चरमराते शीर्ष प्रशासन पर नड्डा और अनुराग की चुप्पी क्यों

Created on Tuesday, 17 May 2022 05:15
Written by Shail Samachar

बार-बार नड्डा के प्रदेश दौरों से उठी चर्चा
नड्डा का फ्रन्ट पर आना जय राम की सफलता या मजबूरी

शिमला/शैल। इस वर्ष के अन्त में प्रदेश विधानसभा के लिये चुनाव होने हैं। भाजपा कांग्रेस और आप तीनों राजनीतिक दलों के लिये यह चुनाव अपने अपने कारणों से महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि दिल्ली और पंजाब दोनों जगह भाजपा और कांग्रेस आप से हार चुके हैं। हरियाणा में भाजपा अकेले अपने दम पर सत्ता में नहीं है। ऐसे में यदि हिमाचल भी इनके हाथ से निकल जाता है तो दोनों दलों को राष्ट्रीय स्तर पर बहुत गहरा आघात लगेगा और उसके परिणाम भी दूरगामी होंगे कांग्रेस ने प्रदेश संगठन में बदलाव करके इसमें होने वाले पलायन को रोक लिया है। लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा अभी ऐसा कुछ नहीं कर पायी है। जबकि उसके संगठन और सरकार में लम्बे अरसे से बदलाव की चर्चाएं चलती आ रही हैं। जब भाजपा प्रदेश में चारों उपचुनाव हार गयी थी तब नेतृत्व परिवर्तन से लेकर कुछ मंत्रियों को हटाने और कुछ के विभागों में फेरबदल किये जाने की चर्चाएं बहुत तेज हो गयी थी। लेकिन यह सब व्यवहारिक शक्ल नहीं ले पाया है। ऐसा क्यों हुआ है यह विश्लेष्कों के लिए अब तक खोज का विषय बना हुआ है। लेकिन इस पर कलम चलाने से पहले प्रदेश के शीर्ष प्रशासन पर उठते सवालों और उन पर सरकार की रहस्यमई चुप्पी सवालों में है। आज सरकार के मुख्य सचिव से लेकर उनकी नीचे के पांच अधिकारी भी सवालों में आ खड़े हुये हैं। क्योंकि दो-दो जगह सरकारी आवास लेने के अतिरिक्त विशेष वेतन का वितीय लाभ भी ले रहे हैं। नियमों के अनुसार यह गंभीर अपराध है। पूरे प्रदेश में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन मुख्यमंत्री इस पर चुप है। पुलिस भर्ती परीक्षा के पेपर लीक मामले में करीब दो दर्जन लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। प्रदेश में यह अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें इतने बड़े स्तर पर प्रश्न पत्रों को बेचा गया है। कई तरह के नाम चर्चा में आ रहे हैं। विपक्ष मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रही है। लेकिन सरकार कोई फैसला नहीं ले पा रही है। यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर मुख्यमंत्री की क्या ऐसी मजबूरी है जो उन्हें कड़ा कदम लेने से रोक रही है। सरकार नेता प्रतिपक्ष को तो मंत्री स्तरीय आवास दे नहीं पायी है लेकिन अपने अफसरों को दिल्ली और शिमला में एक साथ मकान दे कर बैठी हुयी है। कर्ज में डूबी सरकार के इस तरह के आचरण का आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ रहा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। देर सवेर अधिकारियों का यह मामला विजिलेंस और अदालत में पहुंचेगा ही। ऐसे में राजनीतिक पंड़ितों के लिए यह बड़ा सवाल बना हुआ है कि जिस सरकार का शीर्ष प्रशासन सवालों के कटघरे में खड़ा हो भर्ती परीक्षा के पेपर बेचे जाने के प्रकरण में मामला गिरफ्तारीयों तक पहुंच जाये उस सरकार की साख अपने अंध भक्तों से हटकर आम आदमी की नजर में कहां खड़ी होगी इसका अंदाजा भले ही नेता लोग न लगा पा रहे हो लेकिन आम आदमी पूरी तरह स्पष्ट है। क्योंकि 12ः बेरोजगारी की दर के कारण प्रदेश का नाम देश के 6 राज्यों में आ चुका है। इस सबके बावजूद भी जब हाईकमान न हिल रहा हो तो निश्चित रूप से ध्यान जयराम के दिल्ली में बैठे दो वकीलों जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर पर जायेगा। क्योंकि नड्डा ने ही जयराम के वकील होने का दावा किया है। इस वकालत नामे पर अमल करते हुये दोनों वकील प्रदेश में किसी न किसी बहाने आने का कार्यक्रम बनाने पर विवश हो गये हैं। अब तो प्रधानमंत्री को भी लाने का जुगाड़ बैठा लिया गया है। भले ही अंतिम क्षणों में प्रधानमंत्री न आ पायें लेकिन एक बार तो आम कार्यकर्ताओं को बता ही दिया गया है कि प्रधानमंत्री सरकार से कितने खुश हैं। इस परिदृश्य में यह सवाल भी काफी रोचक हो गया है कि पूर्व मुख्यमंत्रियों शांता कुमार और प्रेम कुमार धूमल को पोस्टरों में जगह न देने और धूमल की हार के कारणों की जांच की मांग को सीधे ठुकराने के बाद नड्डा ने प्रदेश की जिम्मेदारी अपने कंधों पर कैसे ले ली है। नड्डा को फ्रन्ट पर लाकर खड़ा कर देना जयराम की सफलता है या नड्डा की मजबूरी इस पर अभी पर्दा बना हुआ है। लेकिन इस सब में अनुराग की भूमिका आने वाले दिनों में क्या रहती है यह देखना रोचक होगा। क्योंकि जिस तरह से नड्डा प्रदेश में बार-बार आकर रोड शो करने पर मजबूर होते जा रहे हैं उससे प्रदेश में जीत की जिम्मेदारी जयराम से बदलकर नड्डा पर आती जा रही है। इसमें यह देखना भी रोचक होगा कि नड्डा अन्त तक जयराम के साथ खड़े रहते हैं या कुछ कदम चलकर पांव पीछे खींच लेते हैं।