा उभरता है। इसके संकेत कार्यसमिति की इस बैठक में उभर कर सामने आ जायेंगे ऐसा माना जा रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेष्कां की नजर में इस समय वीरभद्र और कांग्रेस को घेरने में धूमल से ज्यादा सशक्त चेहरा भाजपा के पास नही है।