क्या सरकार कर्ज लेकर घी पीने को चरितार्थ कर रही है?

Created on Thursday, 27 February 2025 05:21
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार कर्ज लेकर घी पीने के चार्वाक दर्शन का अनुसरण कर रही है या रोम जल रहा था नीरो बांसुरी बजा रहा था को दोहरा रही है। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो रहे हैं क्योंकि सरकार हर माह कर्ज लेकर काम चला रही है। लेकिन सरकार अपने अनावश्यक खर्चों पर रोक नहीं लगा पा रही है। अभी सरकार ने वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल को लीज पर देने के लिये एक कंसल्टेंट की सेवाएं लेने का फैसला लिया है। यह कंसलटेंट लीज की शर्तें तय करेगा। जब सरकार के दिल्ली के हिमाचल भवन को एक देनदारी अदा न कर पाने की एवज में उच्च न्यायालय ने अटैच कर दिया था तब पूरे पर्यटन विभाग की कारगुजारी चर्चा में आ गयी थी। उच्च न्यायालय ने अठारह होटलों को बन्द करने के आदेश जारी कर दिये थे। तब भारत सरकार से सेवानिवृत सचिव तरूण श्रीधर ने सरकार और पर्यटन विभाग को इस संकट से उभारने के लिये निःशुल्क अपनी सेवाएं प्रदान करने का प्रस्ताव दिया था। क्योंकि वह एक समय पर्यटन विकास निगम के प्रबंध निदेशक रह चुके थे। तरुण श्रीधर की सेवाएं लेकर पर्यटन निगम और विभाग की कार्य प्रणाली में कुछ सुधार आया है जबकि सरकार श्रीधर की पूरी रिपोर्ट पर अमल नहीं कर पायी है। आज सरकार के पास श्रीधर की सेवाएं उपलब्ध हैं। सरकार में वरिष्ठ आईएएस अफसर की एक लम्बी लाइन उपलब्ध है। वित्तीय निवेश पर राय देने के लिये सलाहकार उपलब्ध है यह सारा कुछ उपलब्ध होते हुए भी जब सरकार एक लीज की शर्त तय करने के लिये कंसल्टेंट की सेवाएं लेने पर आ जाये तो उसे क्या कहा जायेगा? क्या सरकार को अपनी अफसरसाही पर विश्वास नहीं रहा है या फिर किसी व्यक्ति विशेष को लाभ देने के लिये यह रास्ता अपनाया जा रहा है।
सरकार पर केंद्रीय धन के दुरुपयोग के आरोप विपक्ष लम्बे अरसे से लगाता आ रहा है जब रामपुर में आपदा राहत के नाम पर प्रधानमंत्री आवास योजना में आया पैसा उन लोगों को बांट दिया गया जिन्होंने कभी इसके लिये आवेदन ही नहीं किया था। जब यह चर्चा में आया तो उन लोगों को रिकवरी नोटिस भेज दिये और अब यह मामला उच्च न्यायालय में पहुंच गया है। केन्द्रीय योजनाओं के पैसे से कर्मचारियों का वेतन दिया जा रहा है। यह आरोप समग्र शिक्षा अभियान के संद्धर्भ में सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पत्र विपक्ष द्वारा सार्वजनिक करने से प्रमाणित हो चुका है। प्रदेश वित्तीय संकट से गुजर रहा है और कभी भी श्री लंका जैसे हालात हो सकते हैं यह चेतावनी सत्ता संभालते ही मुख्यमंत्री ने दे दी थी। यह चेतावनी देने के बाद भी सी.पी.एस. की नियुक्तियां करना और प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें अवैध करार देने के बाद उस मामले में सर्वाेच्च न्यायालय में उनके बचाव के लिये करोड़ों खर्च करने का आरोप विपक्ष लगा रहा है। फिर इस में वकालत कर रहे वकीलों के नाम से यह इंगित हो जाता है कि सही में करोड़ों खर्च किये जा रहे होंगे।
विधायक प्राथमिकता योजनाओं को लेकर विपक्ष अरसे से सरकार के खिलाफ लामबन्द है। इसी लामबन्दी के परिणाम स्वरुप विपक्ष ने बजट पूर्व होने वाली प्राथमिकता बैठकों का बहिष्कार किया। संभव है कि विपक्ष सर्वदलीय बैठक का भी बहिष्कार करें। सुक्खू सरकार वित्तीय संकट और कुप्रबंधन के लिये लगातार विपक्ष को कोसती आ रही है। सरकार के इस आरोप में कितना दम है यदि इस बहस और आंकड़ों में भी जायें तो सरकार के मंत्रियों के बयानों से ही यह स्पष्ट हो जाता है की प्रदेश में वित्तीय संकट है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब संकट है तो उसमें अनुत्पादक खर्चों से तो परहेज किया जाना चाहिए था। लेकिन सी.पी.एस. और सलाहकारों तथा विशेष कार्यधिकारियों की कैबिनेट रैंक में एक लम्बी फौज खड़ा करने की क्या आवश्यकता थी। मंत्रियों के दफ्तरों की रिपेयर और साज सजा के नाम पर करोड़ों खर्च करने की क्या आवश्यकता है। जब वित्तीय संकट हो और विधानसभा का बजट सत्र पन्द्रह दिन बाद आने वाला हो तो उस समय जो मुख्यमंत्री अपने परिवार और मित्रों के साथ छुटियां मनाने विदेश चला जाये उनकी प्रदेश और सरकार के बारे में गंभीरता को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। यही कहा जायेगा कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसरी बजा रहा था। कल कोई यदि आर.टी.आई. में यह जानकारी मांग ली जाये कि मुख्यमंत्री की इस यात्रा पर सरकार का कितना खर्च हुआ है तो शायद इसका उत्तर यह कहकर नहीं टाला जा सकेगा कि यह प्राइवेट और व्यक्तिगत जानकारी है। क्योंकि मुख्यमंत्री इस यात्रा पर न कोई अवकाश लेकर तथा न ही अपना चार्ज किसी दूसरे को देखकर गये थे। क्योंकि मुख्यमंत्री के छुटी पर जाने के लिये कोई निश्चित नियम नहीं है और इनके आभाव में वह हर समय कार्यशील मुखिया रहता है और आर.टी.आई. के दायरे में आता है। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो जाते हैं कि वित्तीय संकट के कारण प्रदेश लगातार कर्ज की दलदल में धस्ता चला जा रहा है ।