शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं कौल सिंह ठाकुर, जी एस बाली, चन्द्र कुमार और विपल्व ठाकुर ने पिछले दिनों धर्मशाला में एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में जयराम सरकार के खिलाफ हमला बोला है। इसमें जलशक्ति विभाग और स्वास्थ्य पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाये हैं। सरकार के अब तक के कार्यकाल पर कांग्रेस का यह पहला बड़ा और स्टीक हमला है। अब तक कांगे्रस सरकार के खिलाफ रस्म अदायगी से आगे नही बढ़ पायी है। इस समय सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के साथ ही कृषि उपज विधेयक, श्रम कानूनो में संशोधन और अटल टनल से सोनिया गांधी की शिलान्यास पट्टिका का गायब किया जाना तथा जीएसटी के हिस्से के बदले में केन्द्र के ऋण लेने के सुझाव को प्रदेश सरकार द्वारा मान लेना ऐसे मुद्दे हैं जो प्रदेश के हर आदमी को सीधे प्रभावित करते हैं। कृषि उपज विधेयकों के खिलाफ किसान और आम आदमी किस कदर रोष में है इसका अन्दाजा दिल्ली में केन्द्रिय स्वास्थ्य मन्त्री हर्षवर्धन को जिस आक्रामक किसान विरोध का सामना करना पड़ा है उससे लग जाता है कि विपल्व ठाकुर ने राज्यसभा में जिस तरह से आक्रामकता दिखाई है वह अपने में एक मिसाल बन गयी है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस के बडे नेताओं को मुद्दों की जानकारी भी है और समझ भी। लेकिन जब कांग्रेस की यह आक्रामकता रस्म अदायगी से आगे नही बढ़ पाती है तब यह नेता अपना संगठन का और आम आदमी सबका एक साथ नुकसान कर लेते हैं। अभी कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं ने धर्मशाला में संयुक्त पत्रकार वार्ता में सरकार के खिलाफ कारगर हमला बोला है। लेकिन धर्मशाला में आयोजित इस पत्रकार वार्ता में सुधीर शर्मा और जिला अध्यक्ष अजय महाजन तक का शामिल न होना न चाहते हुए भी पार्टी के भीतर की गुटबन्दी को मुखर कर गया। जबकि इस पत्रकार वार्ता में संजय रत्न और केवल सिंह पठानिया आदि कांगड़ा के सभी बड़े नेताओं का शामिल होना बनता था। क्योंकि यह पत्रकार वार्ता उस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद हो रही थी जो पत्र सोनिया गांधी को लिखा गया था और उसमें प्रदेश के दो बड़े नेताओं आनन्द शर्मा और कौल सिंह ठाकुर का शािमल होना सामने आ चुका है। बल्कि इस पत्र से पहले कौल सिंह ठाकुर के घर पर कुछ नेताओं का दोपहर के भोज पर इकट्ठे होना भी चर्चा का विषय बन चुका है। भले ही सोनिया गांधी को लिखे पत्र पर कौल सिंह तुरन्त प्रभाव से अपना स्पष्टीकरण दे चुके हैं लेकिन इसके बाद भी स्थिति कोई बड़ी नही बदली है। हालांकि चर्चा तो यहां तक है कि जिस कुलदीप राठौर को अध्यक्ष बनाने के लिये वीरभद्र सिंह और आनन्द शर्मा ने हाथ मिलाया था आज उसी वीरभद्र ने आनन्द शर्मा के रस्मी विरोध का पत्र भी सोनिया गांधी को भिजवाया है। कांग्रेस के कितने नेताओं को लेकर यह चर्चाएं उठती रही है कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं यह प्रदेश के लोग जानते हैं। इस परिदृश्य में आज की बदली परिस्थितियों में कांग्रेस के नेताओं को सही में व्यवहारिक रूप से एकजुटता का परिचय देना होगा।
इस समय सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नही है। केन्द्र के हर फैसले का प्रदेश पर असर पड़ रहा है। राज्य सरकार केन्द्र के फैसलों का विरोध नही कर सकती है क्योंकि दोनों जगह एक ही सरकार है। इसलिये जब केन्द्र ने कह दिया कि कर्ज ले लो तो उसे मानना पड़ा। जिन राष्ट्रीय उच्च मार्गों के तोहफे को विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनावों तक में भुनाया गया अब वह तोहफा हवाहवाई निकला तो उस पर भाजपा के पास चुप रहने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं है। लोकसभा में प्रदेश कांग्रेस का कोई सदस्य नहीं है इसलिये कांग्रेस नेतृत्व को केन्द्र और राज्य दोेनों की नीतियों पर एक साथ हमला बोलने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।