शिमला/शैल। केन्द्र सरकार ने सिरमौर के गिरी पार के हाटीयों को जनजातीय दर्जा दिया जाना स्वीकार कर लिया है। प्रदेश सरकार ने इसे अपनी एक बड़ी उपलब्धि करार देते हुए बड़े स्तर पर इसका प्रचार प्रसार किया है। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल के इस फैसले के बाद संसद में इस आश्य का संविधान संशोधन लाया जायेगा। संसद का सत्र अब वर्ष के अन्त में आयेगा जिसमें यह संशोधन पारित होगा। इस कारण अभी तुरन्त प्रभाव से इन लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पायेगा। अभी जो भर्तियां बगैरा सरकार करेगी उसमें इस लाभ से यह लोग वंचित रह जायेंगे। ऐसे में यह सवाल उठना शुरू हो गया है कि यदि प्रदेश सरकार सही में इस पर गंभीर है तो केन्द्र से इसमें अध्यादेश जारी कर इसे तुरन्त प्रभाव से लागू कर सकती है। अन्यथा यह आशंका बराबर बनी रहेगी कि यह मुद्दा भी अंत में कहीं एक जुमला बनकर ही न रह जाये। क्योंकि इस पर कुछ समुदायों में रोष भी फैल गया है। लोग विरोध में धरने प्रदर्शनों पर आ गये हैं। बल्कि यह मामला प्रदेश उच्च न्यायालय तक भी पहुंच गया है।
स्मरणीय है कि हाटी का मसला हर चुनाव से पहले मुखर होता रहा है। 1995 और 2006 में दो बार इस पर पूर्व में विचार हो चुका है। किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष को जन जातिय दर्जा देने के कुछ मानक तय हैं। लेकिन यह समुदाय इन मानकों पर पूरा नहीं उतरता रहा है। इसलिये राज्य सरकार के इस आश्य के प्रस्ताव भारत के महा रजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा अधिकार होते रहे हैं। इसमें 14 फरवरी 2017 को आया पत्र महत्वपूर्ण है। इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि यदि 2017 में यह समुदाय जनजातिय मानकों को पूरा नहीं कर रहा था तो आज 2022 में यह कैसे संभव हो सकता है। 2017 के पत्र के परिदृश्य में सरकार के लिये यह स्पष्ट करना आवश्यक हो जाता है कि वास्तविक स्थिति क्या है। क्योंकि अभी तक केन्द्र सरकार द्वारा पारित प्रस्ताव का प्रारूप सामने नहीं आ पाया है। इसलिये यह आवश्यक हो जाता है कि सरकार अपनी गंभीरता और ईमानदारी दिखाने के लिए केन्द्र से अध्यादेश जारी करने का आग्रह करे। भारत सरकार का फरवरी 2017 का पत्र पाठकों के सामने रखा जा रहा है ताकि इस पर अपनी राय बना सकें।
भारत सरकार का पत्र