क्या डॉ. बिंदल की टीम मैरिट का चयन है या समझौतों का

Created on Monday, 24 July 2023 18:21
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा जब प्रदेश विधानसभा के चुनाव हार गयी थी तब इस हार के कारणों का आकलन करके उसके परिणामों को सार्वजनिक नहीं कर पायी थी। क्योंकि उस आकलन में यह सामने आना था कि चूक पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों के स्तर पर हुई थी या इन्हें गढ़ने वाले उच्च देवों के स्तर पर। कारण और परिणाम जो भी रहे हों लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों का प्रयोग तब तक सफल नहीं हो पायेगा जब तक सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे हुकमरान अपने को इस अवधारणा से बाहर निकलकर आम आदमी के प्रति अपनी जवाबदेही की प्रतिबद्धता पर व्यवहारिक रूप से अमल नहीं करते हैं। क्योंकि जिन लाभार्थियों को वोट बैंक का डिपॉजिट माना जा रहा था उनकी गिनती शायद इन्हीं पन्ना प्रमुखों और त्रिदेवों से शुरू होकर इन्हीं पर खत्म हो जाती है। इस त्रिदेवों की अवधारणा को पुराने कार्यकर्ताओं के स्थान पर नयों का आगे लाने के लिये प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रयोग से पुराने कार्यकर्ताओं और नयों के बीच एक ऐसी दीवार खड़ी होती जा रही है जो आने वाले समय में संगठन के लिये एक बड़ी समस्या खड़ी हो जायेगी। पिछले दिनों जब संगठन मंत्री सिद्धार्थन सोलन में पार्टी टिफिन बैठक में पहुंचे तो उस बैठक में 120 लोगों में से केवल 20 ही भाजपा के सदस्य थे और शेष वह लोग थे जो पहली बार किसी बैठक में देखे गये। शायद बैठक में कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता भी बुला लिये गये थे। सोलन मण्डल के भी पूरे पदाधिकारी बैठक में नहीं थे। महिला मोर्चा, एससी मोर्चा, किसान मोर्चा और अन्य प्रकोष्ठों के लोगों को बैठक की सूचना तक नहीं थी। शायद बैठक में योजनाओं के लाभार्थियों को ही वरिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में पेश किया गया। इस बैठक से यह स्पष्ट हो गया है कि पार्टी के भीतर पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करके लाभार्थी रहे त्रिदेवों और पन्ना प्रमुखों द्वारा ही पार्टी पर कब्जा करने की कवायद शुरू हो गयी है। सोलन की इस बैठक के बाद ही प्रदेश पदाधिकारियों की सूचीयां जारी हुई है। इन सूचियों का अवलोकन करने के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि शायद अध्यक्ष यह पदाधिकारियों की सेना चुनने में पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं रहे हैं। जिला अध्यक्षों से प्रदेश पदाधिकारियों की जो सूचियां जारी हुई है उनमें विभिन्न धड़ों को प्रसन्न रखने का प्रयास ज्यादा नजर आ रहा है। ऐसा लगता है कि यह मानकर यह चयन किया गया है कि हिमाचल में हर बार सत्ता तो बदल ही जाती है। इस नाते अगली बार भाजपा की बारी है इसलिये किसी न किसी तरह संगठन पर कब्जा किया जाये।
डॉ राजीव बिंदल की टीम में युवा और महिला मोर्चा के अध्यक्षों के अतिरिक्त नौ उपाध्यक्ष तीन महामंत्री सात सचिव, दस प्रवक्ता, एक मीडिया प्रभारी और सात सह मीडिया प्रभारी हैं। यह इस टीम की जिम्मेदारी होगी कि वह कार्यकर्ताओं को आने वाले लोकसभा चुनाव और फिर विधानसभा चुनावों में जीत के लिये क्या मंत्र देते हैं। आम कार्यकर्ताओं की यह प्रतिक्रिया है कि इस टीम का चयन जे.पी. नड्डा और पवन राणा के दबाव में किया गया है। यह आरोप लग रहा है कि इस टीम में नौ लोग ऐसे हैं जो पिछले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी थे और खुद अपना ही चुनाव हार गये हैं। यदि यह लोग अपना चुनाव जीत गये होते तो आज प्रदेश में भाजपा की सरकार होती। छः सात पदाधिकारी ऐसे कहे जा रहे हैं जिनके अपने खिलाफ विधानसभा चुनावों में अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ काम करने के आरोप हैं। जिन पदाधिकारियों के खिलाफ पिछली बार संगठन की लुटिया डुबाने के आरोप लगते रहे उन्हें इस बार भी पदों से नवाजा गया है। यहां तक कहा जा रहा है कि संघ से आये तिलक राज शर्मा एक धीर गंभीर प्रवृति के व्यक्ति हैं। पिछली बार वह सभी मोर्चा के समन्वयक थे। उन्हें अब डिमोशन करके युवा मोर्चा का अध्यक्ष बना दिया गया है। देखने में वह प्रौढ़ लगते हैं इसलिये यह सवाल उठ रहा है कि युवा उन्हें कैसे स्वीकार कर पायेंगे।
इस तरह जो टीम डॉ बिंदल सामने लाये हैं और उस पर संगठन के भीतर ही दबी जुबान से जो सवाल उठने लग पड़े हैं उससे यह लगता है कि यह टीम मैरिट का नहीं समझौतों का चयन ज्यादा है। आने वाले दिनों में जब यह दबी जुबान से उठ रहे सवाल पूरी मुखरता के सामने आयेंगे तो अध्यक्ष के लिये स्थितियां संभालना कठिन हो जायेगा।