शिमला/शैल। कांग्रेस के छः बागियों और तीन निर्दलीय विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद इन सभी नौ लोगों को इनके कारण होने वाले उपचुनावों के लिये उन्हीं स्थानों से अपना उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। हालांकि तीन निर्दलीयों पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला अभी आना है। इन लोगों के भाजपा में शामिल होने और साथ ही उपचुनावों के लिये उम्मीदवार भी घोषित हो जाने से वह लोग नाराज हो गये हैं जिनको हराकर यह विधायक बने थे। इन लोगों का नाराज होना स्वभाविक है लेकिन यदि यह नाराजगी कोई ठोस आकार लेकर पूरी मुखरता के साथ इन लोगों को चुनाव में हरा देती है तब तो इस नाराजगी का कोई अर्थ बनेगा अन्यथा इसे आत्मघाती कदम ही करार दिया जायेगा। क्योंकि जब कांग्रेस के यह बागी राज्यसभा में क्रॉसवोटिंग करके भाजपा में शामिल होने का फैसला ले चुके थे तब इन लोगों को इसकी भनक भी न लग पाना यह प्रमाणित करता है कि यह नाराज लोग प्रदेश की राजनीति की कितनी समझ और जानकारी रख रहे थे।
इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह भी उभर रहा है की प्रदेश में जो कुछ घटा है क्या उसकी योजना प्रदेश में ही तैयार हुई या दिल्ली में हाईकमान के यहां। भाजपा की जानकारी रखने वाले जानते हैं की भाजपा संघ परिवार की एक इकाई मात्र है । इस पूरे परिवार का संचालन संघ के पास है। भाजपा में कुछ भी महत्वपूर्ण संघ की पूर्व अनुमति के बिना नहीं घटता है। इससे स्पष्ट हो जाता है की प्रदेश की इस राजनीतिक अस्थिरता को संघ की पूर्व अनुमति हासिल है। ऐसे में इन नौ लोगों के भाजपा में शामिल होने और चुनाव उम्मीदवार बनने के फैसले का विरोध सीधा संघ का विरोध होगा। इस समय भाजपा के इस फैसले का विरोध करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर लिये गये अन्य फैसलों का भी इन कथित नाराज लोगों को विरोध करना होगा। संघ देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहता है है और इसके लिये संविधान बदलने की तैयारी है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने का साहस करेंगे? इस समय इलैक्टोरल बॉड का खुलासा सबसे गंभीर मुद्दा बनने जा रहा है। क्या यह नाराज लोग इसका विरोध करने को तैयार होंगे? यदि सैद्धांतिक मुद्दों पर इन रुष्ट लोगों की कोई राय नहीं है तो इनके कथित विरोध और कांग्रेस द्वारा लगाये जा रहे आरोपों में कोई ज्यादा अन्तर नहीं रह जाता है।
इस समय कांग्रेस इस दल बदल को जिस भाषा में कोस रही है यदि उसके स्थान पर बागियों द्वारा पिछले एक वर्ष से उठाये जा रहे सार्वजनिक मुद्दों का तर्क पूर्ण जवाब जनता के सामने रखती तो स्थिति कुछ और होती। इस दल बदल तक सरकार के खिलाफ यह आरोप लगातार लगता रहा है की सरकार में कार्यकर्ताओं का सम्मानजनक समायोजन नहीं हो पाया है? क्या बदली परिस्थितियों में यह आरोप झूठा हो गया है? यह लोकसभा और विधानसभा के उपचुनाव प्रदेश सरकार की परफॉरमैन्स पर लड़े जायेंगे। यह देखा जायेगा की सरकार ने इस एक वर्ष में कौन से नये विधेयक पारित किये है और उनका क्या प्रभाव पड़ा है। सरकार ने लैण्ड सीलिंग विधेयक में संशोधन किया है और यह संशोधित विधेयक महामहिम राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये लंबित है। लेकिन इस संशोधन को पारित करते समय प्रदेश के सामने यह नहीं आ पाया है कि आज लैण्ड सीलिंग सीमा से अधिक जमीन रखने के मामले सरकार के संज्ञान में आये हैं। यह चुनाव बहुत सारे मुद्दों पर सरकार से जवाब मांगेगा। इस परिदृश्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा की भाजपा में उठाता रोष कोई ठोस आकर ले पायेगा या नहीं?