क्या बिना काम के बैठाना जिम्मेदारी में समकक्षता है

Created on Monday, 25 July 2022 11:46
Written by Shail Samachar

सरकार के आदेश से उभरी चर्चा

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने अभी 14 तारीख को 1987 बैच के आईएएस अधिकारी राम सुभाग सिंह को मुख्य सचिव के पद से हटाकर उनके स्थान पर 1988 बैच के आर.डी. धीमान को इस पद पर तैनात किया है। वैसे राम सुभाग सिंह की सेवानिवृत्ति जुलाई 2023 में होगी। मुख्य सचिव किसको बनाना है यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। इसमें यही सुनिश्चित किया जाता है यदि किसी जूनियर को इस पद पर तैनाती दी जाती है तो ऐसे में नजरअन्दाज किये जाने वाले सीनियर को उसके जूनियर के तहत पोस्ट न किया जाये। जयराम सरकार ने भी आर.डी. धीमान को मुख्य सचिव नियुक्त करते हुये उनसे सीनियर राम सुभाग सिंह, निशा सिंह और संजय गुप्ता को नजरअंदाज करके इन लोगों को बतौर सलाहकार नियुक्तियां दी। यह नियुक्तियां व्यवहारिक रूप से बिना काम के बैठने वाली होती हैं। क्योंकि कोई भी विभागीय सचिव सलाहकार से सलाह लेने नहीं जाता है। सरकार के रूल्स ऑफ बिजनेस में भी सलाहकार का पद परिभाषित नहीं है। किस स्तर पर कौन सी फाइल सलाहकार को जायेगी ऐसा कुछ भी इन नियमों में प्रदत नहीं है और यह नियम बाकायदा विधानसभा से पारित हैं और गोपनीय माने जाते हैं। इस परिपेक्ष में जब यह सामने आया कि इन तीनों अधिकारियों को बिना काम के बैठा दिया गया है जबकि नियमों के मुताबिक इन्हें मुख्य सचिव के समकक्ष होना है। यह सामने आते ही एक और आदेश पारित करके इन लोगों को मुख्य सचिव के समकक्ष स्टेटस और जिम्मेदारियां दी गयी। इस आशय का आदेश अलग से जारी हुआ है। लेकिन व्यवहार में इन अधिकारियों के पास कोई फाइल आने का प्रावधान ही रूल्स ऑफ बिजनेस में नहीं है। ऐसे में कोई भी अधिकारी बिना काम के जिम्मेदारी में भी मुख्य सचिव के समकक्ष कैसे हो जायेगा? यह सवाल सचिवालय के गलियारों से लेकर सड़क तक बराबर चर्चा में चल रहा है। क्योंकि यह अधिकारी और इनके कार्यालयों में तैनात कर्मचारी कई लाखों में वेतन ले रहे हैं। लेकिन सभी बिना काम के बैठे हैं। मान सम्मान तो बिना काम के बैठ कर भी मिलना माना जा सकता है। लेकिन बिना काम के भी जिम्मेदारी में भी समकक्षता कैसे हो जायेगी यह रहस्य बना हुआ है।

यह माना जा रहा है कि इस स्तर के तीन-तीन अधिकारियों को चुनावों से 4 माह पहले बिना काम के बैठा कर प्रदेश की जनता और पूरे प्रशासन को जो संदेश अपरोक्ष में जा रहा है वह सरकार की चुनावी सेहत के लिये बहुत घातक सिद्ध होगा। क्योंकि नजरअन्दाज हुये अधिकारी स्वभाविक है कि वह सरकार के अब शुभचिंतक नहीं हो सकते। इस स्तर के अधिकारियों के पास सरकार को लेकर जो जानकारियां रही होंगी वह चुनावों के दौरान बाहर आकर सरकार के लिये कैसी कठिनाइयां पैदा करेंगे यह तो आने वाला समय ही बतायेगा जिन सलाहकारों ने चुनावों से चार माह पहले ऐसी सलाह दी है उन्होंने इससे पहले क्या-क्या किया होगा यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा।