शिमला/शैल। हिमाचल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एवं मंत्री रह चुके पंडित खीमी राम ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। खीमीराम कांग्रेस में उस सुधीर शर्मा के माध्यम से शामिल हुए हैं जिनको लेकर यह फैलाया जा रहा था कि वह भाजपा में जाने की तैयारी में हैं। भाजपा की ओर से भी लगातार यह फैलाया जा रहा था कि बहुत से कांग्रेसी उनके संपर्क में हैं। लेकिन सुधीर-खीमी के मिलन ने दोनों दलों के समीकरणों को हिला कर रख दिया है। क्योंकि खीमीराम का असर कुल्लु और मण्डी दोनों जिलों में होगा यह तय है। बल्कि सिराज तो आधा मण्डी और आधा बंजार में है और खिमी राम एक तरफ से जयराम पर ही ग्रहण हो जायेगा। खीमीराम के बाद हिमाचल में भाजपा के पूर्व पार्षद मनोज कुठियाला भी कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। उन्होंने प्रतिभा सिंह के आवास हॉलीलॉज में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। इसी के साथ आम आदमी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष निक्का सिंह पटियाल ने सुखविन्दर सुक्खु की उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। इस तरह भाजपा कांग्रेस में सेंध लगाने के जो प्रयास कर रही थी उनके सफल होने से पहले ही भाजपा में टूटन शुरू हो जाना एक बड़े खतरे का संकेत माना जा रहा है।
भाजपा आज टूटन के मुकाम पर क्यों पहुंच रही है? खीमी राम के जाने की भाजपा के त्रिदेव और प्रदेश की गुप्तचर एजैन्सियों तक को भनक न लग सकी यह अपने में एक बड़ी बात है। माना जा रहा है कि भाजपा हाईकमान ने इसका कड़ा संज्ञान लिया है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह शिमला में इसी का जायजा लेने पहुंचे थे। इसके लिये संगठन सरकार और प्रभारियों तक की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। अब तक मुख्यमंत्री को नड्डा का जो संरक्षण प्राप्त था अब उस पर भी प्रश्न चिन्ह लगने की नौबत आ गयी है। क्योंकि जब दोनों निर्दलीय विधायकों को भाजपा में शामिल किया गया था तब पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को इसके बारे में पूछा तक नहीं गया। बल्कि इनके शामिल होने को धूमल समर्थकों को ही ठिकाने लगाने का प्रयास किया जाना माना गया। इसकी पुष्टि शिमला और धर्मशाला में प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान अनुराग ठाकुर को मिले व्यवहार से भी हो जाती है। बल्कि अनुराग ने केजरीवाल की कांगड़ा यात्रा से पहले आप के तत्कालीन संयोजक अनूप केसरी को तोड़कर जिस तरह से सक्रियता का परिचय दिया था वह बाद में अचानक लोप क्यों हो गयी।
यह एक सार्वजनिक सच है कि 2017 में धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से ही भाजपा की सरकार बन पायी है। लेकिन सरकार बनने के बाद धूमल और उनके समर्थकों को जिस तरह से लगातार नजर अन्दाज किया जाता रहा है वह भी सबके सामने है। इस आशय के समाचार लगातार छपते आये हैं कि कई पूर्व विधायकों के टिकट कटेंगे। यह इंगित सीधे धूमल समर्थकों की ओर रहा है। ऐसे में जिन भी लोगों ने अभी सक्रिय राजनीति से रिटायर होने का फैसला नहीं कर रखा है उन्हें अपने लिये नया आश्रय तलाश करना स्वभाविक है। फिर धूमल भी अपने समर्थकों को किस आधार पर नजर अन्दाजी के बाद भी संगठन में बैठे रहने को कह सकते हैं। इसलिये इन लोगों के लिये कांग्रेस ही एकमात्र मंच रह जाता है। फिर अभी प्रधानमंत्री ने जिस तरह से मुफ्ती योजनाओं को देश के लिये घातक करार दिया है उस परिदृश्य में आने वाले समय में जयराम को भी ऐसी घोषणाएं वापिस लेनी पड़ेगी अन्यथा यह माना जायेगा कि प्रधानमंत्री का यह उपदेश दूसरे दलों के लिये है भाजपा के लिये नही। उस स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रतिक्रिया उठेगी वह पार्टी के लिये बहुत घातक होगी और प्रधानमंत्री ऐसा कभी नहीं चाहेंगे।