शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के सत्ता में दो साल पूरे होने जा रहे हैं। सरकार इस अवसर पर एक समारोह का आयोजन करने जा रही है। लेकिन भाजपा इस आयोजन के औचित्य पर सवाल उठाते हुये पूरे प्रदेश में विरोध प्रदर्शन का आयोजन करते हुये समारोह के दिन राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपने जा रही है। वैसे तो सत्ता पक्ष और विपक्ष में आयोजन तथा विरोध एक सामान्य राजनीतिक रस्म अदायगी मानी जाती है। लेकिन राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य और हिमाचल में राज्यसभा चुनाव के बाद जिस तरह के रिश्ते सत्तापक्ष और विपक्ष में बन चुके हैं उसके परिपेक्ष में भाजपा के इस विरोध प्रदर्शन के मायने गंभीर हो जाते हैं। राज्यसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के छः विधायक और तीन निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गये। इन नौ स्थानों पर लोकसभा के साथ ही विधानसभा के लिये उपचुनाव हुये। कांग्रेस लोकसभा की चारों सीटें हार गयी परन्तु विधानसभा के लिये छः सीटों पर जीत गयी। विधायकों के इस तरह पाला बदलने में धन बल की भूमिका का पता लगाने के लिये पुलिस में मामला दर्ज करवाया गया। जो अब तक लंबित चल रहा है। पाला बदलने वाले कुछ विधायकों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ मामले दर्ज करवा रखे हैं। इन्हीं मामलों के साथ ई.डी. और आयकर विभाग भी प्रदेश में दस्तक देकर छापेमारी कर चुके हैं। छापेमारी के बाद ई.डी. कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी कर चुकी है और भी गिरफ्तारीयां होने की संभावना है। मामले के तार सहारनपुर तक पहुंच चुके हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान एक ऑडियो वायरल हुआ था। इस मामले में केन्द्र की सीआरपीएफ की एक आदमी को सुरक्षा तक उपलब्ध हो चुकी है। कुछ अधिकारियों और राजनेताओं तक ई.डी. के पहुंचने की संभावना बन गयी है। ई.डी. का इस तरह का दखल प्रदेश में पहली बार हुआ है।
इसी के साथ राज्यसभा चुनाव के बाद प्रदेश की वित्तीय स्थिति भी चर्चा में आ गयी है। हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में हिमाचल सरकार की परफॉरमैन्स को प्रधानमंत्री ने स्वयं मुद्दा बनाकर उछाला है। इसी बीच प्रदेश उच्च न्यायालय के कुछ फैसलों ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन और समझदारी पर गंभीर सवाल उठा दिये हैं। स्वयं राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के समारोह में बागवानी मंत्री की उपस्थिति में वित्तीय स्थिति पर सवाल उठाये हैं। स्वभाविक है कि जब कोई सरकार वित्तीय मुहाने पर ऐसे विवादित हो जाये तब विपक्ष को सरकार को घेरन के लिये एक बहुत ही गंभीर मुद्दा मिल जाता है। इसी सबका परिणाम है कि सरकार के छः पूर्व मुख्य संसदीय सचिवों की विधायकी पर संशय बना हुआ है। इसी संशय के परिदृश्य में भाजपा के नौ विधायकों पर सदन की अवमानना का जो मामला लंबित चल आ रहा है उसको इसी अवसर पर उछाल कर उनके खिलाफ भी निष्कासन की कारवाई की तलवार लटकी होने की चर्चा ताजा हो गयी है ।
यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिये जनता को दस गारंटीयां दी थी इन गारंटी को पूरी तरह लागू कर पाना वर्तमान वित्तीय परिदृश्य में संभव ही नहीं है। इन गारंटीयों में से पांच को लागू कर दिये जाने का ब्यान हाईकमान के लिये तो सही हो सकता है लेकिन भुक्तभोगी जनता के लिये नहीं। फिर कांग्रेस संगठन के पुनर्गठन का काम भी इसी बीच होना है। उसके लिये पहली बार पर्यवेक्षक नियुक्त किये गये हैं। स्वभाविक है कि कार्यकर्ताओं पर टिप्पणी करने के साथ ही यह लोग सरकार पर भी टिप्पणियां करेंगे ही। क्योंकि सरकार बनने के बाद संगठन सरकार के फैसलों को ही जनता में ले जाता है। कार्यकर्ता की सक्रियता सरकार की सक्रियता पर निर्भर करती है। सरकार पर जब हर माह कर्ज लेने का सच सामने आयेगा तो कार्यकर्ता उसे कैसे झुठलायेगा। इसलिये इस समय सरकार के जश्न पर भाजपा का विरोध भारी पड़ने की संभावना लगातार बढ़ती जा रही है। फिर ई.डी ने जब कुछ गिरफ्तारियां कर ही रखी है तो उस मामले को अंतिम परिणाम तक पहुंचाने के लिये यदि कुछ अधिकारियों और राजनेताओं तक पहुंच जाती है तो उसके बाद एकदम सारी स्थितियां बदल जायेगी। जब सरकार जशन मना रही होगी तो उस समय भाजपा सरकार की नाकामियां जनता में रख रही होगी। जनता गारंटीयों का सच जानती है। क्योंकि भुक्त भोगी है। ऐसे परिदृश्य में ई.डी. की किसी भी कारवाई पर जनता में कोई प्रतिकूल संदेश नहीं जायेगा। बल्कि भाजपा का यह विरोध प्रदर्शन उसके लिए जमीन तैयार करेगा।