भुट्टो और राजेन्द्र राणा के स्टोन क्रेशर क्या अभी अवैध हुये?

Created on Sunday, 19 May 2024 19:22
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। नामांकन वापसी के बाद चुनाव प्रक्रिया अब अंतिम चरण में दाखिल हो चुकी है। अब चुनाव मैदान में कांग्रेस और भाजपा के अतिरिक्त निर्दलीयों के साथ कुछ अन्य दल भी है। इन दलों की मौजूदगी इसलिये महत्वपूर्ण हो जाती है की विधानसभा चुनाव कांग्रेस केवल 0.6 प्रतिशत वोट के अन्तराल से ही जीत हासिल कर पायी है। उस समय भी कांग्रेस के चुनावी हथियारों में कर्मचारियों को ओ.पी.एस. और महिलाओं को 1500 रूपये प्रति माह और युवाओं को पांच लाख रोजगार देने के वायदे उपलब्ध थे। अब सरकार को सत्ता में आये पन्द्रह माह का समय हो गया है। इस पन्द्रह माह के कार्यकाल में क्या सुक्खू सरकार 0.6 प्रतिशत के अन्तराल को फांन्द कर अपने पक्ष में दो-चार प्रतिशत की बढ़ौतरी अर्जित कर पायी है। यह सवाल इन चुनावों में एक बड़ा सवाल बनकर कांग्रेस के आम कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्षा तक सबसे बराबर जवाब मांग रहा है। क्योंकि ओ.पी.एस को लेकर कई निगमों बोर्डांे के कर्मचारी अपना रोष व्यक्त कर चुके हैं। 2016 में हुये वेतनमान संशोधन के बकाया का भुगतान न हो पाने के कारण कई पैन्शन संगठन चुनावों के बहिष्कार तक की धमकी दे चुके हैं। लाहौल-स्पीति की 803 महिलाओं के बाद बाकी प्रदेश में अभी पन्द्रह सौ पाने के लिये केवल फॉर्म भरवाने का ही काम चल रहा है। फिर पन्द्रह सौ पाने की पात्रता के लिये जितनी शर्तें लगा दी गयी हैं उसके बाद यह लाभ व्यवहारिक रूप से मिल पाना अपने में प्रश्नित होकर रह गया है। यही स्थिति रोजगार के क्षेत्र में युवाओं की होती जा रही है। सरकार में 70 हजार पद खाली चल रहे हैं। इनमें से पन्द्रह माह में सरकार कितने भर पायी है इस आश्य के हर सवाल के जवाब में आंकड़े एकत्रित करने की ही सूचना दी गयी है। यह सवाल उठ रहा है कि जो सरकार पन्द्रह माह में परफॉर्म नहीं कर पायी है वह शेष बचे कार्यकाल में कैसे परफॉर्म कर पायेंगी?
विधानसभा के छः उपचुनाव छः बागियों द्वारा राज्यसभा में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने के कारण उभरी राजनीतिक स्थिति का प्रतिफल है। इन बागियांे पर जनता के विश्वास को भाजपा की मण्डी में नीलाम करने का आरोप हर छोटे बड़े मंच से कांग्रेस के हर नेता द्वारा लगाया जा रहा है। इस संबंध में कांग्रेस के दो विधायकों द्वारा बालूगंज थाना में एक एफ.आई.आर. भी दर्ज करवाई गई है। जिसकी जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी है। इस एफ.आई.आर को रद्द करवाने की याचिका भी दूसरे पक्ष द्वारा प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर है और अभी लंबित चल रही है। न तो एफ.आई.आर. की जांच पूरी हुई है और न ही इसे रद्द करवाने की याचिका पर कोई फैसला अब तक आ पाया है। सब कुछ लंबित चलते हुये जिस तरह से विधायकों के बिकने का आरोप हर मंच से दोहराया जा रहा है उससे स्पष्ट हो जाता है कि इस मामले में राजनीति से हटकर कुछ नहीं हो रहा है। क्योंकि इसी प्रकरण में एक और बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या भाजपा ने राज्यसभा में सारा खेल कांग्रेस-भाजपा दोनों के 34-34 वोट बराबर होने के लिये खेला था? सामान्य राजनीतिक समझ भी 34-34 वोट बराबर होने के तर्क को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं है। क्योंकि यदि पर्ची कांग्रेस के पक्ष में निकल जाती तो भाजपा को क्या लाभ मिलता। इसलिये यह गेम 34 की जगह 36 करने की थी जिसे सत्ता पक्ष नेे दो संभावित क्रॉस वोट मैनेज करके भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। क्योंकि यदि भाजपा के पक्ष में 36 वोट पड़ जाते तो कांग्रेस के 32 वोट ही रह जाते और सरकार तभी गिर जाती। इसलिये दो वोट मैनेज करके सरकार को सदन में ही गिरने से बचा लिया गया। इस पर यह सवाल भी उठ रहा है कि जब दो वोट कंट्रोल करके सरकार बचा ली गयी तब छः बागी क्यों कंट्रोल नहीं किये गये? क्या इसलिये कि उनके जाने से सरकार को कोई खतरा नहीं था। यह सवाल चर्चा में भी नहीं आ पाया जबकि इस खेल का अपने में यह केंद्रीय प्रश्न है।
इसी तरह अब बागियों को बिकाऊ और भू-माफिया तथा खनन माफिया करार दिया जा रहा है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि राजेन्द्र राणा और भूट्टों अपने क्रेशरों का काम लेकर ही मुख्यमंत्री के पास आते थे। भूट्टों और उसके बेटे के खिलाफ देहरा में एक एफ.आई.आर. भी दर्ज करवा दी गयी है। मुख्यमंत्री जो आरोप लगा रहे हैं संभव है कि उन में कुछ सच्चाई भी हो। परन्तु यह आरोप आज भूट्टों और राजेन्द्र राणा से ज्यादा तो मुख्यमंत्री से जवाब मांग रहे हैं। क्योंकि यह आरोप इनके बागी होने के बाद ही अब क्यों उठ रहे हैं। जब तक यह लोग कांग्रेस में थे और मुख्यमंत्री के साथ थे तब इन पर यह आरोप नहीं थे क्यों? क्या तब इनका सारा कारोबार वैध था? क्या कांग्रेस में रहते हुये सारी अवैधताएं दोष नहीं थी? क्या यह स्टोन क्रेशर बागी होने के बाद लगाये गये या अब इनके माध्यम से इन्हें परेशान करने के लिये प्रशासन को सक्रिय किया गया है। ऐसा लग रहा है कि मुख्यमंत्री के सलाहकार उन्हें अब भी सही राय देने के लिये तैयार नहीं है। आने वाले दिनों में यह कारवाई राजनीतिक तौर पर भारी पड़ने की संभावना ज्यादा बढ़ गयी है।