क्या कानून बनाकर अनुबंध कर्मचारियों के लाभ रोके जा सकते हैं?

Created on Sunday, 22 December 2024 17:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने विधानसभा के इस शीतकालीन सत्र में सरकारी कर्मचारी भर्ती और सेवा शर्तें अधिनियम पारित करके इसे 12 दिसम्बर 2003 से ही प्रभावी होने का प्रावधान किया है। सरकार के इस अधिनियम पारित करने से राज्य में कार्यरत हजारों कर्मचारीयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ हिमाचल प्रदेश ने इस अधिनियम के पारित होने का संज्ञान लेते हुये सरकार से इसे वापस लेने की मांग की है। संघ के अनुसार इस अधिनियम का 2003 के पश्चात लोकसभा सेवा आयोग के माध्यम से नियुक्त किये कॉलेज प्रवक्ताओं पर पड़ेगा। संघ का कहना है कि कॉलेज प्रवक्ताओं ने 2003 से लम्बी लड़ाई लड़कर न्यायालय के माध्यम से न्याय प्राप्त किया है। इस न्याय को इस कानून के माध्यम से प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है। यदि सरकार इस फैसले को वापस नहीं लेती है तो संघ ने सारे प्रभावितों को लामबंद करके आन्दोलन का रास्ता अपनाने की चेतावनी भी दी है।
स्मरणीय है कि हिमाचल सरकार ने अनुबंध के आधार पर नियुक्तियों की नीति 2003 में अपनायी थी। लोक सेवा आयोग के माध्यम से परीक्षा पास करके आये अभ्यार्थियों को अनुबंध के आधार पर ही नौकरियां दी गयी। नियमित होने के लिये अनुबंध काल 8 वर्ष, 6 वर्ष, पांच वर्ष और तीन वर्ष तक लाया गया। हर सरकार ने अपने अनुसार अनुबंध काल में परिवर्तन किया। सुक्खू सरकार ने दिसम्बर 2023 में यह घोषित किया कि 2024-25 में दो वर्ष का अनुबंध काल पूरा कर चुके कर्मचारियों को नियमित कर दिया जायेगा। ऐसे में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि सरकार को एक वर्ष में अपना फैसला क्यों बदलना पड़ा और वह भी अधिनियम के माध्यम से। केंद्र सरकार ने 2003 में ही न्यू पैन्शन स्कीम अधिसूचित की थी। इसके तहत 2004 में नौकरियों में लगे लोग न्यू पैन्शन के दायरे में आ गये और अपना अंशदान उसमें देने लगे। कांग्रेस ने विधानसभा जीतने के लिये ओल्ड पैन्शन स्कीम फिर से लागू करने की गारन्टी दे दी। सरकार बनने के बाद ओल्ड पैन्शन तो लागू कर दी गई लेकिन न्यू पैन्शन स्कीम के तहत प्रदेश के कर्मचारियों का जो अंशदान करीब नौ हजार करोड़ केंद्र के पास जमा हो चुका था वह इस सरकार को वापस नहीं मिला क्योंकि नियम नहीं था। इससे सरकार का सारा गणित बिगड़ गया।
दूसरी ओर देश भर में अनुबंध कर्मचारी अपनी सेवा शर्तों को लेकर अदालतों तक पहुंचे गये। सर्वाेच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में दिये एक फैसले में स्पष्ट कहा है कि बारह मासी स्थायी प्रकृत्ति वाली नौकरियों में अनुबंध के आधार पर नियुक्ति देना संविधान के अनुच्छेद चौदह और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की अवहेलना है। सर्वाेच्च न्यायालय ने अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों को पहली नियुक्ति की तिथि से ही वरियता और अन्य लाभों का पात्र करार दे दिया है।
हिमाचल उच्च न्यायालय में भी इस आश्य की याचिकाएं आ चुकी है। हिमाचल सरकार अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्ति की तिथि से वित्तीय लाभ देने की स्थिति में नहीं है। अदालत में मामलों को लगवाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प सरकार के पास है नहीं। बल्कि नवम्बर में उच्च न्यायालय ने इन मामलों में अपनाई जा रही अनावश्यक देरी के लिये सरकार के प्रधान सचिव पर एक लाख का जुर्माना तक लगा दिया और निर्देश दिये कि यह जुर्माना प्रधान सचिव से वसूला जाये। अनुबंध कर्मचारियों के हजारों मामले सरकार के पास लम्बित है जिन्हें वित्तीय लाभ नियुक्ति की तिथि से दे पाना सरकार के लिये कठिन होगा। इस समय करीब चालीस हजार कर्मचारी अनुबंध के आधार पर अपनी सेवाएं सरकार को दे रहे हैं जिन्हें सिर्फ अदालत के फैसले के बाद नियमित करना होगा और वित्तीय लाभ देने पड़ेंगे। चर्चा है कि इससे बचने के लिये ही 2024 में यह अधिनियम लाकर इसे दिसम्बर 2003 से प्रभावी बनाने का रास्ता अपनाया गया है। अनुबंध के अतिरिक्त आउटसोर्स कर्मचारी भी बारह मासी और स्थायी नौकरी की श्रेणी में आते हैं। यदि अनुबंध कर्मीयों के लिये संविधान का अनुच्छेद चौदह और नीति निर्देश सिद्धांत पिक्चर में आते हैं तो आउटसोर्स कर्मियों के लिये क्यों नहीं ? इसी के साथ यह सवाल अहम हो जाता है कि जब ऐसी नौकरियां संविधान की अवमानना है तो क्या कोई राज्य सरकार ऐसा कानून लाकर स्वयं संविधान की अवमानना की दोषी नहीं बन जाती है। यदि सुक्खू सरकार के इस कानून को अदालत में चुनौती दी गयी तो यह सारे सवाल उठेंगे यह तय है।