ड्रग कंट्रोलर के खिलाफ चर्चित शिकायत पर कार्रवाई क्यों नहीं

Created on Wednesday, 25 May 2022 18:58
Written by Shail Samachar

सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस सवालों में

शिमला/शैल। हिमाचल सरकार का स्वास्थ्य विभाग एक लंबे अरसे से विवादों का केंद्र चला आ रहा है। विभाग को लेकर पहली चर्चा उस समय शुरू हुई जब पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के नाम लिखा एक पत्र वायरल हुआ। इस पत्र के तथ्यों पर कोई जांच करने की बजाय सरकार ने इसके लेखक का पता लगाने को प्राथमिकता दी। कई लोगों पर शक किया गया। शैल भी शक के दायरे में रहा और अंततः धूमल शासन में मंत्री रहे रविन्द्र रवि के खिलाफ इस संबंध में एक मामला दर्ज कर लिया गया। इस मामले का अंतिम परिणाम आज तक सामने नहीं आया है। इसके बाद सोलन से एक ऑडियो वायरल हुआ। इस पर मामला दर्ज हुआ तत्कालीन स्वास्थ्य निदेशक की गिरफ्तारी तक हुई। स्वास्थ्य मंत्री को बदलकर विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया। लेकिन मामले का अंतिम परिणाम अभी आना बाकी है। फिर पी.पी. किटस और सैनिटाइजर खरीद पर सवाल उठे। सैनिटाइजर खरीद पर सचिवालय के एक अधिकारी और कर्मचारी के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। इसका भी परिणाम आना शेष है।

लेकिन इन सारे मामलों के साथ एक और गंभीर तथ्य यह घटता रहा कि हिमाचल में बनने वाली दवाओं के सैंपल फेल होने के समाचार आते रहे हैं। विधानसभा में इस आश्य के प्रश्न आये। सरकार ने जवाब में दवाइयों और निर्माता कंपनियों के नामों सहित पूरा विवरण पटल पर रखा। लेकिन इस पर कारवाई के नाम पर यही आया कि निर्माताओं को शो कॉज नोटिस जारी कर दिये गये। शो कॉज नोटिस के बाद क्या कारवाई हुई आज तक सामने नहीं आया है। जबकि सैंपल फेल होने के किस्से अब तक जारी हैं। संयोगवश विधानसभा में आये सवाल लिखित जानकारी आने तक ही सीमित रहे हैं। बद्दी देश का एक बड़ा फार्मा हब है। बड़े-बड़े दवा निर्माता यहां पर हैं। हिमाचल में बनी हुई एक दवाई के सेवन से जम्मू में कुछ बच्चों की मौत होने तक का मामला घट चुका है। इस पर एक अपराधिक मामला भी दर्ज हो चुका है। लेकिन इसका भी अंतिम परिणाम सामने नहीं आया है।
दवाई जीवन रक्षक होती है। जब उसके निर्माण में उसकी गुणवत्ता के मानकों की ही पालना नहीं होगी तो शायद इससे बड़ा और कोई अपराध नहीं हो सकता। ऐसे अपराधियों के खिलाफ यदि कारण बताओ नोटिस से आगे कारवाई न बढ़े तो क्या इसे सरकार की कार्यप्रणाली पर एक गंभीर प्रश्न चिन्ह नहीं माना जाना चाहिये। दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना दवा नियंत्रक की जिम्मेदारी होती है। दवाइयों की कीमतें किस गति से बढ़ाई जा रही हैं और इसमें फार्मा कंपनियां किस तरह आचरण करती हैं इसका जिक्र पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार अपनी आत्म कथा में कर चुके हैं। नागपुर में एक एनजीओ साथी कि 40 पन्नों की रिपोर्ट में भी फार्मा कंपनियों की भूमिका को लेकर बहुत ही सनसनीखेज खुलासा हुआ है। हिमाचल में दवा नियंत्रक रहे शेर सिंह का मामला भी सभी जानते हैं। दवाइयों की खरीद में किस तरह कितने कमीशन का आदान-प्रदान होता है इसका खुलासा मण्डी में हुई खरीद पर कैग रिपोर्ट में आ चुका है। जब नड्डा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री थे तब भी इस खरीद पर लंबा चौड़ा मामला घट चुका है तब भी स्वास्थ्य निदेशक की गिरफ्तारी हुई थी।
इस परिदृश्य में आज जो आठ पन्नों की एक शिकायत दवा नियन्त्रक मरवाह के खिलाफ मीडिया तक पहुंची है उस पर सरकार द्वारा अब तक कोई कारवाई न किया जाना अपने में कई सवाल खड़े कर देता है। एक एम सी जैन द्वारा प्रधानमंत्री सहित एक दर्जन अधिकारियों नेताओं को भेजी इस शिकायत में बहुत गंभीर आरोप लगाये गये हैं। इन आरोपों की सत्यता सामने आनी चाहिए। जिस एम सी जैन के नाम से यह शिकायत मीडिया तक पहुंची है वहीं पर यह शिकायत सरकार और उसकी एजेंसियों तक भी पहुंची होगी। लेकिन इस पर अब तक किसी की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया जारी न होना कई सवाल खड़े करता है। ऐसे में इस शिकायत में दर्ज तथ्यों की सत्यता पर कुछ भी न कहते हुये इसे यथास्थिति पाठकों के सामने रखना सरोकारी पत्रकारिता का धर्म हो जाता है।

यह है एम.सी. जैन की शिकायत