शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने अभी सस्ते राशन के नाम पर मिलने वाले आटे के दाम 2.70 पैसे और चावल 3 रूपये किलो बढ़ा दिये हैं। सीमेंट के दाम दस रूपये बढ़ा दिये हैं। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा है कि इस कांग्रेस सरकार के शासन में सीमेंट के दाम 70 रूपये प्रति बैग बढ़ाये गये हैं। नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा है कि जितना कर्ज उन्होंने पूरे कार्यकाल में लिया था उतना इस सरकार ने पौने दो साल में ही ले लिया है। जिस सरकार को सस्ते राशन के दाम बढ़ाने पड़ जाये उसकी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार प्रतिमाह एक हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज ले रही है। इतना कर्ज लेने के बाद भी सरकार कर्मचारियों, पैन्शनरों के देह भते और संशोधित वेतनमान के एरियर नहीं दे पायी है। इंजीनियरिंग कॉलेजों में बच्चों को पढ़ाने के लिये अध्यापक नहीं है। बच्चों को अपने आप पढ़ने के लिए कहा गया है। जब तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश धर्माणी से इस बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि टीचर भर्ती करने में डेढ़ वर्ष लगेगा। क्योंकि सरकार के पास पैसा नहीं है। जब संबंधित विभाग का मंत्री यह कहेगा तो उससे पूरी सरकार की कथनी और करनी का पता चल जाता है। कड़ी मेहनत कर प्रवेश परीक्षा में मैरिट के आधार पर बच्चों को सरकारी कॉलेजों में दाखिला मिला है और मंत्री यह कहे कि सरकार ने बच्चों को दाखिला लेने के लिये नहीं कहा था तो इससे सरकार की युवाओं के प्रति संवेदनशीलता और उसकी घोषणाओं का व्यवहारिक सच सामने आ जाता है।
सरकार ने विभिन्न सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाकर पांच हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाने का दावा किया है। कर्ज और दाम बढ़ाने के बाद भी जो सरकार कॉलेज में अध्यापकों का प्रबन्ध करने को प्राथमिकता न माने उसके बारे में आम आदमी क्या राय बनायेगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। ऐसी वस्तुस्थिति में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि आखिर इस पैसे का निवेश हो कहां रहा है? कांग्रेस का हर नेता इस पर चुप है क्योंकि हाईकमान का डर है। विपक्ष सरकार की इस स्थिति पर केवल रस्म अदायगी के लिये ब्यानबाजी कर रहा है। गंभीर मुद्दों पर विपक्ष की चुप्पी सन्देहास्पद है। सरकार ने जब पिछले छः माह के फैसले पलटते हुये सैकड़ो संस्थान बन्द कर दिये थे तब उस पर पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा करने के बाद उच्च न्यायालय में इस संद्धर्भ में याचिका दायर की थी। उसके बाद मुख्य संसदीय सचिवों के मामले में भाजपा के एक दर्जन नेताओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस याचिका पर लम्बे समय से फैसला सुरक्षित चल रहा है। भाजपा नेताओं को याचिकाकर्ता होने के नाते यह हक हासिल है कि यह फैसला शीघ्र सुनाये जाने की अदालत से गुहार लगाये। लेकिन भाजपा चुप है क्यों? यही नहीं विधानसभा उपचुनावों के दौरान सुधीर शर्मा ने नादौन एचआरटीसी द्वारा बनाये जा रहे ई-बस स्टैंड की जमीन खरीद का मामला उठाया था लेकिन अब पूरी भाजपा इस पर चुप है। देहरा में भाजपा प्रत्याशी होशियार सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी कमलेश ठाकुर के चुनाव शपथ पत्र पर गंभीर शिकायत दर्ज कराई थी। इस पर होशियार सिंह और पूरा भाजपा नेतृत्व खामोश है। जबकि इन मामलों की गंभीरता समझने वाले जानते हैं कि इनके उठने से प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य ही बदल जायेगा।
आज जब सरकार को संपन्नता के नाम पर आम आदमी की सुविधाओं में कटौती करनी पड़ रही है तब क्या यह सवाल विपक्ष को नहीं पूछना चाहिये की आखिर पैसे का निवेश हो कहां रहा है? क्या सरकार सही में फिजूल खर्ची कर रही है? जनता के मुद्दों पर विपक्ष की चुप्पी का अर्थ है सरकार को अघोषित समर्थन। यदि भाजपा द्वारा अदालत तक पहुंचाये गये मुद्दे सही में उसकी नजर में अर्थहीन है तो उन्हें तुरन्त प्रभाव से वापस लेकर सरकार को बिना किसी रुकावट के काम करने देना चाहिये। यदि भाजपा अपने में बंटी हुई है तो उसे यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लेना चाहिये। यह सही है कि विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने सामूहिक नेतृत्व के नाम पर लड़ा था। इसलिये जनता कांग्रेस को सत्ता में लायी थी। आज कांग्रेस का नेतृत्व किस तरह से परफारम कर रहा है उसे झेलना जनता की मजबूरी है लेकिन जनता की इस मजबूरी का स्वभाविक लाभ भाजपा को ही मिलेगा इसे गारंटी नहीं समझा जाना चाहिये। आज इस वित्तीय वर्ष के सात माह शेष बचे हैं अगले दो माह में सरकार की कर्ज लेने की सीमा भी पूरी हो जायेगी। उसके बाद सरकार कैसे चलेगी यह इस समय का गंभीर मुद्दा है। क्या इस मुद्दे पर इस विधानसभा सत्र में चर्चा हो पायेगी इस पर पूरे प्रदेश की निगाहें लगी रहेगी।