यह आवासीय आबंटन बना चर्चा का विषय

Created on Wednesday, 17 April 2024 16:00
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। सरकार के हर वर्ग के कर्मचारी/अधिकारी अपने सेवा स्थान पर सरकारी आवास पाने के पात्र हैं। यह सुविधा प्राप्त करने की शर्त है कि संबंधित अधिकारी कर्मचारी के पास सेवा स्थान पर अपने नाम या अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम पर कोई आवास नहीं होना चाहिए। आवास आवंटन के समय इस आश्य की जानकारी एक स्व हस्ताक्षरित प्रपत्र पर ली जाती है। यदि यह जानकारी किसी भी समय गलत पायी जाये तो संबंधित अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ नियमानुसार कारवाई की जाती है। लेकिन क्या ऐसी कारवाई करने के लिये मामला संज्ञान में आने के बाद छः माह से भी अधिक का समय लग जाना चाहिये। जबकि मामला मुख्य सचिव के भी संज्ञान में हो और संबंधित विभागों के प्रभारी मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हो। यह स्थिति प्रशासन को लेकर ऐसे सवाल खड़े कर देती है जिसमें प्रशासन की नीयत और नीति दोनों कटघरे में आ जाते हैं।
स्मरणीय है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य अभियंता पी.सी. गुप्ता को 2022 में आवास आबंटित हुआ था और उन्होंने 3-3-2022 को इसका कब्जा भी ले लिया था। इससे पहले यही आवाज उनकी पत्नी डॉ. रचना गुप्ता के नाम पर आबंटित था। डॉ. गुप्ता लोक सेवा आयोग में सदस्य थीं जिन्हें आयोग का अध्यक्ष बनाने की अधिसूचना भी जारी हो गयी थी। लेकिन डॉ. गुप्ता ने अपने निजी कारणों से अध्यक्ष पद सरकार नहीं किया और सदस्य के रूप में ही आयोग से सेवानिवृत हो गयी। इस सेवानिवृत्ति के कारण उन्हें सरकारी आवास छोड़ना था। परंतु उनके पति के नाम पर कोई सरकारी आवास नहीं था और सरकार ने उन्हें वही मकान आबंटित कर दिया जो उनकी पत्नी के नाम था। नियम ऐसे आबंटन की अनुमति देते हैं। यक आबंटन लेते समय पी.सी. गुप्ता को लिखित में विभाग को यह सूचित करना पड़ा की उनके अपने नाम या परिवार के किसी सदस्य के नाम शिमला में अपना कोई भवन नहीं है। लेकिन किसी देवाशीष ने उनके खिलाफ यह शिकायत कर दी की पी.सी. गुप्ता के नाम पर तो शिमला में भवन है।
यह शिकायत आने पर पी.सी. गुप्ता से फिर उनके नाम भवन होने की जानकारी मांगी गयी। इस पर पी.सी. गुप्ता ने जानकारी देते हुये स्वीकार किया कि उनके नाम पंथाघाटी शिमला में मकान है जो 1-9-21 से उन्होंने 61040 रुपये मासिक किराया पर दे रखा है। गुप्ता की इस सवीकारोक्ति के बाद विभाग को उनके खिलाफ तुरंत प्रभाव से नियमानुसार कारवाई करनी थी। लेकिन अक्तूबर 2023 से अब तक यह कारवाई पत्राचार के स्तर से आगे नहीं बढ़ी है। आम कर्मचारियों और अधिकारियों में इन दिनों यह चर्चा का विषय बना हुआ है। इससे सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। माना जा रहा है कि इसमें ‘‘समर्थ को नहीं दोस्त गोसाईं’’ की कहावत ही चरितार्थ होगी।