शिमला/शैल। हिमाचल में चुनावी मुकाबला जैसे-जैसे भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर की ओर बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में भाजपा तथा आप से नेता कांग्रेस का हाथ थामने लग पड़े हैं। लेकिन भाजपा और आप में यह सेन्धमारी करना कांग्रेस का पार्टी स्तर पर सामूहिक रणनीतिक फैसला है या कुछ नेताओं का व्यक्तिगत प्रयास है यह सवाल राजनीतिक विश्लेषकों के लिये महत्वपूर्ण और दिलचस्प होता जा रहा है। क्योंकि बड़े स्तर का किसी भी दल का नेता दल बदल करते हुए यह पहले सुनिश्चित करता है कि दूसरे दल में जाकर उसके राजनीतिक हित सुरक्षित होंगे। कार्यकर्ता बनने के लिये केवल कार्यकर्ता ही दलबदल करता है स्थापित नेता नहीं। यह सवाल अभी ठियोग में इन्दु वर्मा के दलबदल करने के बाद कांग्रेस के भीतर उभरी प्रतिक्रियाओं से सामने आया है। अभी जो सेन्धमारी हुई है उसमें जिन नेताओं ने सक्रिय भूमिका अदा की है उसमें पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू और वर्तमान अध्यक्ष सांसद प्रतिभा सिंह के नाम प्रमुख हैं। लेकिन जिन लोगों ने इन्दु वर्मा के शामिल होने पर अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं उनके तार भी हाईकमान से सीधे जुड़े हुए हैं यह भी सबको जानकारी है। ऐसे में अभी से यह आशंकाएं भी उभरने लग पडी हैं कि सेन्धमारी की यह सक्रियता आगे चलकर कहीं हितों का टकराव न बन जाये। क्योंकि अभी तक कांग्रेस भाजपा और उसकी सरकार को मुद्दों पर नहीं घेर पा रही है। कांग्रेस का कथित आरोप पत्र जितना टलता जा रहा है उसको लेकर भी सवाल उठने लगे पड़े हैं।
अभी कांग्रेस जयराम सरकार को घेरने के लिये ठोस मुद्दे नहीं उठा रही है। बल्कि कांगड़ा के एक आयोजन में जिस तरह से युवाओं को ब्याज मुक्त ऋण तथा एक लाख से अधिक नौकरियां उपलब्ध करवाने का वायदा किया गया है उससे मुफ्ती की भी झलक आने लगी है। इसी आयोजन में स्व. बाली को लेकर जिस तरह की टिप्पणी कांग्रेस प्रभारी की ओर से आयी है उसके बाद स्थिति प्रभारी और अनुराग ठाकुर के बीच रहे रिश्तों के जिक्र तक पहुंच गयी है। इसी में एक पूर्व कर्मचारी नेता की कुछ कांग्रेस नेताओं के साथ बढ़ती सक्रियता भी चर्चा का विषय बनती जा रही है। कुल मिलाकर जनता कांग्रेस से जितनी ज्यादा उम्मीद लगाती जा रही है इसके नेता उतना ही आपस में उलझते जा रहे हैं। इसी का सहारा लेकर भाजपा कांग्रेस में एक बड़ी तोड-़फोड़ की विसात बिछाती जा रही है । एक वर्ग इस बात की वकालत में लग गया है कि कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में नेतृत्व फिर जिला शिमला में ही रहना चाहिये। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए स्व. वीरभद्र सिंह के नक्शे कदम पर चलते हुए अपने विरोधीयों को चुनावों में ही निपटा देने की रणनीति पर काम करने के सुझाव दिये जाने लगे हैं। इसमें भी सबसे रोचक पक्ष यह है कि इस तरह की रणनीति अपनाने की वकालत वह लोग कर रहे हैं जो वैसे मोदी के नाम की माला जपते हैं।
इस तरह जो राजनीतिक वातावरण कांग्रेस नेतृत्व के गिर्द खड़ा किये जाने के प्रयास किये जा रहे हैं उसके अन्तिम परिणाम घातक हो सकते हैं। इस समय सेन्धमारी के प्रयासों से ज्यादा आवश्यक कांग्रेस कार्यकर्ताओं को प्रदेश से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय करने की आवश्यकता है।