शिमला/शैल। सुक्खु सरकार इस वर्ष पूर्ण राज्यत्व दिवस पर प्रदेश के कर्मचारियों और पैन्शनरों को कोई भी आर्थिक लाभ देने की घोषणा नहीं कर पायी है। इससे कर्मचारियों और पैन्शनरों में स्वभाविक रूप से रोष पनपना नाजायज नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यदि सरकार को प्रदेश की वित्तीय स्थिति ऐसा करने से रोक रही है तो उसे उसी अनुपात में अपने अनुत्पादक खर्चों पर रोक लगाने से शुरुआत करनी होगी। सरकारी अफसरशाही की सचिवालय में इतनी बड़ी संख्या में उपलब्धता के बावजूद एक दर्जन से अधिक सलाहकारों और विशेष कार्यधिकारियों की फौज खड़ी कर लेना अब हर आदमी को चुभने लग गया है। इसकी आवश्यकता मुख्यमंत्री को अपने विशेष कारणों से तो हो सकती है लेकिन शायद प्रदेश की जनता को नहीं है। यही स्थिति मुख्य संसदीय सचिवों की है। इन सारी नियुक्तियों के आईने में कठिन वित्तीय स्थिति का तर्क किसी के भी गले नहीं उतर रहा है।
इस समय अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को भंग कर दिये जाने से प्रभावित हुये बेरोजगार युवा धरने प्रदर्शन पर आ गये हैं। संस्कृत और संस्कृति संरक्षण के बैनर तले युवा आक्रोश रैली निकाल चुके हैं। डॉक्टर एन.पी.एस. की मांग को लेकर कई दिनों से विरोध प्रदर्शन में लगे हुये हैं। सरकार अब तक उनके साथ कोई बातचीत नहीं कर पायी है। यह अपनी मांगों को लेकर कभी सड़कों पर उतर सकते हैं। ऐसा होने पर स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रतिकूल असर पडना स्वभाविक है। अब सचिवालय एवं अन्य संवद्ध पैन्शनर वैल्फेयर संगठन के प्रधान मदन लाल शर्मा और उप प्रधान भूपराम वर्मा ने एक वक्तव्य जारी करके आन्दोलन की चेतावनी दी है। इन लोगों ने आरोप लगाया है कि सरकार ने 25 जनवरी, 15 अप्रैल, 15 अगस्त एवं दिवाली पर प्रदेश के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते की तीन किस्ते 12 प्रतिशत महंगाई भत्ते के साथ जारी नहीं की है। इसी के साथ संशोधित वेतनमानों का बकाया 1-1-2016 से 31-12-2021 तक जारी नहीं किया है। जबकि 2022 के बाद सेवानिवृत हुये कर्मचारियों को यह दिया जा चुका है।
इन लोगों ने मुख्यमंत्री के विधानसभा में दिये इस ब्यान की निंदा की है जिसमें कहा गया था कि यह भुगतान दो वर्ष बाद 2026 में होगा। कर्मचारी नेताओं ने आरोप लगाया है कि सरकार ने अपने अधीनस्थ कार्यालयों और कोषागार को निर्देश दिये हैं कि जिन केसों में उच्च न्यायालय ने 6 प्रतिशत ब्याज के साथ बकाये के भुगतान के आदेश किये हैं वह भुगतान न करके इसकी अपील की जाये। सरकार के इस फरमान पर कर्मचारियों ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल खोलने के फैसले और सरकार द्वारा अब तक 13000 करोड़ से ज्यादा कर्ज लेने पर भी गंभीर सवाल उठाये हैं। लोकसभा चुनावों से पहले उभरती यह तस्वीर सरकार के लिये घातक मानी जा रही है।