कांग्रेस के विद्रोह का केन्द्र हमीरपुर संसदीय क्षेत्र ही क्यों बना?

Created on Tuesday, 07 May 2024 16:47
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। कांग्रेस अभी तक धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के लिये अपना उम्मीदवार घोषित नहीं कर पायी है। पांच उपचुनाव के लिये जो उम्मीदवार घोषित किये गये हैं उसमें गगरेट और सुजानपुर में भाजपा से कांग्रेस में आये नेताओं को टिकट दिये गये हैं। बडसर, कुटलैहड और लाहौल-स्पीति में ही कांग्रेस के पुराने लोगों पर भरोसा किया गया है। किसकी जीत होगी इसका आकलन अभी करना जल्दबाजी होगी। यह सही है कि उपचुनाव सरकार का भविष्य तय करेंगे। इसलिए अभी यह चर्चा करना प्रासंगिक होगा कि इस समय प्रदेश के बड़े मुद्दे क्या हैं। क्या सरकार और विपक्ष प्रदेश के मुद्दों पर चुनाव लड़ने के लिये तैयार है या फिर इस उप चुनाव के लिये अलग से मुद्दे तैयार किये जायेंगे।
प्रदेश में सुखविंदर सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बने पन्द्रह माह हो गये हैं। जब सरकार ने कार्यभार संभाला था तब प्रदेश की वित्तीय स्थिति श्रीलंका जैसी होने की चेतावनी जारी की गयी थी। प्रदेश में वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप पूर्व की सरकार पर लगाया गया। वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी किया। पिछली सरकार द्वारा अंतिम छः माह में खोले गये हजार के करीब संस्थान बंद कर दिये गये। हमीरपुर स्थित अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड तक भ्रष्टाचार और प्रश्न पत्र बिकने के आरोप पर भंग कर दिया गया। प्रदेश की जनता सरकार के इन फैसलों को जायज मानकर चुप रही। लेकिन जैसे ही सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार से पहले छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर दी और करीब डेढ़ दर्जन के करीब ओ.एस.डी. और सलाहकार कैबिनेट रैंक में नियुक्त कर दिये तब सरकार की नीयत और नीति पर सवाल उठने शुरू हुये। कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनावों में दी गई गारंटीयों पर सवाल उठने शुरू हुये। क्योंकि खराब वित्तीय स्थिति में कोई भी व्यक्ति, संस्थान या सरकार अवांच्छित खर्च नहीं बढा़ते। सरकार ने वित्तीय कुप्रबंधन के लिये आज तक किसी को नोटिस तक जारी नहीं किया है। कांग्रेस द्वारा चुनावों में जारी किये गये आरोप पत्र पर कोई कारवाई नहीं हुई है।
इस समय बेरोजगारी प्रदेश की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। पिछले दिनों बिलासपुर में एक युवक द्वारा नौकरी न मिलने पर आत्महत्या कर लेने का मामला सामने आया है। प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या युवा वोटरों की संख्या से बढ़ गयी है। सरकार आय के साधन बढ़ाने के लिए परोक्ष/अपरोक्ष में टैक्स लगाने के अतिरिक्त और कुछ सोच नहीं पा रही है। सरकार ने चार हजार करोड़ का राजस्व बढ़ाने के नाम पर बिजली उत्पादन कंपनियों पर जल उपकर लगाने के लिये विधेयक पारित किया और एक जल उपकर आयोग तक स्थापित कर लिया। लेकिन जैसे ही यह मामला उच्च न्यायालय पहुंचा तो अदालत ने जल उपकर अधिनियम को असंवैधानिक करार देकर निरस्त कर दिया। परन्तु सरकार ने इसी अधिनियम के तहत स्थापित हुये आयोग को भंग नहीं किया है। इससे सरकार की नीयत पर अनचाहे ही सवाल उठने शुरू हो गये हैं। क्योंकि सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिये हर सेवा और वस्तु का शुल्क बढ़ाया है। परन्तु उसी अनुपात में अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगाई है। सरकार एक तरफ राजस्व लोक अदालतें लगाकर लोगों को राजस्व मामलों में राहत देने का दावा कर रही है और दूसरी ओर इसी राजस्व में ई-फाइलिंग, ई-रजिस्ट्रेशन आदि करके हर सेवा पहले से कई गुना महंगी कर दी है।
इस समय व्यवहारिक रूप से आम आदमी को रोजगार से लेकर किसी भी अन्य मामले में भाषणों में घोषित हुई राहतें जमीन पर नहीं मिली है। इस समय चुनावों में उम्मीदवार तलाशने में लग रहे समय से ही यह सवाल उठ गया है कि जब लोकसभा चुनाव होने तो तय ही था तो इसके उम्मीदवारों के लिये इतना समय क्यों लगा दिया गया? क्या इससे यह संदेश नहीं गया कि सरकार और संगठन में सब सही नहीं चल रहा है। इस समय मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी बागीयों पर बिकने का आरोप लगाकर उपचुनाव थोपने की जिम्मेदारी उन पर डाल रहे हैं। लेकिन जिस तरह से बागी मुख्यमंत्री के खिलाफ मानहानि के मामले डालकर उन्हें घेरने की रणनीति पर चल रहे हैं उससे सारी बाजी पलटने की संभावना प्रबल होती जा रही है। यह सवाल बड़ा होता जा रहा है कि इस विद्रोह का केंद्र हमीरपुर संसदीय क्षेत्र ही क्यों बना? आम आदमी यह मानने को तैयार नहीं है कि इतने बड़े विद्रोह कि कोई भी पूर्व सूचना सरकार को नहीं हो पायी? जबकि हाईकमान के संज्ञान में यह रोष बराबर रहा है। वरिष्ठ मंत्री चन्द्र कुमार ने जिस तरह से इस संकट के लिये मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को दोषी माना है वह एक और बड़े संकट की आहट माना जा रहा है। आने वाले दिनों में यदि कांग्रेस के संकट की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पर आ गयी तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे।