आधी आबादी को आधी सुविधा देकर पूरी पर सता का गेम प्लान

Created on Monday, 04 July 2022 05:00
Written by Shail Samachar

क्या यह आधी सुविधा महंगाई और बेरोजगारी से ध्यान हटाने का प्रयास नहीं है

क्या यह महिलाओं को समझ नहीं आयेगा कि उन्हें सत्ता की आसान सीढ़ी माना जा रहा है?

शिमला/शैल। यह चुनावी वर्ष है और चुनाव जीतने के लिये कुछ भी करने का अधिकार राजनीतिक दलों का शायद जन्मसिद्ध अधिकार है। सरकार में बैठा हुआ दल इस अधिकार का प्रयोग पूरे खुले मन से करता है और कर्ज लेकर भी खैरात बांटने में संकोच नहीं करता है। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुये मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकार की बसों में महिलाओं को आधे किराये पर आने-जाने की सुविधा प्रदान कर दी है और यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू भी हो गया है। जबकि इसी के साथ घोषित न्यूनतम किराया 7 रूपये से 5 रूपये करने का फैसला अभी लागू होना है। महिलाओं का बस किराया आधा करने का फैसला धर्मशाला में आयोजित महिला मोर्चा के ‘‘नारी को नमन’’ समारोह में लिया गया। इस अवसर पर शायद मुख्यमंत्री भी सभा स्थल तक बस में गये। मुख्यमंत्री जिस बस में गये उसकी चालक भी शिमला से धर्मशाला पहुंची थी जिसे मुख्यमंत्री ने सम्मानित भी किया। महिला चालक का सम्मान शिमला में चल रही सरकारी टैक्सियों में महिला चालकों की भर्ती का फैसला लेना और सरकारी बसों के किराये में 50% की छूट देना महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़े कदम माने जा रहे हैं और इन्हीं के सहारे सत्ता में वापसी सुनिश्चित मानी जा रही है।
इस परिप्रेक्ष में कुछ सवाल उठ रहे हैं जिन्हें जनत्ता के सामने रखना आवश्यक हो जाता है। इस समय सरकार के सारे निगम बोर्डों में शायद हिमाचल पथ परिवहन निगम ही सबसे अधिक घाटे में चल रही है। शायद अपनी सारी संपत्ति बेचकर भी एक मुश्त अपने घाटे कर्ज की भरपाई नहीं कर सकती। फिर सरकार भी कर्ज के दलदल में गले तक धंस चुकी है। सरकार के फैसले इतने प्रशंसनीय है कि पिछले दिनों एचआरटीसी ने नई बसे खरीद ली जबकि काफी अरसा पहले खरीदी गई बड़ी-बड़ी बसें आज तक सड़कों पर नहीं आ सकी हैं। खड़े-खड़े सड़ रही हैं। ऐसा क्यों हुआ है इसके लिये कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। अब जो किराया सात से पांच रूपये किया गया और महिलाओं को आधी छूट दी गयी है इसका आकलन करने के लिये 2018 से अब तक रहे बस किराये पर नजर डालनी होगी। सितंबर 2018 में न्यूनतम किराया 3 रूपये से 6 रूपये कर दिया गया था। इसका जब विरोध हुआ तो 6 रूपये से 5 रूपये कर दिया। फिर जुलाई 2020 में यही किराया 5 रूपये से 7 रूपये कर दिया। अब इसे फिर से पांच किया जा रहा है। परिवहन निगम इस समय भी 40 से 50 करोड़ प्रति माह के घाटे में चल रही है। कोविड काल में ही 840 करोड़ का घाटा निगम उठा चुकी है। इसे उबारने के लिये सरकार को शायद 944 करोड़ की ग्रांट देनी पड़ी थी। इस तरह परिवहन निगम लगातार घाटे में चल रही है तो सरकार को भी करीब हर माह ही कर्ज लेने की जरूरत पड़ रही है। ऐसे में क्या निगम या सरकार किसी को कर्ज लिये बिना कोई राहत देने की स्थिति में है।
आज केंद्र से लेकर राज्य तक सभी कर्ज में डूबे हुये हैं और इसी कर्ज के कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। आज जब हर रसोई में इस्तेमाल होने वाले आटा चावल दालें आदि सभी की कीमतें बढ़ गई हैं तो क्या घर संभालने वाली इससे प्रभावित नहीं होगी? क्या उसे नहीं समझ आयेगा कि उसे आधी सुविधा देकर सत्ता पर पूरे कब्जे का गेम प्लान बनाया गया है? क्या तब वह यह नहीं कहेगी कि इस सुविधा के बदले उसके बच्चे को रोजगार दिया जाये। जब उसके पास सिलैन्डर में गैस भरवाने के पैसे नहीं होंगे तो क्या वह खाली सिलैन्डर की आरती उतारकर भाजपा को वोट देंगी?