क्यों होनी चाहिये पत्र बम्ब की जांच क्योंकि.......

Created on Monday, 29 May 2023 08:39
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार के कुछ अधिकारियों के खिलाफ एक बेनामी पत्र के माध्यम से लगाये गये भ्रष्टाचार और यौन शोषण के आरोपों की कोई जांच हो पायेगी? नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और भाजपा के मुख्य प्रवक्ता विधायक रणधीर शर्मा अलग-अलग ब्यानों में जांच की मांग कर चुके हैं। सरकार और कांग्रेस पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। मुख्यमंत्री का यह ब्यान जरूर आया है कि जयराम जिससे चाहे जांच करवा ले। यह एक बेनामी पत्र है और ऐसे ही कई पत्र जयराम सरकार के समय में भी आये थे। जिनकी जांच नहीं करवाई गई थी। इसलिए सुक्खू सरकार को जांच करवाने की कोई आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस के कुछ हल्कों में यह तर्क भी गढ़ा जा रहा है। जयराम के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई कारवाई नहीं हुई है। यह सच है और इसी तर्क पर सुक्खू सरकार चल पड़ी है। इसका परिणाम क्या होगा यह आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन सरकारें लोक लाज़ से चलती हैं जो शायद अब बीते समय की बात हो गयी है। पत्र वायरल होकर सामने है और सार्वजनिक संपत्ति बन चुका है। इसलिये इसके तथ्यों पर सवाल उठाना आवश्यक हो जाता है।
शांग-टांग परियोजना और पटेल इंजीनियरिंग कंपनी शांग-टांग परियोजना का निर्माण कार्य अब जर्मनी की कंपनी के.एफ.डब्ल्यू से लेकर पटेल इंजीनियरिंग के पास है। इसमें 9.5% ब्याज पर पावर फाइनैन्स कारपोरेशन से ऋण लिया जा रहा है। इसके पूरा होने पर प्रतिदिन पांच करोड़ की आय होगी और देरी होने से प्रति वर्ष दो हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। 2025 में तो ट्रांसमिशन को लेकर पावर ग्रिड की पेमेंट भी शुरू हो जायेगी चाहे तब तक परियोजना तैयार हो न हो इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि प्रदेश की आर्थिकी के लिये यह कितनी बड़ी बात है। यह योजना काफी पहले तैयार हो जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका है। लेकिन यह देरी कंपनी के कारण हुई या अधिकारियों के कारण इसकी कोई जिम्मेदारी करने की जगह कंपनी को और समय देना परियोजना में डैवियेशन करने से लागत में वृद्धि होना ऐसे फैक्टर हैं जिनकी जांच होना आवश्यक हो जाता है। जिम्मेदारी तय करने की बजाये समय में बढ़ौती कर देने की एवज में ही भ्रष्टाचार होने के आरोप लग रहे हैं। पटेल इंजीनियरिंग कंपनी के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के किरु जल विद्युत परियोजना को लेकर भी जुलाई 2022 में सीबीआई की छापेमारी हो चुकी है। कंपनी के इस परिदृश्य में पत्र में लगाये गये आरोपों को हल्के से नहीं लिया जा सकता। इसलिये व्यापक जनहित में सरकार को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये।
जागरण समाचार पत्र को लेकर आरोप
जागरण समाचार पत्र की फाइल क्लीयर करने को लेकर भी आरोप लगाया गया है। इस आरेप पर स्पष्टीकरण इसलिये आवश्यक हो जाता है क्योंकि जयराम सरकार में विधानसभा में यह प्रश्न पूछा गया था कि किस अखबार को कितने-कितने विज्ञापन दिये गये हैं। इस साधारण प्रश्न का जवाब पिछली सरकार के कार्यकाल के अंतिम चार सत्रों में यही कहा गया है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। जयराम सरकार के समय में यह सूचना विधानसभा के पटल पर नहीं आयी। अब सक्खू सरकार के बजट सत्र में यह प्रश्न आया ही नहीं। स्वभाविक है कि सदन में उसी प्रश्न का जवाब टाला जाता है जिसमें सब कुछ नियमानुसार न हो। ऐसे यह जानना आवश्यक हो जाता है कि वह तथ्य क्या थे जिन्हें सरकार पटल पर नहीं रखना चाहती थी और सुक्खू सरकार ने भी इस ओर से आंखें बन्द कर ली है। शायद कई करोड़ों का मामला था। मीडिया को लेकर सुक्खू सरकार छः माह में कोई नीति नहीं बना पायी है। जबकि इस सरकार ने तो कैबिनेट रैंक में एक मीडिया सलाहकार भी नियुक्त कर रखा है। मीडिया सलाहकार के साथ ही सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का काम देखने के लिये एक मुख्य संसदीय सचिव भी नियुक्त है। लेकिन छः माह में यह लोग सारे मीडिया के साथ एक औपचारिक बैठक तक नहीं कर पाये हैं। इसलिये एक समाचार पत्र की फाइल क्लीयर करने के लिये लग रहे आरोपों की यह सच्चाई सामने आनी ही चाहिये की वास्तविकता क्या है।
महिला अधिकारी के यौन शोषण का आरोप
इस बेनामी पत्र में एक महिला अधिकारी द्वारा उसका यौन शोषण किये जाने की शिकायत मुख्यमंत्री के यहां लंबित होने का आरोप भी दर्ज है। किसी सरकार में एक अधिकारी द्वारा ऐसा आरोप लगाया जाना और उस पर सरकार का खामोश बैठे रहना अपने में बहुत कुछ कह जाता है। क्योंकि सामान्यतः ऐसे आरोपों पर सरकारें तभी खामोश रहती हैं जब उसे यह लगे कि ऐसा आरोप लगाना अधिकारी का स्वभाव ही बन गया है। लेकिन इस पत्र के माध्यम से यह आरोप आम आदमी तक पहुंच गया है। यह धारणा बन रही है कि जिस सरकार में एक महिला अधिकारी सुरक्षित नहीं है उसमें सामान्य जन कितना सुरक्षित होगा।
आज सुक्खू सरकार के खिलाफ यह बेनामी पत्र उस समय आया है जब सरकार के उपमुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को अदालत में चुनौती दी जा चुकी है। कानून के जानकारों के मुताबिक संसदीय सचिवों की नियुक्तियां देर-सवेर रद्द होंगी ही। यह पत्र प्रधानमंत्री को संबोधित है। पटेल इंजीनियरिंग कंपनी के खिलाफ सीबीआई पहले ही जुलाई 2022 में छापेमारी कर चुकी है। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री कार्यालय से यह पत्र सीबीआई तक पहुंच जाता है जो इस परिदृश्य में सीबीआई को हिमाचल आने के लिये कोई नया केस दर्ज करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। वैसे भी प्रदेश के कुछ मंत्री यह आशंका व्यक्त कर चुके हैं कि अब सीबीआई और ईडी का आना तो लगा ही रहेगा।