शिमला/शैल। सरकारी कर्मचारी अधिकारी पोस्टिंग स्टेशन के दायरे में सिर्फ अपने नाम पर या परिजनो के नाम पर संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं। यह आदेश 12.01.1996 को जारी हुये थे। इन आदेशों के साथ ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों की सूची भी जारी हुई थी और सूचना सभी संबद्ध नियन्ता अधिकारियों को भेजी गई थी। इसके बाद 16.8.1997 और 26.06.2012 को भी इन्ही आदेशों को दोहराते हुये निर्देश जारी हुये तथा सूची में कुछ छूट गये वर्गों को भी शामिल किया गया। यह सूचना भी ऐसे सारे संबद्ध अधिकारियों को भेजी गयी। लेकिन सरकार के इन आदेशों में सरकार के सचिवालय और विभागों के निदेशालयों में बैठे अधिकारियों/कर्मचारियों को इस प्रतिबन्ध में शामिल नहीं किया गया था। जबकि नगर निकायों तक के अधिकारी कर्मचारी इसमें शामिल थे। सरकार के इन आदेशों का कर्मचारियों/अधिकारियों पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा था और कुछ कर्मचारी संगठनों ने इस पर नाराजगी भी व्यक्त की थी। इस नाराजगी का संज्ञान लेते हुए सरकार ने 15.02.2016 को इस नीति में संशोधन करते हुए नये सिरे से आदेश जारी करते हुए यह सुविधा दे दी कि सरकार की पूर्व अनुमति से संपत्ति खरीदी जा सकती है। इसमें यह शर्त लगा दी कि ऐसी खरीदी हुई संपत्ति का पंजीकरण अधिकारी/कर्मचारी की उस स्टेशन से ट्रांसफर के दो वर्ष बाद होगा। अब सुक्खू सरकार ने 2016 में मिली सुविधा को वापिस ले लिया है। संपत्ति खरीद पर पुनः रोक लग गयी है। सरकार के इस फैसले को भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस संबंध में जारी हुए हर पत्र में यह कहा है कि सरकार के पास उसके आदेशों की अवहेलना की सूचनाएं आ रही हैं। लेकिन आज तक ऐसी अवहेलना के लिये किसी को भी दंडित किये जाने की जानकारी सामने नहीं आयी है। जबकि यह अवहेलना दण्डनीय अपराध घोषित है। ऐसे में अब यह चर्चा चल पड़ी है कि क्या इससे सही में भ्रष्टाचार रुक जायेगा? क्या फील्ड में तैनात कर्मचारी अधिकारी ही भ्रष्टाचार करता है और सचिवालय तथा निदेशालय में बैठे लोग एकदम पाक साफ हैं? यह माना जा रहा है कि जब तक ऐसा प्रतिबंध हर कर्मचारी/अधिकारी पर एक साथ एक जैसा लागू नहीं होगा तब तक इसका कोई अर्थ नहीं होगा। संपत्ति खरीद पर रोक से पहले सरकार को यह विचार करना चाहिये कि एक अधिकारी/कर्मचारी को राजस्व अधिनियम की धारा 118 के तहत जमीन खरीद की कितनी बार अनुमतियां मिलनी चाहिये। क्योंकि सरकार में ऐसे अधिकारी कर्मचारी हैं जिनके पास प्रदेश के कई स्थानों पर संपत्तियां हैं और वह गैर कृषक और गैर हिमाचली हैं।