शिमला/शैल। नगर निगम शिमला के चुनावों में कांग्रेस ने 34 में से 24 सीटें जीतकर ऐतिहासिक सफलता हासिल की है। क्योंकि आज तक किसी भी पार्टी को इतनी सीटें नहीं मिली हैं। इसलिये यह जीत विश्लेषकों के लिये एक रोचक विषय बन गया है। कांग्रेस नेता इसे सरकार की नीतियों का समर्थन करार दे रहा हैं। विपक्ष इसे सत्ता के दुरुपयोग का परिणाम बता रहा है। विपक्ष ने चुनाव के दौरान भी सरकार पर आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप लगाये हैं। यह अलग बात है कि चुनाव आयोग ने इन आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया है। लेकिन विश्लेषण के नजरिए से इन आरोपों को हल्के से भी नहीं लिया जा सकता। क्योंकि कुछ मामले शायद अदालत तक भी ले जाये जा रहे हैं। इन चुनावों का विश्लेषण अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के परिपेक्ष में भी आवश्यक हो जाता है।
नगर निगम शिमला का यह चुनाव एक वर्ष की देरी से हुआ है। इस देरी के कारण यह संयोग घटा कि जो चुनाव सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में होता था वह सरकार बनने के पांच माह के भीतर ही हो गया। पांच माह का कार्यकाल आम आदमी की नजर में किसी भी सरकार के आकलन के लिये पर्याप्त नहीं होता है। इसलिये स्वभाविक रूप से आम आदमी सरकार के साथ ही जाने का फैसला लेता है। फिर कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में जो गारंटीयां दी हैं उनकी व्यवहारिकता को परखने का भी अभी उचित समय नहीं आया है। इसलिये इनगारटिंयों के फलीभूत होने की उम्मीद भी कांग्रेस के पक्ष में गयी है। फिर इन चुनावों के दौरान शिमला के भवन मालिकों को जो एटीक को रिहाईश योग्य बनाने और बेसमैन्ट को खोलकर उसे गैराज बनाने की सुविधा देने की घोषणा की गयी उनका भी लाभ इन्हीं चुनावों में मिलना स्वभाविक था। क्योंकि एनजीटी के 2016 के फैसले के बाद शिमला में भवन निर्माण एक जटिल समस्या बन गया है। पहले भी भवन निर्माण के लिये यह शहर नौ बार रिटैन्शन पॉलिसियों का लाभ ले चुका है। सरकार की प्लान पर सुप्रीम कोर्ट यह शर्त लगा चुका है की इस सं(र्भ में आये एतराजों का उचित निपटारा करके इस प्लान को अधिसूचित करें। इस अधिसूचना के बाद भी ऐतराज कर्ताओं को उच्च न्यायालय में जाने का अधिकार देते हुये यह निर्देश दे रखे हैं कि जब तक यह सब फाइनल नहीं हो जाता है तब तक एनजीटी के फैसले की अवहेलना न की जाये। लेकिन आम आदमी को इस सब की जानकारी न होने के कारण सरकार की घोषणा पर विश्वास करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं था। इसलिये इसका भी चुनावी लाभ मिलना स्वभाविक था।
इसी के साथ राजनीतिक दृष्टि से भी जो राजनीतिक ताजपोशीयां शिमला जिला को अब तक मिल चुकी हैं वह प्रदेश के किसी अन्य जिले को नहीं मिली है। तीन विधानसभा क्षेत्रों में फैली नगर निगम में दो क्षेत्रों में मंत्री होना भी इन चुनावों के लिये लाभदायक रहा है। इसलिये इन चुनावों में मिली इस सफलता को सरकार के पांच माह के फैसलों को जनसमर्थन करार देना थोड़ी जल्दबाजी होगी। बल्कि यह मंथन करना होगा की कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र के पाचं वार्डों में हार क्यों मिली। यहां मंथन मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी के बाद की कुछ वार्डों में हार भाजपा के साथ दोस्ती के कारण हुई है अति आवश्यक और महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि नगर निगम के चुनावां के साथ ही नादौन बी.डी.सी. और ऊना जिला परिषद के लिये उपचुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। यह हार शिमला की जीत से कुछ अर्थों में ज्यादा बड़ी हो जाती है। क्योंकि शिमला की जीत के बाद यहां की परफारमैन्स लोकसभा चुनाव के लिये एक बड़ा आधार बनेगी यह तय है।