शिमला/शैल। प्रदेश सरकार ने सितम्बर 2006 में संयुक्त क्षेत्र में थर्मल प्लांट स्थापित करने का फैसला लिया और इसके लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास बोर्ड के माध्यम से निविदायें मांगी गयी थी। इसके उतर में छः पार्टियों ने निविदायें भेजी लेकिन पांच ने ही प्रस्तुति दी और इनमे से दो को अन्त में इसके लिये सक्ष्म माना क्योंकि इनका कोल माईनिंग अनुभव था। इसमें एक कंपनी थी एम्टा जिसने बंगाल और पंजाब में थर्मल प्लांट लगाने का दावा किया था और एम्टा को इस आधार पर ज्वाईट वैंचर का पार्टनर चुन लिया गया। दिसम्बर 2006 में यह संयुक्त क्षेत्र उपक्रम बना और जनवरी 2007 में इसके साथ एम ओ यू साईन हुआ। बंगाल के रानीगंज में यह थर्मल प्लांट लगना था। एम्टा आर हिमाचल पाॅवर कारपोरेशन में 50ः50 की भागीदारी तय हुई और एम ओ यू के बाद 48 महीनों में यह प्लांट लगना था ।
एम्टा को एम ओ यू के तहत दो करोड़ की धरोहर राशी भी पावर कारपोरेशन में जमा करवानी थी। इस प्लांट के लिये कोल ब्लाक चाहिये था। एम्टा ने जे एस डब्ल्यू स्टील के साथ सांझे में भारत सरकार से ग़ौरांगढ़ी में कोल ब्लाक का आवंटन हासिल कर लिया। इसके लिये मई 2009 में जे एस डब्लू के साथ एक और सांझेदारी बनाई गयी। लेकिन भारत सरकार ने नवम्बर 2012 में यह आंवटन रद्द कर होने के बाद दिसम्बर 2012 को एम्टा के निदेशक मण्डल ने फैसला लिया कि वह इसमें और निवेश नहीं करेगें। 26 नवम्बर 2014 को एम्टा ने फिर फैसला लिया कि जब तक एचपीएस ईबी लि. के साथ पावर परचेज सैटल नही हो जाता वह इस पर आगे नहीं बढे़गें। लेकिन मार्च 2015 में बिजली बोर्ड ने पावर परचेच में असमर्थता दिखायी क्यों पावर रेगुलेटर ने थर्मल पावर पर प्रतिबन्ध लगा रखा था। पावर कारपोरेशन इसमें चार करोड़ का निवेश कर चुकी है। अधोसंरचना विकास बोर्ड का निवेश अलग है। 2007 में यह संयुक्त क्षेत्र उपक्रम बना था और आठ वर्षों में यह प्लांट नहीं लग सका।
स्मरणीय है कि भारत सरकार ने नवम्बर 2012 में कोल ब्लाक आंवटन रद्द कर दिये थे क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के निेर्देशों पर कोल ब्लाक आंवटनों पर सीबीआई जांच बैठ गयी थी। सीबीआई ने एम्टा के संद्धर्भ में चालान कोर्ट में डाल दिया है। ई.डी. भी इस मामलें में जांच कर रही है और उसका चालान कभी भी अदालत में पहुंच सकता है। इस मामलें में जो महत्वपूर्ण बिन्दु सामने आये हैं उनके मुताबिक इस प्रोजैक्ट की फिजिविलटी रिपोर्ट ही नहीं ली गयी थी। इसमें एचपीआईडीबी को जिम्मेदारी क्यों दी गयी जबकि उसका इसमें कोई अनुभव ही नहीं था। जांच में यह भी सामने आ चुका है कि एम्टा का थर्मल में कोई अनुभव ही नहीं था। उसके दावों की कोई जांच क्यों नही की गयी? एम्टा से दो करोड़ की धरोहर राशी क्यों नहीं ली गयी। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि जब एम्टा 13 दिसम्बर को इसमें ओर निवेश न करने का फैसला ले चुका था फिर उसे 26 दिसम्बर 2012 को 40 लाख और 9-5-2013 को 20 लाख का भागधन क्यों दिया गया?
ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभविक है कि जब भारत सरकार कोल ब्लाक का आंवटन नवम्बर 2012 में रद्द कर चुकी थी और पूरे मामले की सी बी आई और ई डी जांच चल रही थी उसके वाबजूद एम्टा को 60 लाख किसके दवाब में दिये गये?