प्रतिभा सिंह और राजेन्द्र राणा के स्वरों के परिदृश्य में लोकसभा चुनावों में सफलता पर उठने लगे सवाल

Created on Monday, 05 February 2024 19:17
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्षा मण्डी से लोकसभा सांसद श्रीमती प्रतिभा सिंह ने अभी फिर कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सरकार में अनदेखी होने का दुखः सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है। उन्होंने खुलासा किया है कि पार्टी की अध्यक्षा होने के नाते वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सरकार के विभिन्न आदारों में समायोजन हेतु मुख्यमंत्री को एक सूची भी सौंपी थी जिस पर अभी तक कोई अमल नहीं हो पाया है। इसी तरह की चिन्ता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष सुजानपुर के विधायक राजेन्द्र राणा ने व्यक्त की है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि पार्टी के चुने हुये विधायकों पर कैबिनेट रैंक की ताजपोशीयां पाये गैर विधायक भारी पड़ रहे हैं। राजेंद्र राणा ने तो एक बार फिर मुख्यमंत्री को खुला पत्र लिखकर विभिन्न चुनावी वायदों की याद दिलाई है जो आने वाले लोकसभा चुनावों में जनता द्वारा पूछे जायेंगे। कार्यकर्ताओं की अनदेखी होने का सवाल पूर्व अध्यक्ष विधायक कुलदीप राठौर भी उठा चुके हैं। यह सभी लोग संगठन से जुड़े हुये लोग हैं और इन्ही के कार्यकाल में कांग्रेस ने उपचुनाव और नगर निगम सोलन तथा पालमपुर के चुनाव कार्यकर्ताओं के सहयोग से जीते थे।
मुख्यमंत्री सुक्खु भी संगठन से निकले हुये नेता हैं। एनएसयूआई युवा कांग्रेस और फिर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तक रह चुके हैं। शायद इसी आधार पर वह मुख्यमंत्रा के लिए पहली पसन्द बने हैं। जब सुक्खु पार्टी के अध्यक्ष थे तब उनमें और मुख्यमंत्री स्व. वीरभद्र सिंह में गहरे मतभेद रहे हैं यह सब जानते हैं। लेकिन स्व. वीरभद्र सिंह का प्रदेश की राजनीति और जनता में जो अपना एक विशेष स्थान है उस मुकाम तक दूसरे नेताओं को पहुंचने में बड़ा वक्त लगेगा। वीरभद्र के समर्थकों की आज भी एक लम्बी लाईन है और हर नेता को जनता उसी तराजू में तोलकर उसका गुणा-भाग करके आकलन करेगी। मुख्यमंत्री सुक्खु ने भी गैर विधायकों को कार्यकर्ता होने के नाम पर ही ताजपोशियां दी हैं। लेकिन यह ताजपोशियां पाये हुये नेताओं का अपना जनाधार क्या है यह सवाल संगठन में ही उठाना शुरू हो गया है। इन नेताओं के सहारे क्या लोकसभा की कोई एक सीट जीतने का दावा किया जा सकता यह संगठन के अन्दर बड़ा सवाल बनता जा रहा है। लोकसभा चुनावों के लिये इन्हीं मजबूत बनाये गये नेताओं में से ही उम्मीदवार बनाने का सवाल खड़ा किया जा रहा है। यहां तक चर्चाएं उठनी शुरू हो गयी हैं की मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक कोई मंत्रा लोकसभा चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। जबकि कांग्रेस शासित राज्यों में तो एक भी सीट विपक्ष को नहीं जाने की स्थिति होनी चाहिये। लेकिन हिमाचल में व्यवहारिक रूप से हालात एकदम इससे उलट बनते जा रहे हैं। प्रदेश का कोई भी छोटा-बड़ा नेता केन्द्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का साहस नहीं कर पा रहा है।
इस समय जनता में जाने के लिए ‘‘सरकार गांव के द्वार’’ कार्यक्रम का सहारा लिया जा रहा है। लेकिन इसके तहत अब तक जितने भी आयोजन हुये हैं। उनमें राजस्व लोक अदालतों के माध्यम से निपटाये गये इन्तकाल और तक्सीम के मामलों के आंकड़ो का ही ब्योरा परोसा जा रहा है। लाभार्थियों के नाम पर आपदा राहत और सुखाश्रय के आंकड़ों से हटकर कोई और उपलब्धि नहीं बताई जा रही है। क्या आज प्रदेश में इनसे हटकर कोई और समस्याएं आम आदमी की नहीं हैं। महंगाई और बेरोजगारी को कम करने के लिये सरकार ने क्या कदम उठाये हैं और उनसे फील्ड में कितने लोगों को लाभ मिला है इसका कोई आंकड़ा जारी नहीं हो पा रहा है। ‘‘सरकार गांव के द्वार’’ और स्कूलों द्वारा आयोजित किये जा रहे वार्षिक समारोहों के कार्यक्रमों से हटकर जनता में जाने के लिये और कोई मंच संगठन या सरकार की ओर से अभी तक सामने नहीं आ पाया है। भाजपा द्वारा उठाये जा रहे सवालों का एक ही जवाब दिया जा रहा है कि केन्द्र ने आपदा में प्रदेश की कोई मदद नहीं की है। प्रदेश के भाजपा सांसदों और विधायकों पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि वह केन्द्र के सामने प्रदेश की आवाज उठाने के लिये सरकार के साथ खड़े नहीं हुये हैं। लेकिन भाजपा ने इस पर सरकार द्वारा लिये गये कर्ज के जो आंकड़े जारी किये हैं उनका कोई तार्किक जवाब नहीं दिया जा रहा है। यह नहीं बताया जा रहा है कि इस कर्ज को खर्च कहां किया जा रहा है।