समय-समय पर आये पत्र बम्बों ने बिगाड़ा गणित
अधिकांश मंत्रियों की वापसी संदिग्ध
जिस महंगाई ने उपचुनाव हराये उसके चलते आम चुनाव कैसे हो सकते हैं सुरक्षित
खीमी, कुठियाला और इन्दु वर्मा के बाद यह आंकड़ा एक दर्जन होने की संभावना
शिमला/शैल। क्या हिमाचल में भाजपा सत्ता में वापसी कर पायेगी? क्या भाजपा हिमाचल कांग्रेस में तोड़फोड़ कर पायेगी? यह सवाल इन दिनों फिर पूछे जाने लग पड़े हैं। क्योंकि जब भाजपा चारों उपचुनाव हार गयी थी तो इस हार के लिये महंगाई को जिम्मेदार ठहराया गया था। अब यह महंगाई और बढ़ गयी है लेकिन जयराम के मंत्रिमण्डलीय सहयोगी वीरेन्द्र कंवर महंगाई को कोई मुद्दा ही नहीं मानते हैं। इस आश्य का उनका ब्यान छपा है। वैसे अब जब साधारण खाद्य सामग्री पर जीएसटी लगा दिया गया है तो स्वभाविक रूप से महंगाई बढ़ेगी ही। लेकिन इस महंगाई पर अभी तक मुख्यमंत्री ने मुंह नहीं खोला है। तय है कि जब महंगाई से तंग आकर जनता उपचुनाव हरवा सकती है तो अब जब सरकार बदली जा सकती है तो जनता क्यों पीछे रहेगी। उपचुनाव में मिली हार के बाद यह लगातार छपता रहा है कि जिन मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड अच्छा नहीं है उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। उनके विभाग बदले जा सकते हैं। चुनाव में तीन दर्जन लोगों के टिकट बदले जायेंगे। उप चुनावों के बाद इस आश्य का जो कुछ भी छपा वह भले ही सही नही हुआ हो लेकिन इससे यह संदेश अवश्य गया है कि सरकार और संगठन में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। जब उत्तराखंड में धामी की हार के बाद भी उसे मुख्यमंत्री बना दिया गया तब हिमाचल में भी यह मांग उठी की धूमल की हार के कारणों की जांच की जाये। इस मांग को किस तरह नकारा गया और यहां तक कह दिया गया कि 2017 में पुराने नेतृत्व और नीति को खत्म करके नया नेता और नीति लायी गयी है। इसका असर धूमल समर्थकों पर क्या हुआ होगा इसका अन्दाजा लगाना कठिन नहीं होगा। बल्कि जब इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए दो निर्दलीय विधायकों को भाजपा में शामिल किया गया इससे धूमल समर्थकों रविन्द्र रवि और गुलाब सिंह ठाकुर को हाशिये पर धकेल दिया गया। इससे भी भाजपा के अन्दर खेमे बाजी होने का ही प्रमाण मिलता है। जयराम के कार्यकाल में पार्टी के अपने ही कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सरकार के खिलाफ पत्र बम्बों के माध्यम से नेतृत्व और हाईकमान को समय-समय पर आगाह करने के प्रयास हुये हैं वह भी किसी से छिपा नहीं है। भले ही कांग्रेस सरकार के खिलाफ आरोपपत्र न ला पायी हो लेकिन जो मुद्दे इन पत्र बम्बों में उछले हैं उनका असर विपक्ष के आरोपों से कहीं ज्यादा है। क्योंकि चुनाव के दौरान यह पत्र बम फिर से मुद्दा बन जायेंगे इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। चंडीगढ़ में एक मंत्री की पत्नी के पर्स की चोरी होने पर दर्ज हुई एफआईआर का परिणाम आज तक सामने नहीं आया है। इन पत्र बम्बों के माध्यम से मुद्दे आज तक अपनी जगह खड़े हैं। बल्कि इसी का परिणाम है कि अब भाजपा छोड़ नेता कांग्रेस में जाने लग पड़े हैं। खीमी राम, मनोज कुठियाला और अब इन्दु वर्मा सबका कांग्रेस में जाना यह इंगित करता है कि निकट भविष्य में यह लाइन उम्मीद से ज्यादा लंबी हो सकती है। भाजपा तो यह दावे ही करती रही है कि कांग्रेस से लोग भाजपा में आयेंगे जैसा कि अन्य प्रदेशों में हो रहा है। लेकिन हिमाचल में इससे उलट हो रहा है और इसका प्रदेश नेतृत्व के पास कोई जवाब नहीं है। बल्कि इस परिदृश्य में जो चुनाव पूर्व चार सर्वेक्षण हुए उनके परिणाम भी वायरल हो चुके हैं। किसी भी सर्वेक्षण में भाजपा सत्ता में वापसी नहीं कर पायी है। सबसे बड़े जिले कांगड़ा में दो या तीन के आंकड़े से आगे नहीं बढ़ पायी है। चंबा, ऊना, हमीरपुर और बिलासपुर में शून्य होने की संभावनाएं हैं। जनजातीय क्षेत्रों में भी शून्य का सर्वे है। अधिकांश मंत्री सुरक्षित नहीं माने जा रहे हैं। केवल गोदी मीडिया की रिपोर्टों में स्थिति संतोषजनक है।