जयराम सरकार की नज़र भी है आपकी खाली ज़मीनों पर

Created on Tuesday, 15 December 2020 10:18
Written by Shail Samachar

शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने इस वित्तिय वर्ष 2020 -21 का बजट सदन के पटल पर रखते हुए अपने वक्तव्य में एक घोषणा की थी। वक्तव्य के 32वें बिन्दु में यह कहा था कि प्रदेश के बहुत से किसान परिवार निजी कारणों से गांव छोड़कर शहर में निवास कर रहे हैं या उनके बच्चे बाहर रहते हैं। परिणामस्वरूप उनकी कृषि भूमि खाली पड़ी रहती है। हमारी सरकार माननीय सदन के सभी दलों के सदस्यों की एक कमेटी बनाना प्रस्तावित करती है जो कि खाली पड़ी भूमि को किसी अन्य, सिर्फ हिमाचली कृषक, को खेतीबाड़ी हेतु देने की व्यवस्था बारे अध्ययन करके अपने सुझाव प्रस्तुत करेगी। इससे प्रदेश में कृषि उत्पादन को बल मिलेगा तथा किसानों की आर्थिकी भी सुधरेगी। इस घोषणा के अनुसार अभी तक ऐसी किसी कमेटी का कोई गठन नहीं हुआ है और न ही सरकार की ओर से कोई योजना आयी है कि कैसे हमारी खाली पड़ी हुई ज़मीनों को सरकार दूसरे लोगों को कृषि के लिये देगी। मुख्यमन्त्री ने यह योजना बजट में घोषित की थी। लेकिन बजट सत्र पूरा होने से पहले ही कोरोना के कारण लाकडाऊन लग गया था। मार्च में लाकडाऊन लगा और जून में मोदी सरकार कृषि ऊपज को लेकर तीन कानून ले आयी। यह कानून 2014 में शान्ता कुमार की अध्यक्षता में गठित एक उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर लाये गये हैं यह इस कमेटी की रिपोर्ट देखने के बाद स्पष्ट हो जाता है। शान्ता कमेटी की सिफारिशों और इन विवादित कानूनों को पढ़ने के बाद यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में प्राइवेट क्षेत्र को लाने के लिये एक बहुत ही सुनियोजित योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है। जयराम सरकार की घोषणा को यदि इस आईने से देखा जाये तो स्थिति और भी स्पष्ट हो जाती है। क्योंकि इस प्रदेश में ऐसा कोई नियम कानून का प्रावधान नहीं है जिसके तहत सरकार एक किसान की खाली पड़ी ज़मीन को दूसरे किसान को देने की बात कर सके। प्राईवेट ज़मीन पर सरकार का कोई दखल नहीं होता है लेकिन नये आये कानूनों के माध्यम से जिस तरह से कान्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात की बात की गयी है और इसके लिये ऐसे लीज़ नियम बनाने की बात की जा रही है जो कान्ट्रैक्ट के हितों की रक्षा कर सकें। शान्ता कमेटी ने स्पष्ट सिफारिश की है कि प्रदेशों में इस आश्य के लैण्डलीज़ नियम बनाये जाये। जयराम की बजट घोषणा से यह भी संकेत उभरता है कि इसको अलग-अलग नामों से भी अंजाम देने की योजना हो सकती है। सरकार तरीका जो चाहे वह अपनाये लेकिन उसकी अन्तिम नजऱ किसान की ज़मीन तक पहुंचना है यह स्पष्ट हो जाता है। हैरानी इस बात की है कि इतनी बड़ी घोषणा पर अभी तक न तो राजनीतिक दलों/नेताओं और न ही मीडिया में कोई चर्चा उठ सकी है जबकि इन कानूनों के परिदृश्य में यह एक बड़ा सवाल हो जाता है। क्योंकि इस समय प्रधानमन्त्री से लेकर नीचे तक भाजपा का हर कार्यकर्ता और नेता इन कानूनों के लाभ गिनाने में लगा हुआ है।
इन कानूनों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इनके माध्यम से कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्राईवेट सैक्टर का दखल हो जायेगा। इस समय ही देश में वालमार्ट जैसे अन्तर्राष्ट्रीय प्लेयर आ चुके हैं। इसी को देखते हुए अंबानी और अदानी जैसे घराने कृषिक्षेत्र में आ रहे हैं। सरकार इन घरानों की मदद के लिये किस कदर प्रयासरत रही है इसका खुलासा हरियाणा सरकार के इस पत्र से हो जाता है। जब देश में लाकडाऊन चल रहा था तब 7 मई को हरियाणा सरकार अदानी ग्रुप को 90015.623 वर्ग मीटर जगह पानीपत में वेयर हाऊस की स्थापना के लिये दे रही थी। पंजाब हरियाणा सहित देशभर में अकेले अदानी के ही इतने वेयर हाऊस हैं जिनकी भण्डारण क्षमता पूरी एफसीआई की क्षमता से कई लाख टन अधिक है। सरकार ने अदानी को यह ज़मीन मई में दी और अपने कानून जून में लायी। क्या इससे यह स्पष्ट नहीं हो जाता है कि अदानी को सरकार की योजनाओं का पहले से ही ज्ञान था। बल्कि यह कहना ज्यादा संगत होगा कि अदानी के अनुसार ही सरकार नियम कानून बना रही थी। शान्ता कमेटी ने तो अपनी सिफारिशों में 2015 में ही यह कह दिया था HLC recommends that FCL should outsource its stocking operations to various agencies such as Central Warehousing Corporation, state Warehousing Corporation, Private Sector under Private Entrepreneur Guarantee (PEG) scheme, and even state governments that are building silos through private sector on state lands (as in Madhya Pradesh) it should be done on competitive bidding basis, inviting various stakeholders and creating competition to bring down costs of storage.

India needs more bulk handling facilities than it currently has. Many of FCI’s old conventional storages that have existed for long number of years can be converted to silos with the help of private sector and other stocking agencies. Better mechanization is needed in all silos as well as conventional storages.