अब हिमुडा की कार्यप्रणाली आयी सवालों में

Created on Monday, 11 July 2022 13:47
Written by Shail Samachar

18 वर्ष पहले खरीदी संपत्ति पर आज तक कब्जा नहीं हो पाया

शिमला/शैल। हिमुडा ने वर्ष 2004-05 में राजधानी शिमला के धोबी धाट क्षेत्र में एक कालोनी बनाने के लिये जमीन खरीदी थी। इसमें कुछ खाली जमीन थी और कुछ मकान थे। इसमें एक मकान हार्डिगंज विला के नाम से था। यह मकान दो भाइयों जीत और जोगिन्दर का था। इसी के कुछ भाग में सुधीर नाम का एक किराएदार था और आऊट हाऊसिंग वाले भाग में पुलिस के वायरलेस विंग में कार्यरत अधिकारी कालिया किराएदार थे। हिमुडा के नाम रजिस्ट्री होने के बाद कालिया मकान छोड़ कर चले गये। लेकिन दूसरे किराएदार सुधीर ने कब्जा नहीं छोड़ा। अब सुधीर की मृत्यु के बाद उसके बेटों ने न केवल मकान की रिपेयर ही करवा ली बल्कि कालिया और जोगिन्दर वाले हिस्से पर भी कब्जा कर लिया है। मकान की रिपेयर करवा कर यह जताने का प्रयास किया है कि यह उन्हीं की संपत्ति है। यह रकवा करीब 1 बीघा है जिसकी कीमत 5 से 6 करोड़ मानी जा रही है। हिमुडा की प्लान के मुताबिक इस मकान को तोड़कर कॉलोनी के लिये सड़क बनायी जानी थी। जिसकी चौडाई चार से पांच मीटर प्रस्तावित थी और यह अभी तक नहीं बनी है। एक बार नगर निगम ने सड़क बनाने का प्रयास किया लेकिन हिमुडा ने ही इसे गिरा दिया। यहां पर बनी हिमुडा कॉलोनी का एक संगठन भी बना हुआ है। जिसका अध्यक्ष भी शायद सुधीर परिवार से ही ताल्लुक रखता है। यहीं पर जोगिन्दर के केयरटेकर एक नंदा शर्मा मजदूर थे। इस नंदा शर्मा से मकान खाली करवाने के आदेश हिमुडा प्राप्त कर चुकी है। लेकिन सुधीर के बेटों के खिलाफ कोई कारवायी नहीं करवा पायी है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब एक मजदूर से मकान खाली करवाने के आदेश पाने में हिमुडा सफल हो गया है तो दूसरे लोगों से ऐसा क्यों नहीं करवा पाया है। इस बारे में जब हिमुडा कार्यालय में बात की गयी तो प्रशासनिक अधिकारी को इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने इस बारे में संबंधित अभियन्ता से बात करने को कहा जो कार्यालय में उपलब्ध ही नहीं था। यह मकान और जमीन 18 वर्ष पहले खरीदे गये थे। परंतु इनका पूरा कब्जा हिमुडा आज तक हासिल नहीं कर पायी है। यह एक व्यावहारिक सच है। ऐसा क्यों नहीं हो पाया है? क्या इसमें हिमुडा के अधिकारियों की ही नाकामी रही है या इस पर कोई और दबाव रहा है? क्योंकि यह कैसे संभव हो सकता है कि 18 वर्षों में हिमुडा मुख्यालय के संज्ञान में यह मामला ही नहीं आया हो और प्रशासनिक अधिकारी तक को इसकी जानकारी न रही हो।