जून में बन्द हुई जी.एस.टी. प्रतिपूर्ति पर इतना समय क्यों चुप रहे जयराम

Created on Tuesday, 29 November 2022 13:58
Written by Shail Samachar

क्या कैग रिपोर्टों के खुलासे को नजरअन्दाज किया जा सकता है
गुलाब सिंह और रेणु चड्डा के ऑडियो और पवन काजल के पत्र का सच क्या है

शिमला/शैल। मतदान के बाद चुनाव की समीक्षाओं का दौर चल रहा है और भाजपा तथा कांग्रेस दोनों दल अपनी-अपनी सरकारें बनाने के दावे कर रहे हैं। गुजरात और दिल्ली एम.सी.डी. चुनावों के परिदृश्य में नेताओं के लिये यह दावे करना स्वभाविक और आवश्यक भी हो जाता है। ऐसे में किसी निष्पक्ष आकलन के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार के कामकाज को उसके सत्ता संभालने के पहले दिन से लेकर कार्यकाल के अन्तिम दिन तक पूरी निष्पक्षता के साथ नजर में रखा जाये। इसी के साथ यह भी आवश्यक हो जाता है कि इस दौरान विपक्ष और मीडिया की सरकार को लेकर क्या और किस तरह की प्रतिक्रियाएं रही हैं। क्योंकि विपक्ष और मीडिया ही जनता की सूचनाओं के मुख्य स्रोत रहते हैं। जनता इन सूचनाओं और प्रतिक्रियाओं को अपने चारों और व्यवहारिकता में देखकर सबके बारे में अपना मन बनाती है। उसका यह व्यवहारिक अनुभव ही कम ज्यादा या औसत मतदान के रूप में सामने आता है और चुनावी आकलनों का आधार बनता है। इसमें जब केंद्र और राज्य ने एक ही पार्टी की सरकारें होना भी साथ रहता है तब यह आकलन दोनों के ही नेतृत्व का प्रतिफल बन जाता है। इस परिपेक्ष में हिमाचल के चुनाव का आकलन केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारों के आपस में रहे सहयोग का भी खुलासा हो जाता है। इसलिए विपक्ष और मीडिया की प्रतिक्रियाओं को भी संज्ञान में रखना आवश्यक हो जाता है। इस परिपेक्ष में जब जयराम सरकार और भाजपा का आकलन इन चुनावों के परिदृश्य में किया जाये तो यह पहला सवाल इसके डबल इंजन होने को लेकर उठता है। अभी मतदान के बाद मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की केन्द्रीय वित्त मंत्री के साथ बैठक हुई है। इस बैठक में मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त भी मुख्यमंत्री के साथ थे। इस बैठक में अन्य मुद्दों के साथ जीएसटी की प्रतिपूर्ति की बहाली का मुद्दा बड़ी प्रमुखता से उठाया गया। यह सामने आया कि केन्द्र सरकार ने जून माह से प्रदेश को जीएसटी की प्रतिपूर्ति पूरी तरह से बन्द कर दी है। जबकि जीएसटी एक्ट के तहत राज्यों का यह प्रतिपूर्ति पाना अधिकार है। यह प्रतिपूर्ति बंद किया राज्य को उसके अधिकार से वंचित रखना हो जाता है। इस प्रतिपूर्ति के तहत प्रदेश का करीब 4000 करोड़ मिलना है जो नहीं दिया जा रहा है।
सरकार को कर्ज लेकर अपना काम चलाना पड़ रहा है। जून में यह प्रतिपूर्ति बन्द हो जाने पर भी जयराम सरकार विधानसभा चुनाव के मतदान तक इस मुद्दे पर जुबान नहीं खोल पायी है। मीडिया भी अधिकांश में चुप रहा है। केवल शैल ने इस पर सवाल उठाये हैं। यहां तक कि विपक्ष भी चुप बैठा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक हो जाता है कि यदि डबल इंजन के इस तरह के सहयोग की जानकारी मतदाताओं को चुनाव के दौरान रहती तो इसका क्या प्रभाव पड़ता। जबकि डबल इंजन का कड़वा सच 31 मार्च 2019 और 31 मार्च 2020 को आयी कैग रिपोर्ट में ही सामने आ चुका है। इनके मुताबिक 2018-19 और 2019-20 में केन्द्रीय प्रायोजित योजनाओं के लिये केन्द्र से प्रदेश को कोई पैसा नहीं मिला है। जीएसटी की प्रतिपूर्ति भी तब से रुकती चली आयी है। शैल यह दस्तावेज अपने पाठकों के सामने रख चुका है। इसीलिए तो 69 राष्ट्रीय राजमार्ग आज तक सिद्धांत से आगे नहीं बढ़ पाये हैं। 