शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिये समर्पित निवेश प्रोत्साहन एवं सुगमता ब्यूरो गठित करने का फैसला लिया है। इस ब्यूरो के माध्यम से निवेशकों को सभी सवीकृतियां समयबद्ध ढंग से प्रदान की जायेगी। यह ब्यूरो उद्योग, पर्यटन, खाद्य प्रसंस्करण, आयुर्वेद, सूचना प्रौद्योगिकी एवं आईटीसी, ऊर्जा तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षण संस्थानों में निवेश के लिये वन स्टॉप सॉल्यूशन सुविधा उपलब्ध करवायेगा। इस ब्यूरो के माध्यम से 10 करोड़ से अधिक के निवेश वाली परियोजना को अनुमोदन और स्वीकृतियां प्रदान की जायेगी। स्मरणीय है कि कांग्रेस ने जो दस गारंटीयां जारी की हैं उनमें एक गारंटी एक लाख रोजगार सृजित करने की भी है। इस समय प्रदेश के सरकारी क्षेत्र में करीब अढ़ाई लाख कर्मचारी कार्यरत हैं और प्राइवेट क्षेत्र में उद्योग विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2.40 लाख कर्मचारियों को रोजगार उपलब्ध है। सरकारी क्षेत्र में प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की संख्या भी करीब दस हजार के आसपास रहती हैं। इस परिदृश्य में एक लाख रोजगार प्रतिवर्ष उपलब्ध करवा पाना एक बहुत बड़ा लक्ष्य हो जाता है। प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगार युवाओं की संख्या करीब बारह लाख है।
ऐसे में जब भी रोजगार के अवसर सृजित करने की बात उठती है तो सबसे पहला ध्यान उद्योगों पर जाता है। प्रदेश में औद्योगिक विकास की ओर 1977 से ध्यान जाने लगा है। इसके बाद भी औद्योगिक क्षेत्र चिन्हित और स्थापित हुये हैं। प्रदेश में उद्योगों को आमन्त्रित करने के लिये हर तरह की सुविधायें उन्हें प्रदान करवाई गयी। कर्ज और उपदान सब कुछ दिया गया है। बल्कि इसके परिणाम स्वरूप प्रदेश का वित्त निगम लगभग बन्द होने की कगार पर पहुंच गया है। उद्योगों की सहायता में कार्यरत अन्य बोर्ड/निगम भी भारी घाटे में चल रहे हैं। आज तक केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक ने जो उपदान उद्योगों को दे रखे यदि सबका योग किया जाये तो यह राशि इन उद्योगों के अपने निवेश से कहीं ज्यादा हो जाती है। इन उद्योगों से कुल रोजगार प्रदेश के युवाओं को मिल पाया है वह भी सरकारी क्षेत्र से कम है। इन उद्योगों से सरकारी कोष में वर्ष 2022-23 में आया कुल कर राजस्व 10881.39 करोड़ और करेत्तर राजस्व 2769.21 करोड़ है। इन उद्योगों को अब तक दी गयी आर्थिक सुविधाओं के लिए जो ब्याज सरकार प्रतिवर्ष दे रही है वह इस कुल कर राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है। जो उद्योग 1977 से 1990 तक प्रदेश में लगे हैं उनमें से शायद आज आधे से भी कम व्यवहारिक रूप से उपलब्ध हैं। जब हर सरकार उद्योगों को लुभाने के आकर्षित उद्योग नीतियां लेकर आती रही है। प्रदेश के भीतर और बाहर बड़े स्तर पर इन्वैस्टर मीट आयोजित हुए हैं। हर मीट के बाद निवेश और रोजगार के लम्बे-लम्बे आंकड़े परोसे जाते रहे हैं लेकिन कोई भी सरकार अपने दावों पर श्वेत पत्र जारी नहीं कर पायी है। यह एक स्थापित सत्य है कि जिस भी उद्योग के लिए यहां पर कच्चा माल और उपभोक्ता प्रदेश में उपलब्ध रहेगा वही यहां पर सफल हो पायेगा दूसरा नहीं। सुक्खू सरकार ने व्यवस्था बदलने का वादा प्रदेश से किया है। इस वायदे के परिपेक्ष में यह उम्मीद किया जाना स्वभाविक है कि नई उद्योग नीति लाने से पहले अब तक के व्यवहारिक परिदृश्य पर नजर दौड़ा ली जाये क्योंकि प्रदेश की स्थिति श्रीलंका जैसी होने की आशंका बराबर बनी हुई है।