पेपर सैटिंग कमेटी और प्रिंटिंग कमेटी को भेजी गयी अलग-अलग प्रश्नवाली क्या है?
भर्ती बोर्ड के चेयरमैन आई.जी. जे.पी. सिंह का अलग से प्रश्नावली क्यों भेजी गयी?
क्या इनके जवाबों से एस.आई.टी. संतुष्ट है?
प्रिंटिंग प्रैस के चयन की प्रक्रिया क्या रही?
शिमला/शैल। पुलिस भर्ती में पेपर लीक होने और उसके पांच से आठ लाख तक में बिकने के प्रकरण से प्रदेश तथा सरकार की प्रतिष्ठा पर जो दाग लगे हैं वह शायद कभी भी नहीं धुल पायेंगे। क्योंकि जैसे ही यह मामला उजागर हुआ तभी सारा विपक्ष सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया। उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच करवाये जाने के ज्ञापन राज्यपाल को सौंपा गये। पुलिस द्वारा की जा रही जांच पर भरोसा न जता कर सीबीआई जांच की मांग की गयी। प्रदेश उच्च न्यायालय में इस आशय की याचिका पहुंच गयी। पूूर्व में घटे गुड़िया मामले की तर्ज पर इस मामले के भी सीबीआई में जाने की संभावना बढ़ गयी। यह लगने लगा था कि उच्च न्यायालय ही यह जांच सीबीआई को सौंपने के निर्देश कर देगा। क्योंकि पुलिस के खिलाफ पुलिस की ही विश्वसनीय नहीं होने का तर्क खड़ा हो गया था। पुलिस विभाग का प्रभार स्वयं मुख्यमंत्री के पास होने से उनकी अपनी प्रतिष्ठा और निष्पक्षता दाव पर आ गयी थी। इस सब को सामने रखकर उच्च न्यायालय की सुनवाई से पहले ही 17 मई को मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी। सभी ने घोषणा का स्वागत किया और मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा बहाल रह गयी।
लेकिन अब 27 जून को जब डी.जी.पी. संजय कुण्डू ने यह घोषणा कर दी कि एक सप्ताह के भीतर इस जांच का चालान अदालत में पेश कर दिया जायेगा और जांच की कुछ तफसील भी पत्रकारों के साथ सांझा कर ली तो वह सारे सवाल फिर से उठ खड़े हुए हैं जो पहले दिन से ही उछल गये थे। फिर कुण्डू ने सारे मामले में संबद्ध पुलिस अधिकारियों की लापरवाही की संभावना से इन्कार नहीं किया है। अब तक मामले में 171 लोग लोगों की गिरफ्तारी का तथ्य तो समझा कर लिया गया लेकिन यह कहीं सामने नहीं आया कि पुलिस के कितने लोगों से पूछताछ की गयी है। यह भी नहीं बताया गया कि एस.आई.टी. ने पेपर सैटिंग कमेटी और प्रिंटिंग कमेटी को जो अलग-अलग प्रश्नावलियां भेजी थी उनका क्या जवाब आया? क्या उस जवाब से एस.आई.टी. संतुष्ट है? पुलिस भर्ती बोर्ड के चेयरमैन आई.जी. जे.पी. सिंह को अलग से प्रश्न भेजे गये थे उनका क्या जवाब आया है? 2021 में पुलिस भर्ती प्रक्रिया में ऑनलाइन आवेदन मंगवाने का फैसला हुआ था। ए.डी.जी.पी. आर्मड पुलिस, आई.जी. रेंज, वैलफेयर और प्रशासन तथा डी.आई.जी. रेंज तक को बोर्ड में रखा गया था। लेकिन बाद में इस फैसले को किस तरह पर बदला गया यह आज तक सामने नहीं आ पाया है। यह सवाल भी अपनी जगह खड़ा है की पेपरों की प्रिंटिंग हिमाचल सरकार की प्रैस से न करवा कर बाहर से यह प्रिटिंग करवाने का फैसला किस स्तर पर और क्यों लिया गया। ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जिनकी ओर शायद जांच में कोई ध्यान नहीं गया है। 2006 के पी.एम.टी. पेपर मामले के अभियुक्त रहे मंडी ट्रक यूनियन के अध्यक्ष रहे मनोज कुमार कि अब इस मामले में भी संलिप्तता का खुलासा करके अपरोक्ष में यह तो कह दिया गया कि पेपर लीक तो बहुत पहले से होती आ रही है। यह तो बता दिया गया कि 10 राज्यों में यह गिरोह सक्रिय है। लेकिन इस सब से यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि पुलिस के अपने ही अधिकारियों कर्मचारियों के खिलाफ पुलिस की ही जांच की इससे विश्वसनीयता कैसे बन जाती है?