शिमला/शैल। प्रदेश सरकार ने इस मानसून सत्र के अन्तिम दिन नगर एंव ग्राम नियोजन अधिनियम 1977 में संशोधन पारित किया है। संशोधित अधिनियम में अवैध भवन निर्माणों को नियमित करने के लिये कुछ फीस का प्रावधान करके नियमितिकरण का रास्ता खोल दिया गया। ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर पूरे प्रदेश में भवन निर्माणों को नियोजित करने के लिये यह अधिनियम लागू है। नगर निगम और नगरपालिका क्षेत्रों में तो इस अधिनियम से पहले से ही भवन निर्माणों को नियोजित करने की व्यवस्था लागू है। लेकिन इस सबके बावजूद भवन निर्माण नियमों का उल्लंघन होता आया है और इस उल्लंघन को नियमित करने के लिये सरकार रिटैंशन पाॅलिसियां लाकर ऐसे निर्माणों को नियमित करती रही। लोग नियमों का उल्लंघन करते रहे और सरकार उन्हें नियमित करती रही।
इस बार भी सरकार ने अध्यादेश जारी करके नियमितिकरण की योजना अधिसूचित की थी। इस योजना पर सभी क्षेत्रों से तीव्र आपत्तियां मुखरित हुईं। यहां तक की नगर निगम शिमला के हाऊस ने ध्वनिमत से इस योजना पर अपना विरोध दर्ज करवाया। लेकिन इन सारे विरोधों/आपत्तियों को सिरे से खारिज करते हुये विधानसभा में सरकार ने इसे पारित करवा लिया। राज्यपाल की स्वीकृति के लिये भी भेज दिया गया है और स्वीकृति के बाद यह लागू भी हो जायेगा।
लेकिन इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय की जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की खण्ड पीठ ने एक फैसले में इस प्रस्तावित नियमितिकरण को एकदम असंवैधानिक करार दे दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि-It is expected from the State to maintain rule of law. The action of the State Government to regularize the unauthorized construction/encroachments is suggestive of non-governance. प्रदेश में इससे पहले सात बार रिटैन्शन पाॅलिसियां सरकार ला चुकी है। अन्तिम बार 2009 में रिटैंशन पाॅलिसी आयी थी। उस समय प्रदेश में 8198 मामले अवैध निर्माणों के थे जिनमे से 2108 निर्माण इस पालिसी के तहत नियमित हो गये थे और 6090 मामले बचे थे। लेकिन इस बार यह संशोधन लाते समय अवैधनिर्माणों की संख्या 13000 कही गयी है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि इस रिटैंशन पाॅलिसी के बाद सात हजार नये अवैध निर्माण खड़े हुए हैं। शिमला में दस-दस मंजिलें भवन खड़े हुए हैं। पांच और इससे अधिक मंजिलों वाले भवनों की सूची नगर निगम शिमला से कई बार विधानसभा पटल तक आ चुकी है। हर बार रिटैंशन पाॅलिसी आने के बाद अवैध निर्माण रूकने के स्थान पर बढ़े ही हैं।
अवैध निर्माणों के नियमितिकरण पर चिन्ता जताते हुये अदालत ने कहा है कि Thousands of unauthorized constructions have not been raised overnight. The Government machinery was mute spectator by letting the people to raise unauthorized constructions and also encroach upon the government land. Permitting the unauthorized construction under the very nose of the authorities and later on regularizing them amounts to failure of constitutional mechanism/machinery. The State functionary/machinery has adopted ostrich like attitude. The honest persons are at the receiving end and the persons who have raised unauthorized construction are being encouraged to break the law. This attitude also violates the human rights of the honest citizens, who have raised their construction in accordance with law. There are thousands of buildings being regularized, which are not even structurally safe.
The regularization of unauthorized constructions/encroachments on public land will render a number of enactments, like Indian Forest Act 1927, Himachal Pradesh Land Revenue Act, 1953 and Town and Country Planning Act, 1977 nugatory and otiose. The letter and spirit of these enactments cannot be obliterated all together by showing undue indulgence and favouritism to dishonest persons. The over-indulgence by the State to dishonest persons may ultimately lead to anarchy and would also destroy the democratic polity. इस परिदृष्य में अब जनता की निगाहें राजभवन पर टिकी हैं कि जनता और अदालत की चिन्ता व नाराजगी का सम्मान करते हुये माहमहिम इस संशोधन को स्वीकृति प्रदान करते हैं या वापिस लौटाते हैं। क्योंकि खेल विधेयक आजतक राजभवन में लंबित है।