मंत्रीमण्डल विस्तार में लग सकता है समय
पार्टी में गुटबाजी का सन्देश जाना हो सकता है नुकसानदेह
शैल का चुनावी आकलन हुआ सही साबित
शिमला/शैल। हिमाचल में सत्ता परिवर्तन हो गया है कांग्रेस 40 सीटें जीत कर सत्ता पर काबिज हो गयी है। सोलन और हमीरपुर में भाजपा शून्य हो गयी है। शिमला, ऊना और कांगड़ा में भी कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा है। यदि मंडी और बिलासपुर में भी इसी स्तर का प्रदर्शन रहता तो निश्चित रूप से कांग्रेस का आंकड़ा 50 से भी बड़ जाता। मंडी और बिलासपुर का परिणाम भाजपा तथा कांग्रेस दोनों दलों के लिये अपने-अपने तौर पर चिन्तन और चिन्ता का विषय है। जबकि आम आदमी के लिए बिलासपुर सदर में जो कुछ घटा है वह चुनावी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने का पर्याप्त आधार दे देता है। शैल के पाठक जानते हैं कि हमारा आकलन पूरी तरह सही साबित हुआ है। हम लगातार सत्ता परिवर्तन को लेकर आश्वस्त रहे हैं। लेकिन इस सत्ता परिवर्तन के बाद बड़ा सवाल यह होगा कि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरी सफलता के साथ पूरा करे और प्रदेश की जनता को दी 10 गारन्टियों को शीघ्र से शीघ्र पूरा करे। नई सरकार पर यह सवाल इसलिये खड़ा हो रहा है कि जब पर्यवेक्षकों ने नेता चुुनने को लेकर जब विधायकों के साथ बैठक की तब कार्यकर्ताओं ने अलग-अलग नेताओं के समर्थन में नारेबाजी कर दी। इस नारेबाजी के परिदृश्य में विधायकों की बैठक के बाद यह सामने आया कि सुखविन्दर सिंह मुख्यमंत्री और मुकेश अग्निहोत्री तथा विक्रमादित्य सिंह उपमुख्यमंत्री नामित हुये हैं। मीडिया में इस आश्य के समाचार भी प्रसारित हो गये। लेकिन जब शपथ ग्रहण समारोह हुआ तो सिर्फ सुखविन्दर सिंह सुक्खु और मुकेश अग्निहोत्री की ही शपत हुई। विक्रमादित्य का नाम गायब हो गया। ऐसा क्यों हुआ इसकी कोई अधिकारी जानकारी आने की बजाये पार्टी में गुटबाजी होने के समाचार आने लग गये। यह सब आम आदमी के सामने घटा है और अनचाहे ही चर्चा का विषय बन गया है। इसी चर्चा के कारण मंत्रिमण्डल के गठन में समय लगने की बात हो रही है। बल्कि कुछ अन्य आवश्यक नयुक्तियां होने में भी समय लग रहा है। यह समय लगना और पार्टी के भीतर पहले दिन से गुटबाजी होने के समाचार आना आगे चलकर क्या रंग दिखाएंगे यह अभी से एक चिन्तन का विषय बन गया है क्योंकि विपक्ष में भाजपा है। गैर भाजपा सरकारों को तोड़ने के लिये ऑपरेशन लोटस कैसे चलता रहा है यह किसी से छिपा नहीं है। इसी परिदृश्य में यह चर्चा करना प्रसांगिक हो जाता है कि इस समय प्रदेश कांग्रेस में स्व. वीरभद्र के कद का कोई नेता नहीं है। उस कद का नेता बनने के लिये सभी को समय लगेगा। अभी कांग्रेस को अगले लोकसभा चुनावों तक स्व. वीरभद्र सिंह को अधिमान देकर चलना होगा। क्योंकि जब भी जयराम सरकार के फैसलों और उसके कार्यों पर सवाल उठेंगे तो उनका आकलन वीरभद्र सरकार के कार्यकाल से ही करना होगा। अगले लोकसभा चुनाव तक सुक्खु सरकार का केवल एक वर्ष की पूरा हुआ होगा। इस वर्ष में ओ.पी.एस., महिलाओं को 1500 रूपये प्रतिमाह तथा 300 यूनिट बिजली मुफ्त और एक लाख रोजगार सृजित करना ऐसे आर्थिक फैसले होंगे जिनमें साधन आवश्यक होंगे। यह साधन कैसे जूटाये जाते हैं इस पर सबकी निगाहें रहंेगी। चुनावों के दौरान कांग्रेस अपना आरोप पत्र जनता के बीच जारी कर चुकी है। इस पर ही कैसे अगली कारवाही शुरु होगी इस पर भी सबकी नजरें रहेंगी। आरोप पत्र पर कारवाई का सीधा प्रभाव राजनेताओं से पहले प्रशासन पर पड़ेगा। अभी शिमला नगर निगम के चुनावों का सामना करना पड़ेगा। इन चुनावों में एन.जी.टी. का फैसला और उस फैसले की अवहेलना के मामले एक बड़ा सवाल रहेंगे। क्योंकि अवहेलना का आरोप सरकार पर भी लग चुका है। इस संद्धर्भ में सरकार के स्टैण्ड का असर पूरे प्रदेश पर पड़ेगा। यह सब लोकसभा चुनाव से पहले हो जायेगा। इसका प्रभाव लोकसभा चुनाव पर अवश्य पड़ेगा। इसलिये सरकार को एक दूरगामी चिन्तन करके चलना होगा। इस वस्तुस्थिति में यह पहली आवश्यकता होगी की पार्टी में गुटबाजी होने का कोई भी परोक्ष/अपरोक्ष सन्देश नहीं जाना चाहिये। अभी कांग्रेस के हर नेता को हर आयोजन के मंच पर स्व. वीरभद्र सिंह को याद करना पड़ता है क्योंकि सरकार की अपनी परफॉरमैन्स को सामने आने में समय लगेगा। इसलिये विश्लेष्कों की नजर में 2024 के लोकसभा चुनाव तक वीरभद्र परिवार के सम्मान को किसी भी तरह की ठेस पहुंचाना नुकसानदेह हो सकता है। इन चुनावों में पार्टी को मण्डी लोकसभा क्षेत्र में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है। लेकिन बिलासपुर में भी चार में से 3 सीटें कांग्रेस हार गयी है। वहां पर सदर चुनाव क्षेत्र में चुनाव आयोग का आचरण जिस तरह का रहा है उसको बम्बर ठाकुर ने सीधा जगत प्रकाश नड्डा पर आरोप लगाया है। परन्तु कांग्रेस पार्टी की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया न आना अपने में कई सवाल खड़े कर जाता है। मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खु का संगठन लम्बा अनुभव है वह यह अच्छी तरह से समझते हैं कि संगठन की छोटी घटनाएं भी कई बार बड़ा आकार ले लेती हैं। ऐसे में यह सुक्खु और मुकेश के लिये टैस्ट होगा कि वह गुटबाजी के सन्देश को कैसे रोक पाते हैं।