स्वीडिश कंपनी के दलाल थे राजीव गांधी!

Created on Monday, 09 April 2012 02:01
Written by Super User

नई दिल्ली।। विकीलिक्स वेबसाइट ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में एक अहम खुलासा किया है जिससे भारतीय राजनीति में भूचाल आ गया है।

विकीलिक्स वेबसाइट ने दावा किया है कि राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले जब पायलट के रूप में काम रहे थे तब वे एक स्वीडिश कंपनी साब स्कॉनिया के लिए दलाली का काम भी कर रहे थे।

इतना ही नहीं बल्कि वेबसाइट ने पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडिस के बारे में भी सनसनीखेज खुलासे किए हैं।

विकिलीक्स के ये खुलासे एक अंग्रेजी समाचार पत्र में प्रकाशित होने के बाद से सुर्खियों में हैं। हालांकि अभी कांग्रेस ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है।

लेकिन भाजपा के नेता प्रकाश जावडेकर ने सवाल उठाया है कि हर रक्षा सौदे में गांधी परिवार का नाम ही सामने क्यों आता है।

उन्होंने कहा कि इस मामले में गांधी परिवार को जवाब देना चाहिए और तब के दस्तावेज सार्वजनिक होने चाहिए।

खुलासे के अनुसार राजीव गांधी पीएम बनने से पहले इंडियन एयरलाइंस में पायलट की नौकरी के दौरान एक स्वीडिश कंपनी के लिए संभवत: दलाली करते थे।

यही कंपनी साब स्कॉनिया 70 के दशक में भारत को फाइटर प्लेन विजेन बेचने की कोशिश कर रही थी। विकीलिक्स ने इस खुलासे में अमरेरिकी सुरक्षा सलाहाकर रह चुके हेनरी किसिंजर का हवाला देते हुए कहा है कि स्वीडिश कंपनी के साथ सौदा नहीं हो पाया था और ब्रिटिश जगुआर ने बाजी मार ली थी।

इसी तरह फर्नांडिश के बारे में लिखा है कि इमरजेंसी के दौरान उन्होंने भूमिगत रहने के दौरान अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए से आर्थिक मदद भी मांगी थी।

गौरतलब है कि राजीव गांधी 1980 तक भारतीय राजनीति से दूर रहे। संजय गांधी के आकस्मिक निधन के बाद ही इंदिरा गांधी उन्हें राजनीति में लाई।

अपने पीएम बनने के पहले कार्यकाल में ही वे एक दूसरी स्वीडिश कंपनी से बोफोर्स तोपों की खरीद के लिए हुए सौदे में दलाली के आरोपों से घिर गए। आखिरकार 1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को करारी हार मिली।

विकीलिक्स ने 1974 से 1976 के दौरान के जारी 41 केबल्स का हवाला देते हुए लिखा है कि स्वीडिश कंपनी को इस बात का अंदाजा था कि फाइटर एयरक्राफ्ट्स की खरीद के बारे में अंतिम फैसला लेने में गांधी परिवार की भूमिका होगी। फ्रांसीसी एयरक्राफ्ट कंपनी दसो को भी इसका अनुमान था।

उसकी ओर से मिराज फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए तत्कालीन वायुसेना अध्यक्ष ओपी मेहरा के दामाद दलाली करने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि मेहरा के दलाल के नाम का खुलासा नहीं किया गया।

1975 में दिल्ली स्थित स्वीडिश दूतावास के एक राजनयिक की ओर से भेजे गए केबल संदेश से पता चलता है कि इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन के खिलाफ अपने पूर्वाग्रहों की वजह से जगुआर न खरीदने का फैसला किया था। संदेश में कहा गया है कि अब मिराज और विजेन के बीच फैसला होना है।

श्रीमती गांधी के बड़े बेटे बतौर पायलट एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े हैं और पहली बार उनका नाम बतौर उद्यमी सुना जा रहा है। फाइनल फैसले को परिवार प्रभावित करेगा।

दूसरे केबल में कहा गया कि इस डील में इंदिरा गांधी की अति सक्रियता से स्वीडन चिढ़ा हुआ था। इस केबल के अनुसार उन्होंने फाइटर प्लेन की खरीद की प्रक्रिया से एयरफोर्स को दूर रखा था।

राजनायिक के मुताबिक 40 से 50 लाख डॉलर प्रति प्लेन के हिसाब से 50 विजेन के लिए बातचीत चल रही थी। स्वीडन को भरोसा था कि भारत सोवियत संघ से और युद्धक विमान न खरीदने का फैसला कर चुका था।