शिमला। शिमला के रिज स्थित की 17.50 करोड रूपये में रिपेयर किये जाने का अनुबन्ध 10 सिम्बर 2014 का हस्ताक्षरित हुआ है। आर टी आई के माध्यम से 27.2.16 को बाहर आये इस अनुबन्ध की शर्त संख्या 17 के अनुसार रिपेयर का काम दो वर्षो में पूर्ण होना है।
सितम्बर 2014 में हुए अनुबध के दो वर्ष सितम्बर 2016 में पूरे हो जायेगें। इसके मुताबिक केवल पांच माह का समय शेष बचा है। अनुबन्ध के मुताबिक इसमें 15 करोड़ का तो सिविल वर्क ही होना है। लेकिन अभी तक मौके पर कोई काम शुरू ही नहीं हुआ है इसमें बहुत सारी अनुमतियां प्रदेश सरकार और नगर निगम शिमला से आनी है। इन अनुमतियों की स्थिति इस समय क्या है इस पर अधिकारिक तौर पर कोई कुछ भी कहने से बच रहा है। ऐसे में पांच माह मे 17.50 करोड़ का काम कैस पूरा होगा अपने में ही कई सवाल खडे कर जाता है। इस चर्च की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोई भी तकनीकी जानकार यह मानने को तैयार नही है कि इसकी रिपेयर पर 17.50 करोड़ रूपये खर्च हो सकते है क्योंकि यह पूरा भवन कहीं से भी लेश मात्र भी क्षतिग्रस्त नहीं है।
इस चर्च का जिर्णोद्वार भारत सरकार के माध्यम से एशियन विकास बैक से लिये गये कर्ज से
किया जा रहा है। यह चर्च शहर की हैरिटेज संपतियों में शामिल है। हैरिटेज के तहत सारा निर्माण कार्य प्रदेश का पर्यटन विभाग करवा रहा है और लिये यू एस क्लब में पर्यटन विभाग को अतिरिक्त कार्यालय की सुविधा दी गयी है। पर्यटन विभाग स्वयं मुख्य मंत्री के पास है और उनके प्रधान सचिव अतिरक्त मुख्य सचिव वी सी फारखा के पास विभाग सचिव की जिम्मेदारी है। पर्यटन विकास के लिये प्रदेश में अलग से एक बोर्ड गठित है जिसके उपाध्यक्ष पूर्व पर्यटन मन्त्री विजय सिंह मनकोटिया है । पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष वीरभद्र के विवस्त हरीश जनारथा है। यह सभी लोग पर्यटन विकास बोर्ड के सदस्य भी है। हैरिटेज संरक्षण के लिये हैरिटेज कमेटी भी गठित है। इस रिपेयर के लिये हस्ताक्षरित अनुबन्ध के अनुसार यह सारा काम हैरिटेज मानदण्डो के अनूरूप होना है। इस सबका अर्थ यह हो जाता है कि 17.50 करोड़ की रिपेयर का प्रारूप निश्चित तौर पर इन सबके हाथों से गुजरा है और इसके लिये सबकी अनुमति रही होगी । अब पांच माह में यह काम कैसे पूरा किया जाता है या इसमें समय और बढाया जाता है। यह तो आगे ही पता चलेगा। लेकिन यह भी सवाल उठ रहा है कि 2014 में हस्ताक्षरित हुए अनुबन्ध पर अब तक कोई कारवाई क्यों नहीं हुई ? दूसरी ओर इस अनुबन्ध पर पर्यटन विभाग के साथ इण्डिया के कर्मचारियों/ पदाधिकारियों की ओर से हस्ताक्षरित किये गये है। स्मरणीय है कि चर्च आफ नार्थ इण्डिया का गठन छः चर्च सूमहों को एक संस्था के तहत लाने के लिये किया गया था। लेकिन सी एन आई के गठन के बाद इसके सदस्यों /पदाधिकारियों पर चर्च एंवम अन्य संपत्तियों के दुरूप्योग और उनको गल्त ढंग से बेचने आदि के आरोप जब सामने आने लगे तब कुछ लोगों ने सी एन आई के गठन को यह कहकर अदालत में चुनौती दे दी की यह संस्था षडयंत्र करके इन संपत्तियों को हडपने का प्रयास कर रही है। इसमें देश केे कई हिस्सों में सी एन आई के लोगों पर बने आपराधिक मामलों में सजा तक भी हो चुकी है। इसी सबको सामने रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सी एन आई के गठन को ही अवैध करार देते हुए उसे ऐसी संपत्तियों से तुरन्त प्रभाव से बेदखल करके यह संपत्तियां उन मूल संस्थाओं को वापिस कर दी है जिनके पास यह 1948 में भारत सरकार के फैसले के बाद कर दी थी। क्योंकि अग्रेंजी शासन काल चर्च और अन्य संपत्तियो की देख रेख की जिम्मेदारी सरकार के पास थीं लेकिन 1948 में ही भारत सरकार ने हिन्दु धार्मिक संस्थाओें की संपत्तियों की तर्ज पर इनकी जिम्मेदारी भी स्थानीय संस्थाओं को सौंप दी थी। हिमाचल में भी ऐसी संपत्तियों को लेकर बडी विवादित स्थित है। ऐसे में सी एन आई को लेकर आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी पर्यटन विभाग का सी एन आई के साथ अनुबन्ध साईन करना कई सवाल खडे करता है।