क्या सुक्खू सरकार संकट में है

Created on Wednesday, 16 August 2023 04:03
Written by Shail Samachar
  • विधायकों और पूर्व विधायकों की प्रतिक्रियाओं से उठी चर्चा
  • हर चुनावी सर्वेक्षण में आ रही कांग्रेस की हार
  • हाई कमान ने लिया कड़ा संज्ञान
शिमला/शैल। पिछले दिनों जिस तरह के ट्वीट कांग्रेस विधायको राजेंद्र राणा और सुधीर शर्मा के आये हैं उससे राजनीतिक हल्कों और प्रशासनिक गलियारों में जो चर्चाएं चल निकली हैं यदि उन्हें अधिमान दिया जाए तो निश्चित रूप से सुक्खू सरकार सियासी संकट में फंस चुकी है। क्योंकि आठ माह में सुक्खू अपने मंत्रिमंडल के तीन रिक्त स्थानों को नहीं भर पाये हैं। विधानसभा उपाध्यक्ष का भी एक पद खाली चला आ रहा है। इन खाली पदों को एक समय सुक्खू का मास्टर स्ट्रोक कुछ लोगों ने माना था । लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में जब सुक्खू ने मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले ही छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर ली तब यह स्पष्ट हो गया था कि मुख्यमंत्री और उनकी सरकार एक कूटनीति की शिकार हो गई है और कभी भी निष्पक्ष निर्णय नहीं ले पाएगी । क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां संविधान के अनुरूप नहीं है। इन नियुक्तियों को एक दर्जन भाजपा विधायकों सहित तीन याचिकाओं के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। यह फैसला जब भी आएगा इनके खिलाफ ही आएगा। पहले भी उच्च न्यायालय ऐसी नियुक्तियों को रद्द कर चुका है। सर्वोच्च न्यायालय भी इन्हें असंवैधानिक करार दे चुका है।कानून की यह जानकारी होने के बावजूद भी ऐसी नियुक्तियां करना क्या दर्शाता है यह अंदाजा लगाया जा सकता है। लोकसभा चुनावों से पूर्व यहफैसला आना तय है।
मंत्रियों के 3 पद खाली रखते हुए एक दर्जन के करीब गैरविधायकों को कैबिनेट रैंक में ताजपोशी देना सुक्खू सरकार का और बड़ा फैसला है। इन ताजपोशियों में भी अकेले जिला शिमला को 90% स्थान दिया गया है । इन ताजपोशियों से ही यह आरोप लगा है कि यह सरकार मित्रों के से घिरकर रह गई है। क्योंकि यह ताजपोशियां पाने वाले संगठन के कोई बड़े पदाधिकारी भी नहीं रहे हैं और विधानसभा चुनावों में भी इनकी कोई बड़ी भूमिका नहीं रही है । ऐसे राजनीतिक फैसलों का पार्टी के विधायकों और दूसरे कार्यकर्ताओं पर क्या असर पड़ेगा इसका भी अंदाजा लगाया जा सकता है। इन फैसलों से हटकर यदि सरकार के मंत्रियों और उनकी कार्य स्वतंत्रता की बात की जाए तो जब शिमला में टैक्सी यूनियन विवाद खड़ा हुआ तब सरकार के मंत्री एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए। उसके बाद जब यह आपदाएं और जगह-जगह भूस्खलन और बाढ़ का प्रकोप घटा तब एक मंत्री ने इसके लिए जब अवैध खनन को जिम्मेदार ठहराया तब दूसरे मंत्री ने इस बयान को ही बचकाना करार दे दिया। यही नहीं जब विक्रमादित्य सिंह केंद्र में नितिन गडकरी और अन्य मंत्रियों से मिले तब यह सामने आया कि विभाग द्वारा भेजे गए प्रस्तावों को अधिकारियों के स्तर पर बदल दिया गया है। इस पर विक्रमादित्य सिंह को एक पत्रकार वार्ता में अधिकारियों को संदेश देना पड़ा कि वह लक्ष्मण रेखा लांघने का प्रयास न करें । इस तरह राजनीतिक स्तर पर आठ माह की जो कारगुजारियां रही हैं उसमें व्यावहारिक तौर पर संगठन और सरकार में तालमेल का अभाव रहा है। पार्टी अध्यक्षा इसे राष्ट्रीय अध्यक्ष और हाई कमान के संज्ञान में ला चुकी है । प्रशासन पर अभी भी भाजपा का प्रभाव कितना है इसका अंदाजा मंत्री पुत्र पूर्व विधायक नीरज भारती के ट्वीट से लगाया जा सकता है। इस परिपेक्ष में जब पार्टी के विधायकों से लेकर नीचे कार्यकर्ताओं के स्तर तक सभी जगह अप्रसन्नता के भाव देखने को मिलेंगे तो निश्चित तौर पर इसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा। इसी स्थिति के कारण कांग्रेस हाईकमान द्वारा करवाए चुनावी सर्वेक्षण में यह सामने आया कि हिमाचल में सरकार होने के बावजूद पार्टी चारों सीट हार रही है। इसी सर्वेक्षण के बाद हाई कमान ने वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री कौल सिंह को हालात की रिपोर्ट देने के लिए कहा है । कौल सिंह की रिपोर्ट के अनुसार 23 विधायकों ने लिखित में सरकार से नाराजगी व्यक्त की है। अब तो यह सवाल भी पूछा जाने लग पड़ा है कि जो मुकेश अग्निहोत्री एक समय भाजपा सरकार के प्रति बहुत मुखर होते थे अब चुप क्यों हैं। बल्कि जब उनके ही विभाग से संबंधित जल उपकर आयोग के सदस्यों को शपथ दिलाई गई तब वह उपस्थित क्यों नहीं थे । क्या आयोग के सदस्यों की नियुक्तियों में उनकी सहमति नहीं रही है। अभी 15 अगस्त को जिस तरह से स्वतंत्रता दिवस में झंडा फहराने के लिए बिलासपुर में तैनात किया गया है उससे संगठन और सरकार में उभरती दरारें और चौड़ी होने की संभावना बढ़ने के आसार बनते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री अपने गैर राजनीतिक सलाहकारों से ऐसे घिर गए हैं कि उन्हें उनके दिखाएं हरे के अतिरिक्त और कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा है। बल्कि सही लिखने बोलने वालों को सरकार का दुश्मन माना जा रहा है। चर्चा है कि हाईकमान शीघ्र ही इसका संज्ञान लेकर शीघ्र ही कोई बड़ा फैसला सुना सकता है। क्योंकि अगर राजनीतिक परिदृश्य के साथ सरकार द्वारा लिए गए अन्य फैसलों पर भी एक साथ नजर डाली जाए तो स्थितियां और भी भयावह हो जाती हैं।