क्यों नहीं आ पाया प्रदेश की आर्थिकी पर श्वेत पत्र उठने लगा है सवाल

Created on Sunday, 09 April 2023 19:07
Written by Shail Samachar
  • श्वेत पत्र न ला पाना सरकार की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह
  • सरकार भ्रष्ट अधिकारियों/कर्मचारियों पर अभी सूचना ही एकि़त्रत कर रही है
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार का पहला बजट सत्र समाप्त हो गया और इस सत्र में यह प्रदेश की आर्थिकी पर श्वेत पत्र नहीं ला पायी है। जबकि ऐसा आश्वासन प्रदेश की जनता को दिया गया था। क्योंकि जब कांग्रेस विपक्ष में थी तब भी पूर्व जयराम सरकार पर प्रदेश को कर्ज के गर्त में डुबाने का आरोप लगाती थी। बल्कि उस समय भी प्रदेश की आर्थिकी पर श्वेत पत्र की मांग करती थी। अब जब स्वंय सत्ता में आ गयी तो पहले दिन से ही प्रदेश की जनता को यह बताया गया कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति नाजुक है। 75000 करोड़ का कर्ज और 11000 करोड़ की देनदारियो विरासत में मिलने का आंकड़ा जनता के सामने रखा गया। पिछली सरकार पर वित्तीय कुप्रबंधन का आरोप लगाते हुये यहां तक आशंका व्यक्त की गयी कि प्रदेश के हालत कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। जब इस आशंका पर सवाल उठे तो यह कहा गया कि सरकार वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करेगी। यह श्वेत पत्र जारी करने के लिए नयी सरकार के पहले बजट सत्र से ज्यादा अनुकूल अवसर और विधानसभा पटल से बेहतर और कोई मंच नहीं हो सकता। लेकिन सरकार यह श्वेत पत्र ला नही पायी है और अगले किसी भी सत्र में इसे लाने का कोई औचित्य नहीं होगा। क्योंकि तब तक इस सरकार के अपने खर्चों और लिये जा रहे कर्ज पर सवाल उठने शुरू हो जाएंगे।
सुक्खू सरकार ने जब श्रीलंका जैसी आशंका जताई थी तब इस पर कुछ सवाल भी उठे थे। लेकिन अब जब वर्ष 2023-24 का बजट पेश होकर पारित भी हो गया है और वर्ष 2021-22 कि कैग रिपोर्ट भी सदन पर आ गयी है तो इनके आंकड़ों और खुलासों पर नजर डालना आवश्यक हो जाता है। सरकार ने कर्ज का आंकड़ा 75000 करोड़ बताया है इसमें साथ यह भी बताया है कि इस ऋण का 30% से भी अधिक अगले तीन वर्षों में लौटाया जाना है। यह भी बताया गया है कि केन्द्र से जीएसटी की प्रतिपूर्ति नहीं मिल रही है इसलिये केंद्रीय ग्रान्ट में भी कटौती होगी। 2023-24 के बजटीय आंकड़ों में विकासात्मक राशि उतनी ही है जितनी 2022-23 में थी। राजस्व खर्चों में केवल आठ सौ करोड़ की बढ़ौतरी है। आंकड़ों के इस परिदृश्य में स्पष्ट है कि जो भी वायदे यह सरकार करके आयी है उनकी आंशिक प्रतिपूर्ति के लिये भी सरकार को पहले से ज्यादा कर्ज लेना पड़ेगा। यह वित्तीय स्थिति एक कड़वा सच है जिसे किसी भी लीपापोती से छिपाया नहीं जा सकता। क्योंकि तीन वर्षों में 30% से भी अधिक के कर्ज की भरपायी और गारंटियां पूरी करने में ठोस कदम उठा पाना कर्ज और पिछले दरवाजे से कर लगाये बिना संभव नहीं हो सकेगा। यही सरकार की सेहत के लिये भारी पड़ेगा।
ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि यह सरकार श्वेत पत्र क्यों नहीं ला पायी। प्रदेश के वित्तीय प्रबंधन के लिये चयनित सरकार और उसके मुख्यमंत्री से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी सचिव वित्त की होती है। क्योंकि वह स्थायी कार्यपालिका का सदस्य होता है उसे चयनित सरकार के बाद भी रहना होता है। यह सही है कि कार्यपालिका के यह अधिकारी चयनित सरकार का अपने में एक आकलन कर लेते हैं और फिर वैसा ही व्यवहार करते हैं। अपने बचाव के लिये इन्होंने एफ आर बी एम में ऐसा संशोधन कर रखा है कि किसी भी वित्तीय आकलन की असफलता के लिये इनके ऊपर को आपराधिक जिम्मेदारी आयत नहीं होती। स्वभाविक है कि जब सरकार पहले दिन से ही वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप पूर्व सरकार पर लगाने लग गयी थी तो श्वेत पत्र के माध्यम से यह लोग ऐसा कुछ भी सदन के पटल पर क्यों आने देते। इस धारणा की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि सदन में चार अप्रैल को विधायक यादविंदर गोमा का प्रश्न था कि ऐसे कितने अधिकारी/कर्मचारी है जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। क्या सरकार आरोपित अधिकारियों/कर्मचारियों को उन विभागों से हटाने तथा उन पर कारवाई करने का विचार रखती है। इसके उत्तर में सरकार ने जवाब दिया है कि सूचना एकत्रित की जा रही है। यह सूचना किस अधिकारी से शुरू होती है पूरा प्रदेश जानता है। लेकिन सरकार ने यह सूचना सदन के पटल पर न लाकर यह स्पष्ट कर दिया है की भ्रष्टाचार को लेकर उसका क्या रुख रहने वाला है। स्पष्ट है कि अधिकारी सरकार पर भारी पड़ते जा रहे हैं। क्योंकि सदन के पटल पर श्वेत पत्र न रखकर सरकार ने अपनी ही विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर लिया है।