शिमला/शैल। जब बैंक प्रबन्धन बैकिंग लोकपाल के आदेश की भी अनुपालना करने में टालमटोल करे तब बैंक की ही मिली भगत से ही किसी निर्दोष के खिलाफ रचे गये फ्रॅाड के मामले में पीड़ित को दर- दर की ठोकरें खाने पर मज़दूर कर दिया जाये तो ऐसी व्यवस्था को क्या संज्ञा दी जाये यह सवाल ऊना की रकड़ कालोनी के निवासी और प्रदेश के साहित्यिक जगत के एक चर्चित नाम कुलदीप शर्मा के साथ हुए फ्रॅाड से अब जनता की अदालत तक पहुंच कर सारे संवद्ध पक्षों से जवाब मांग रहा है। यह सवाल उस समय और भी अहम हो जाता है जब प्रधानमंत्री और वित्त मन्त्री आये दिन लोगां को बैंक से कर्ज लेकर अपना काम चलाने की सलाह दें। बैंकों की ज्यादतीयों से पीड़ित कितने लोग आत्म हत्याएं कर चुके हैं इन आंकड़ों को शायद दोहराने की आवश्यकता नहीं है। साहित्यकार अपनी सरलता के कारण किसी की भी तकलीफ पर उसकी मद्द करने के लिये तैयार हो जाता है यह उसका स्वभाविक गुण है। इसी गुण के कारण कुलदीप शर्मा एक शाहिद हुसैन और राकेश पाल के षडयन्त्र का शिकार हो गये क्योंकि इसमें केनरा बैंक का स्थानीय प्रबन्धन भी सक्रिय भागीदारी निभा रहा था और इन सबकी नजऱ कुलदीप की संपत्ति पर थी।
इस संपत्ति को हथियाने के लिये शाहिद और राकेश पाल ने उनके उद्योग पारस होम सप्लाईन्स के नाम आया एक लाख दस हजार डालर का सप्लाई आर्डर दिखाकर इस आर्डर को पूरा करने के लिये बैंक से कर्ज लेने की जरूरत दिखायी और इस कर्ज के लिये कुलदीप से गांरटी देने की मद्द मांगी। केनरा बैंक के प्रबन्धक ने भी इस गारंटी के लिये कुलदीप को पूरी आश्वस्त किया। यह उद्योग CGTSME योजना के तहत जून 2013 में स्थापित हो चुका था और इस कर्ज की आवश्यकता दिसम्बर 2013 में आयी। इसलिये शक करने का कोई कारण सामने नहीं दिखा। कुलदीप इसके लिये तैयार हो गये और संपत्ति के पेपर बैंक को दे दिये गये। लेकिन बाद में शाहिद और राकेश पाल मे बैंक के सहयोग से पारस होम एपलाईन्स के नाम से ही एक और जाली उद्योग इ्रकाई शाहिद की पत्नी के नाम दिखाकर उसको कर्ज दे दिया और उसमें कुलदीप शर्मा की संपत्ति के पेपर प्रयोग कर लिये गये।
जब कुलदीप शर्मा को इस फर्जीवाडे का पता चला तब उन्होंने बैंक, स्थानीय प्रशासन तक से इनकी शिकायत की। पुलिस मे मामला दर्ज करवाया। पुलिस ने मैनेजर को गिरफ्तार तक कर किया लेकिन बैंक ने कुलदीप शर्मा को गांरटी से मुक्त नहीं किया। बैंक के इस आचरण के खिलाफ चण्डीगढ़ स्थित बैंकिग लोकपाल के पास मामला पहुंचा। लोकपाल ने केनरा बैंक को दोषी करार देते हुए कुलदीप को इस गांरटी से मुक्त करने के आदेश सुनाये। बैंक प्रबन्धन ने भी इन आदेशों पर लोकपाल के समक्ष लिखित में सहमति दी है। 16-3-20 को लोकपाल ने यह आदेश पारित किये हैं लेकिन आज तक बैंक प्रबन्धन इसकी अनुपालना नहीं कर रहा है। क्या अराजकता का इससे बड़ा कोई प्रमाण हो सकता है क्या बैंक प्रबन्धन इस तरह पीड़ित को कोई और हताशा का कदम उठाने के लिये बाध्य नही कर रहा है।