शिमला/शैल। सुक्खू सरकार वितिय मोर्चे पर जिस तरह से फेल होती जा रही है उससे विपक्षी दल भाजपा को सरकार के खिलाफ एक बड़ा हथियार मिल गया है। सरकार इस असफलता के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है कि उसने कर्ज लेने की सीमा में कटौती करके यह हालात पैदा कर दिये हैं। लेकिन दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने यह खुलासा करके की सुक्खू सरकार अब तक सात हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है एक अलग ही तस्वीर लोगों के सामने रख दी है जिसका सरकार कोई जवाब नहीं दे पा रही है। क्योंकि कर्ज सीमा कटौती करने से पहले यह सीमा 14,500 करोड़ की थी। अभी सरकार को बने हुये कुल छः माह का समय हुआ है। सुक्खू सरकार अभी पहला ही बजट लायी है और इसी के पहले दो माह में खजाना खाली होने, कई कर्मचारियों को वेतन न मिल पाने और कोषागार हर रोज एक घन्टा बन्द रखने के हालात पैदा हो जाये तो इसके लिये केन्द्र पर दोष देने की बजाये अपने वित्तीय प्रबंधको की नीयत और नीति पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि जितना कर्ज इसी दौरान ले लिया गया है उससे स्पष्ट हो जाता है कि यह सरकार केवल कर्ज पर ही आश्रित होकर चल रही थी। जिस तरह से इस सरकार ने पहले ही दिन डीजल के दाम बढ़ाने का तोहफा जनता को दिया था उसी से स्पष्ट हो गया था कि सरकार ईमानदार सलाहकारों के हाथ में नहीं है। क्योंकि इन्हीं सलाहकारों की राय पर श्रीलंका जैसे हालात पैदा होने की चेतावनी दी गयी थी जबकि सरकार का अपना एक भी कदम इस चेतावनी के अनुरूप नही था।
आज वित्तीय संकट का जो आकार हो चुका है उसके अनुरूप संसाधन जुटाने का एक भी प्रयास नही है। जिन परियोजनाओं में हिस्सेदारी बढ़ाकर संसाधनों की उम्मीद की जा रही है वह सारे मामले अदालतों तक पहुंचेंगे यह स्वभाविक है। जिन संसाधनों से बिना किसी दूसरे के दखल के पैसा जुटाया जा सकता है उस ओर कोई सलाहकार सोच ही नही पा रहा है। मौद्रीकरण का जो सूत्र केन्द्र ने पकड़ा था उस ओर प्रदेश में कोई ध्यान ही नही दिया जा रहा है। इस परिदृश्य में विपक्ष सरकार पर लगातार हावी होता जायेगा।
वित्तीय प्रबंधन की असफलता का सारा आरोप सरकार पर लगता जायेगा। अन्त में स्थिति वितीय आपात तक बढ़ जायेगी और तब चयनित सरकार का अपना भविष्य प्रश्नित हो जाता है। राज्यपाल को दखल देने का अवसर मिल जाता है। क्योंकि जब छोटे कर्मचारियों और अन्यों को समय पर वेतन नहीं मिल पायेगा तथा दूसरे भुगतान नहीं हो पायेंगे तो स्थितियां एकदम बिगड़ जायेंगी। प्रभावितों के पास सड़कों पर आने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचेगा।
भाजपा स्वभाविक रूप से इस स्थिति को राजनीतिक मुद्दा बनायेगी क्योंकि सरकार को गारंटियां पूरी करनी है जो कर्ज लिये बिना हो नही पायेगी। जब इस सरकार को स्वयं कर्ज लेना पड़ेगा तो भाजपा पर प्रदेश को कर्ज में डूबाने का आरोप स्वतः ही खारिज हो जायेगा। वितीय कुप्रबंधन का आरोप मुख्य संसदीय सचिवों और कैबिनेट रैंक के सलाहकारों की नियुक्तियों में दब जाता है। ऐसे में यदि सुक्खू सरकार ने शीर्ष प्रशासन में जयराम की तर्ज पर परिवर्तन न किये तो सरकार के लिये कार्यकाल पूरा कर पाने तक संकट आ जायेगा।