शिमला/शैल। पिछले दिनों प्रदेश में कांगडा केन्द्रिय सहकारी बैंक के निदेशक मण्डल के लिये हुए चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। यह हार कितनी बड़ी रही है इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस से बैंक के अध्यक्ष रहे सिपाहिया भी निदेशक का चुनाव हार गये हैं जबकि इसी चुनाव में भाजपा सरकार के वर्तमान मन्त्री राकेश पठानिया, सरवीण चैधरी, विक्रम ठाकुर और गोविन्द ठाकुर भी अपने-अपने जोन में भाजपा के उम्मीदवार को जीत नहीं दिला पाये हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा के पक्ष में भी कोई बड़ा माहौल नहीं था। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक के चुनाव उस समय हुए जब किसान कृषि उपज विधेयकों के खिलाफ आन्दोलन में है। किसान आन्दोलन की बात कर चुका है और सहकारी क्षेत्र ने इस फैसले पर देशभर में अपना विरोध जताया है। इस तरह पूरे सहकारी क्षेत्र में भाजपा सरकार के खिलाफ रोष है लेकिन यह रोष होते हुए भी प्रदेश कांग्रेस इसका लाभ नही ले पायी।
कांगड़ा बैंक के इन चुनावों में भी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की ओर से यह शिकायत रही है कि प्रदेश कांग्रेस के नेतृत्व ने इन चुनावों को गंभीरता से नहीं लिया और न ही चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को कोई सहयोग दिया। जब आधा हिमाचल इस बैंक के कार्यक्षेत्र में आता है और इसका प्रबन्धन यहां की राजनीति को प्रभावित करता है। इस परिदृश्य में बैंक के इन चुनावों में मिली हार प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर एक बड़ा असर डालेगी। क्योंकि यह बैंक प्रदेश के 30 विधानसभा क्षेत्रों और दो लोकसभा क्षेत्रों पर सीधा असर डालता है। फिर इस समय कांगड़ा में भाजपा की गुटबाजी धवाला-पवन राणा और सरवीण चैधरी प्रकरण में खुलकर सामने आ चुकी है। कांगड़ा प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है और अब तक इतिहास भी यही रहा है कि जो दल यहां से दस सीटें जीत लेता है प्रदेश में सरकार उसी की बनती है। फिर इसका असर ऊना और हमीरपुर जिलों पर भी पड़ता है।
इस परिदृश्य में कांगड़ा बैंक के चुनावों में भी कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व पर पार्टी उम्मीदवारों को वांच्छित सहयोग न देने का आरोप लगना संगठन के भीतरी समीकरणों पर बहुत कुछ कह जाता है। बल्कि आज तक यह आरोप लगता आया है कि शिमला में बैठा नेतृत्व हमेशा कांगड़ा को कमजोर करता आया है। बल्कि कांगड़ा के अपने नेताओं पर जिले के हितों के लिये भी इकट्ठे न होने का आरोप लगता रहा है। इस समय यदि कांगड़ा से विप्लव ठाकुर, जीएसबाली, चन्द्र कुमार, सुधीर शर्मा, संजय रत्न और अजय महाजन ईमानदारी से इकट्ठे हो जायें तो उसी से प्रदेश की राजनीति बदल जाती है। क्योंकि कांगड़ा की इस एकता का सीधा प्रभाव ऊना और हमीरपुर पर पड़ता है। इस समय यदि कांग्रेस लोकसभा क्षेत्र से नेता पर सहमति बना लेती है और जिस तरह की आक्रामकता विप्लव ठाकुर ने संसद में दिखाई है यदि वही आक्रामकता प्रदेशभर में अपना ली जाये तो प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को कोई नही रोक पायेगा। लेकिन इस समय भी जब यह आरोप लग रहे हैं कि जयराम को सबसे ज्यादा सहयोग वीरभद्र सिंह से मिल रहा है तो वहीं से कांग्रेस के भविष्य पर सवाल उठने शुरू हो जाते हैं।