क्या सुक्खू सरकार भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर है

Created on Sunday, 22 December 2024 19:31
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार सही में भ्रष्टाचार के खिलाफ है? क्या यह सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कड़ा कानून बन पायेगी? यह सवाल विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भाजपा द्वारा लाये गये स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री के जवाब के बाद उभरे हैं। क्योंकि मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा है कि उनकी सरकार इस आश्य का कानून बनाये जाने के प्रति गंभीर है। भ्रष्टाचार सही में हर व्यवस्था के लिये एक बहुत बड़ी चुनौती रहता है। हर सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरैन्स के दावे करती है। हिमाचल प्रदेश में स्व. डॉ. परमार के कार्यकाल में स्व. हरि सिंह और स्व. ठाकुर कर्म सिंह के बीच उभरा विवाद भ्रष्टाचार के खिलाफ पहला आरोप पत्र कहा जा सकता है। डॉ. परमार के ही कार्यकाल में खिड़की सकैण्डल चर्चा में आया। इस पर स्व. सत्य देव बुशहरी की लघु पुस्तिका हिमाचल पर-मार सामने आयी यह दूसरा आरोप पत्र था। इसके बाद शान्ता कुमार और स्व. वीरभद्र सिंह, प्रो. प्रेम कुमार धूमल, जयराम और सुक्खू सरकार तक विपक्ष द्वारा सत्तारूढ़ सरकारों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करने का चलन रहा है। राष्ट्रपति तक यह आरोप पत्र सौंपे गये हैं। मेजर विजय सिहं मनकोटिया ने एक ऑडियो सीडी जारी की थी 2017 में एक वीडियो आरोप पत्र जारी हुआ था। कांग्रेस के सारे विधायकों से जवाब मांगा गया था। हिमाचल ऑन सेल के आरोप लगे हैं। इन आरोपों पर तीन बार जांच आयोग बैठे हैं। लेकिन किसी का कोई ठोस परिणाम निकला हो ऐसा कुछ सामने नहीं आया है। सरकारी जमीन पर होटल बनाकर मामला सामने आने के बाद उस जमीन का तबादला प्राइवेट जमीन के साथ विशेष परिस्थितियों में अनुमोदित हो गया। बिजली बोर्ड से जल विद्युत परियोजना लेकर प्राइवेट पार्टी को दे दी गयी। समझौता हुआ कि विद्युत बोर्ड का निवेश 16% ब्याज के साथ लौटा दिया जायेगा। लेकिन जब यह राशि 92 करोड़ हो गयी तो इसे बट्टे खाते में डाल दिया गया।
31 अक्तूबर 1997 को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक रिवॉर्ड स्कीम अधिसूचित हुई स्कीम में कहा गया की शिकायत मिलने के तीस दिन के भीतर प्रारंभिक जांच करके अगर मामला बनता होगा तो नियमित जांच की जायेगी। शिकायतकर्ता को सरकार को होने वाले लाभ का 25% दिया जायेगा। 10% तो प्रारंभिक जांच पर ही दे दिया जायेगा। स्कीम के तहत 21 नवम्बर 1997 को ही शिकायत दर्ज करवायी गयी। लेकिन इस पर कभी कोई कारवाई नहीं हुई। शिकायतकर्ता को प्रताड़ित किया जाता रहा है। यह मामला किसी संद्धर्भ में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सितम्बर 2018 में दिये फैसले में कहा की लाभार्थियों को मिले लाभों को 12% ब्याज के साथ वसूल किया जाये। लेकिन इस पर आज तक पूरा अमल नहीं हुआ है। शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला साथ लगाकर सरकार को प्रतिवेदन 2018 में ही दे दिया जिसका आज तक जवाब नहीं आया है। अभी कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान एक आरोप पत्र जारी किया था जिस पर दो वर्ष में कोई कारवाई सामने नहीं आयी है। अभी मुख्यमंत्री ने जिस मुद्दे की चर्चा पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून लाने की बात की है वह मुद्दा स्वयं एक जांच मांगता है। नादौन के राजा नादौन के पास लैण्ड सीलिंग के बाद केवल तीन सौ कनाल जमीन बची थी। राजस्व रिकॉर्ड में इसके अन्दराज में ताबे हकूक बर्तन बर्तनदारान दर्ज है जिसका अर्थ है कि इस जमीन की मालिक सरकार है। राजा नादौन की एक लाख कनाल से ज्यादा जमीन सरकार को चली गयी थी। इस संबंध में उस समय के अदालती फैसले पूरी तरह स्पष्ट हैं। ऐसे में सीलिंग के बाद राजा नादौन द्वारा बेची गयी हर जमीन जांच के दायरे में आती है। 2011 में सर्वाेच्च न्यायालय ने अपने फैसले में देश के सारे मुख्य सचिवों को ऐसी जमीनों की सुरक्षा के निर्देश दे रखे हैं। जिनकी अनुपालन हिमाचल में नहीं हुई है। इसलिये इसकी जांच किया जाना आवश्यक हो जाता है।
भ्रष्टाचार पर प्रदेश की इस वस्तुस्थिति के परिदृश्य में यह उम्मीद करना कि वर्तमान सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कानून ला पायेगी बेमानी लगता है। हो सकता है कि आने वाले समय में कोई उच्च न्यायालय के दरवाजे पर इसके लिये दस्तक दे दे। संभव है कि इस समय जिस पीढ़ी के लोग विधानसभा में प्रदेश का नेतृत्व कर रहे हैं उन्हें प्रदेश में हुये भूमि सुधारों की पूरी जानकारी ही न हो। लैण्ड सीलिंग के संद्धर्भ में जमीन की पूरी परिभाषा की ही जानकारी न हो। ऐसे में यदि मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार पर कानून लाने से पहले ऊपर चर्चित किये गये मामलों की सही जानकारी जुटाकर इसकी ही जांच करवा पाये तो यह उनका एक बड़ा योगदान माना जायेगा।