व्यवस्था परिवर्तन को यदि परिभाषित न किया गया तो यह कहीं अराजकता का पर्याय न बन जाये

Created on Monday, 20 March 2023 12:58
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री सुक्खु को सत्ता संभाले तीन माह हो गये हैं। इन तीन महीनों में कोई बड़ा प्रशासनिक फेरबदल नहीं किया है। मुख्य सचिव की नियुक्ति को छोड़कर और कोई महत्वपूर्ण फैसला प्रशासनिक स्तर पर नहीं हुआ है। पूर्व मुख्य सचिव 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त हो रहे थे इसलिये उनके स्थान पर नयी नियुक्ति होनी ही थी। इस पद पर जिस अधिकारी को तैनात किया गया है वह वरीयता में चौथे स्थान पर था। पूर्व सरकार में वह वित्त विभाग की कमान संभाले हुये थे। अब सुक्खु सरकार पिछली जयराम सरकार पर वित्तीय कुप्रबन्धन के आरोप लगातार लगा रही है। यह आरोप स्वतः ही वित्त विभाग का प्रबन्धन कर रहे अधिकारियों पर भी लग जाते हैं। ऐसे में जब यही अधिकारी प्रशासन के शीर्ष पर वरिष्ठां को नजरअन्दाज करके बिठा दिया तो निश्चित रूप से मानना पड़ेगा कि सही में व्यवस्था परिवर्तन हो रहा है। क्योंकि इसी परिवर्तन के परिणाम स्वरूप बजट का आकार कम करके गारंटीयां पूरी करने का प्रयास किया जायेगा। इसी परिवर्तन के प्रभाव हर कांग्रेस नेता बजट दस्तावेजों का अध्ययन किये बिना बजट की प्रशंसा कर रहा है। सुक्खु सरकार ने पिछली सरकार के दौरान खोले गये करीब 900 संस्थानों को पहले ही दिन डिनोटिफाई करने के आदेश कर दिये थे। भाजपा ने इस फैसले पर आक्रोशित होकर सरकार के खिलाफ पूरे प्रदेश में रोष रैली निकाली। प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका तक दायर हो गयी। बजट सत्र में भाजपा ने इस मुद्दे पर सदन नहीं चलने दिया। तीन दिन प्रश्नकाल इस हंगामे की भेंट चढ़ गया और तब सरकार इस पर बहस के लिये तैयार हो गयी और जवाब दिया कि जहां आवश्यकता होगी वहां संस्थान खोल दिये जायेंगे। सरकार के इस फैसले के बावजूद भाजपा अपने स्टैंड पर कायम है। अधिकारियों/कर्मचारियों के तबादले न करने का ऐलान इस सरकार ने व्यवस्था परिवर्तन को अमली जामा पहनाने की शुरुआत के रूप में किया था। लेकिन इस ऐलान के बाद यह तबादले लगातार हो रहे हैं। बल्कि अराजकता की हद तक जा पहुंचे हैं। विधायक रवि ठाकुर का ब्यान और आरोप इसका प्रत्यक्ष प्रमाण बन गया है। बल्कि रवि ठाकुर को यह मसला कांग्रेस अध्यक्ष के संज्ञान में भी लाना पड़ा है। आरोप है कि अधिकारी तत्परता से काम नहीं कर रहे हैं। यह आरोप कितना प्रमाणिक रहा है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर मुख्यमंत्री के प्रधान निजी सचिव को निर्देश जारी करने पड़े हैं। कुल मिलाकर एक अराजकता जैसी स्थिति बनती जा रही है क्योंकि व्यवस्था परिवर्तन परिभाषित नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री व्यवस्था परिवर्तन के प्रति कितने गंभीर हैं इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बजट भाषण में भी कई बार इसका जिक्र किया गया। ऐसे में यदि समय रहते इस व्यवस्था परिवर्तन को परिभाषित नहीं किया गया तो वह सरकार की सेहत पर भारी पड़ेगा।