100 करोड़ की पर्यटन संपत्ति 1.5 करोड़ की वार्षिक लीज पर क्यों?

Created on Tuesday, 30 May 2023 04:00
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग की 100 बीघा जमीन पर मनाली के बड़ाग्रां में 45 करोड़ से निर्मित संपत्ति को 1.5 करोड़ की वार्षिक लीज पर दिया जाना क्या भ्रष्टाचार की परिभाषा में आता है। यह सवाल इसलिये उठ रहा है क्योंकि जिस समतल 100 बीघा जमीन पर 28 कमरों, 52 दुकानो, रेस्तरां, डॉरमीट्री, वॉच टावर और पार्किंग स्पेस बना है उस जमीन की अपनी कीमत ही सौ करोड़ कही जाती है। जब यह परिसर बनकर तैयार हुआ और प्राइवेट प्लेयर को लीज पर देने की बात आयी तब इस परिसर को एचपीआईडीबी को दे दिया गया। तब इस इंफ्रास्ट्रक्चर बोर्ड के चेयरमैन राम सुभाग सिंह थे और एमडी प्रबोध सक्सेना थे। उस समय इस परिसर को एक दीपा साही को 16 वर्ष की लीज पर डेढ़ करोड़ प्रतिवर्ष की दर पर दे दिया गया। यह लीज आगे भी बढ़ाई जा सकती है यह शर्त भी साथ थी। यह लीज देने के लिये Quality Cost Based  System का नियम अपनाया गया।
इसमें जो निविदायें आयी उनके मूल्यांकन के लिए एस.डी.एम. की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन हुआ जिसमें तकनीकी पक्ष के लिए 80% अंक और वित्तीय पक्ष के लिए 20% अंक रखे गये। इस कमेटी के सामने जब निविदादाता तकनीकी पक्ष की प्रस्तुति देने गये तो उसी में दीपा साही को 35 अंक और अन्य को दस या उससे भी कम अंक मिले और इस तरह अन्य मानक गौण होकर रह गये। जबकि कन्सल्टैन्सी और अन्य सेवाएं लेने के लिये भारत सरकार द्वारा जो मैन्यूल जारी किया गया है उसके पैरा 3.9 के अनुसार Quality Cost Based  System सामान्य मामलों में लागू नहीं किया जाता जहां संपत्ति को लीज पर दिया जाना हो। मण्डी के कन्वैंशन सैन्टर और जंजैहली स्थित पर्यटन संपत्तियों को देने में दूसरा नियम लागू किया गया है। अब चर्चा है कि दीपा साही ने पिछले कुछ अरसे से 1.5़ करोड़ देना भी बन्द कर दिया है। दीपा शाही अब लीज की शर्तों में इस तरह का परिवर्तन चाहती है ताकि वह इसी सरकारी संपति पर ऋण ले सके।
अब इस आश्य का केस बनाकर शायद मुख्यमंत्री तक भेजा जा रहा है ताकि उनकी संस्तुति भी हासिल की जा सके। संयोगवश जिस समय यह लीज साईन हुई थी कुछ समय प्रबोध सक्सेना हिमाचल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड के एम.डी. थे और आज मुख्य सचिव होने के नाते इसी बोर्ड के अध्यक्ष हैं। मनाली का यह परिसर स्पैन रिजॉर्ट के साथ लगता है। इसलिये यह सवाल उठ रहे हैं कि उस समय किसके दबाव में इस इतनी बड़ी प्राइम प्रॉपर्टी को इतने कम पर लीज पर दिया गया। यही नहीं मनाली की प्रॉपर्टी को इतने कम पर लीज पर देने के लिये अलग नियम अपनाया गया और मण्डी व जन्जैहली की संपत्तियों के लिये अलग एक ही पर्यटन विभाग की दो संपत्तियों को लीज पर देने के लिए दो अलग-अलग नियम क्यों अपनाये गये? क्या यह संपत्तियां प्राइवेट सैक्टर को देने के लिये ही कर्ज लेकर बनायी गयी थी।