प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा से पहले प्रदेश भाजपा में फिर उभरी हलचल

Created on Tuesday, 14 December 2021 17:30
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। जयराम सरकार को सत्ता में चार वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस अवसर पर मंडी में राज्य स्तरीय एक आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन के लिए प्रधानमंत्री को आमंत्रण भेजा गया है। नरेंद्र मोदी इस आयोजन में शामिल होंगे या नहीं यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। जहां सरकार सता के चार साल पूरे करने जा रही है वहीं पर इस चौथे वर्ष में हुए चारों उपचुनाव की सरकार हार गयी है। इस हार पर तत्कालिक प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने महंगाई को इसका कारण बताया था। यह संयोग है कि मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी आयी थी। लेकिन 2014 से अगर तुलना की जाये तो आज भी कीमतें कई गुना ज्यादा है। ऐसे में यदि प्रधानमंत्री इस जश्न पर मंडी आते हैं तो वह इस महंगाई और बेरोजगारी के लिए क्या जवाब देते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि जहां मंडी को आयोजन स्थल बनाया गया है वही पर उसी मंडी में लोकसभा के लिये भी उपचुनाव हुआ और भाजपा हार गयी। जबकि इसी मंडी में एक समय स्व.वीरभद्र सिंह और उनके परिवार पर यह आरोप लगाया गया था कि उनके पेड़ पर भी नोट उगते हैं। इस आरोप के बाद प्रतिभा सिंह चुनाव हार गयी थी। लेकिन आज वही प्रतिभा सिंह उन पुराने सारे कलंको को धोते हुये मोदी और जयराम दोनों की सरकारों के हाथों से यह सीट छीन कर ले गयी है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि मंडी की हार की जिम्मेदारी कौन लेता है जयराम या मोदी।
उपचुनावों की हार के लिए हुये मंथन के बाद कुछ हलकों में इस हार के लिए धूमल और उनके नजदीकियों को भी जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके लिए यह तर्क दिया गया है कि 2017 में धूमल मुख्यमंत्री का चेहरा थे परंतु जब वह स्वयं चुनाव हार गये और जयराम को पार्टी ने मुख्यमंत्री बना दिया तो अब जयराम को नीचा दिखाने के लिए इन लोगों ने उपचुनाव में हार की पटकथा लिख दी। जब इस तरह की चर्चाएं सार्वजनिक हुई और उसके बाद प्रेम कुमार धूमल दिल्ली पहुंच गये तो भाजपा के राजनीतिक हलकों में फिर से अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। इस गर्मी से क्या निकलता है यह आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के लिए यह एक रोचक स्थिति बन गयी है। क्योंकि अब जब पार्टी चार वर्षों का जश्न चारों उपचुनाव हारने के बाद भी मना रही है तो यह स्वभाविक है कि इन चार वर्षों में जो कुछ प्रदेश और सरकार में घटा है वह सब भी चर्चा में आयेगा ही। क्योंकि इस सरकार में जिस तरह से समय-समय पर पत्र बम फूटते रहे हैं उनमें उठाये गये मुद्दे आज भी यथास्थिति बने हुये हैं। इन्हीं पत्र बम्बों का परिणाम है स्वास्थ्य विभाग को लेकर हुई एफ आई आर/संगठन को लेकर आये इन्दु गोस्वामी के पत्र को क्या आज भी नजरअंदाज किया जा सकता है शायद नहीं। आज इस सरकार पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि इस ने प्रदेश को कर्ज के ऐसे चक्रव्यूह में उलझा दिया है जिससे बाहर निकलना संभव नहीं होगा। इतने कर्ज के बावजूद भी यह सरकार प्रदेश के युवाओं को रोजगार देने में असफल रही है। आज जब मल्टी टास्क वर्कर भर्ती करने के लिये आठ हजार संस्थानों में चार हजार मुख्यमंत्री के कोटे से भरने की नीति बनाने पर सरकार आ जाये तो अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उसका बेरोजगार युवाओं और उनके अभिभावकों पर क्या असर हुआ होगा।
सरकार की इसी तरह की नीतियों का परिणाम है कि हर चुनाव क्षेत्र का प्रभाव किसी ना किसी मंत्री के पास होने के बावजूद सरकार हार के गयी। क्या इन प्रभारी मंत्रियों ने चुनाव के दौरान किसी भीतरघात की शिकायत की थी शायद नहीं। क्या टिकटों का आवंटन इन मंत्रियों या धूमल गुट ने किया था शायद नहीं। ऐसे में आज जो भूमिका तैयार की जा रही है क्या उसे आने वाले आम चुनाव में मिलने वाली हार की जिम्मेदारी अभी से दूसरों पर डालने की नीयत और नीति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। इस परिदृश्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस हार के बावजूद प्रधानमंत्री क्या संदेश देकर जाते हैं।