2018 में ऐसे ही सहयोग के चलते सरकार 100 योजनाओं पर एक पैसा तक खर्च नहीं कर पायी है और 2019 में स्कूलों में बच्चों को वर्दियां नहीं मिल पायी है। इस तरह के व्यवहारिक सहयोग के चलते डबल इंजन की सरकार होने का चुनावी लाभ कितना मिला होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है। डबल इंजन के उन पक्षों पर जयराम, अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा इसलिये आज तक चुप चले आ रहे हैं। अब चुनावों के दौरान टिकट आवंटन के बाद जिस तरह की बगावत पार्टी के अन्दर देखने को मिली है उसी के परिणाम स्वरूप करीब दो दर्जन चुनाव क्षेत्रों में बागियों ने चुनाव लड़ा है। इनमें से कितने चुनाव जीतकर आ जायेंगे इसका सही आकलन पार्टी के विद्वान अभी तक नहीं लगा पाये हैं। लेकिन यह मुख्यमंत्री ने स्वयं माना है कि बारह से पन्द्रह बागी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिये बागियों से संपर्क साधने को लेकर शीर्ष नेतृत्व एक राय नहीं हो पाया है। लेकिन इस सबसे ज्यादा रोचक तो पार्टी नेता गुलाब सिंह ठाकुर का जोगिन्दर नगर से वायरल हुआ ऑडियो है। इस ऑडियो की चर्चा अभी थमी भी नहीं थी कि चम्बा से वरिष्ठ पार्टी नेत्री रेणु चड्डा का ऑडियो सामने आ गया हालांकि उसने इसका बाद में खण्डन भी किया हैं। लेकिन इन ऑडियोज में जो चर्चाएं और आक्षेप उठाये गये हैं उन सब पर अन्त में पवन काजल के पत्र ने प्रमाणिकता की मोहर भी लगा दी है। पवन काजल ने अपने पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए स्वीकार किया है कि यह पत्र उन्होंने जे.पी. नड्डा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नाम लिखा है तथा इसमें सही आरोप लगाये हैं। पत्र के वायरल होने पर उन्होंने हैरानी अवश्य जताई है। ऐसे ही आरोप प्रदेश के हर हिस्से में सामने आये हैं। इस चुनाव में भाजपा को अपने सिद्धांतों को अंगूठा दिखाना पड़ा है। परिवारवाद का आरोप अब केवल विपक्ष के लिये हैं और भाजपा पर लागू नहीं होता है। सिद्धांतों के इसी खोखले पन का परिणाम है कि प्रधानमन्त्री को हिमाचल में एक दर्जन तो गुजरात में पच्चास रैलियां करनी पड़ी हैं। और की महंगाई का जवाब प्रधानमन्त्री को मोबाइल डाटा सस्ता होने के रूप में देना पड़ रहा है। महंगाई और बेरोजगारी का दंश झेलते युवा को सस्ता डाटा राम मन्दिर तीन तलाक और 370 हटाने के नाम पर ज्यादा देर तक भटकाया नहीं जा सकता। भ्रष्टाचार पर अन्ना का आन्दोलन यदि दिल्ली में स्व. शीला दीक्षित की सरकार को शुन्य कर सकता है तो आज विनियोग के नाम पर सारे सार्वजनिक उपकरणों को एक-एक करके निजी क्षेत्र के हवाले करना भाजपा को शून्य पर क्यों नहीं ला सकता है।
आज मतदान के बाद चुनावी परिणामों का स्वभाविक आकलन करते हुये क्या भाजपा के अन्दर की इस स्थिति को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिये? क्या आज विश्वविद्यालय के परिणामों में 80% छात्रों का फेल हो जाना सरकार की कोविड नीति और प्रबंधनो पर नये सिरे से विचार करने पर बाध्य नहीं करता है? क्या आकलन में कैग रिपोर्टों के खुलासों का संज्ञान नहीं लिया जाना चाहिये? क्या इन सच्चाईयों पर मीडिया की चुप्पी के कारण ही उसे गोदी मीडिया की संज्ञा नहीं मिली है? यदि इस सबको एक साथ रखने के बाद कुछ लोगों को भाजपा के पक्ष में सब कुछ हरा ही दिखाई दे तो सही में सब कुछ हरा ही हो जायेगा यह कतई संभव नहीं है। इसलिये भाजपा की काठ की हांडी इस बार चढ़ने वाली नहीं है यह तय है।